विशेष रिपोर्ट: तीन बच्चों का स्कूल, दो शिक्षक और जर्जर इमारत। नैनीताल के वीरभट्टी स्कूल की कहानी

तीन बच्चों का स्कूल, दो शिक्षक और जर्जर इमारत। नैनीताल के वीरभट्टी स्कूल की कहानी

नैनीताल। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में शिक्षा व्यवस्था का एक ऐसा अनोखा और चिंताजनक उदाहरण सामने आया है जो सरकारी योजनाओं और जमीनी हकीकत के बीच गहरे अंतर को उजागर करता है।

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नैनीताल के कृष्णापुर से वीरभट्टी पैदल मार्ग पर स्थित एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय में आज केवल तीन छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन इन तीन बच्चों के लिए दो नियमित शिक्षक तैनात हैं, जो सरकार से मोटी तनख्वाह पा रहे हैं।

बुनियादी सुविधाओं से वंचित

स्कूल में न तो बच्चों के बैठने की पर्याप्त जगह है, न शौचालय, न साफ पानी और न ही खेल या पुस्तकालय जैसी बुनियादी सुविधाएं। स्थानीय लोगों का कहना है कि बच्चों को स्कूल भेजने से परिजन कतराते हैं, क्योंकि यहां न तो सुरक्षा है, न सुविधा। शिक्षा का माहौल तो दूर, खुद स्कूल की इमारत भी 100 साल से अधिक पुरानी और जर्जर अवस्था में है।

इतिहास में दर्ज ‘चुंगी भवन’

स्थानीय लोकल गाइड के अनुसार, जिस इमारत में यह स्कूल संचालित है, वह कभी नैनीताल नगर पालिका की चुंगी हुआ करती थी। जब नगर पालिका स्वरूप में आई थी, तब इस स्थल पर व्यापारियों से गाय, बैल, बकरी, खच्चर और घोड़े लाने पर टैक्स वसूला जाता था।

बारह पत्थर, चीन चुंगी, पाइंस, पिटरिया और बिड़ला चुंगी जैसे इलाकों में इस तरह की वसूली होती थी। उस समय की कार्यप्रणाली की ऐतिहासिक झलक आज इस वीरान हो चुके भवन में देखी जा सकती है।

स्थानांतरण की मांग

दुर्गापुर क्षेत्र के पूर्व सभासद धरनीधर भट्ट (डी.एन. भट्ट) का कहना है कि विद्यालय को तत्काल दूसरे सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित किया जाए। उनका तर्क है कि तीन बच्चों को एक छोटी सी जगह में पढ़ाना न केवल असुविधाजनक है, बल्कि इससे स्कूल का भविष्य भी संकट में है।

यदि स्कूल स्थानांतरित होता है और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, तो आसपास के ग्रामीण अपने बच्चों को स्कूल भेजने में दिलचस्पी ले सकते हैं।

प्रशासन की उदासीनता या व्यवस्था की असफलता?

  • इस पूरे मामले में कई सवाल खड़े होते हैं:
  • क्या तीन बच्चों के लिए दो शिक्षकों की नियुक्ति संसाधनों की बर्बादी नहीं है?
  • क्या एक जर्जर इमारत में शिक्षा देना बच्चों के अधिकारों का हनन नहीं है?
  • क्या शिक्षा विभाग को इस स्कूल के पुनर्वास की सुध नहीं है?

सरकार की ‘हर बच्चा स्कूल में’ नीति तब तक केवल नारा ही बनी रहेगी, जब तक इन दुर्गम और उपेक्षित क्षेत्रों के स्कूलों को व्यावहारिक रूप से पुनर्जीवित नहीं किया जाता।

यह स्कूल एक प्रतीक है। उस प्रणाली का जो आंकड़ों में खुद को सफल दिखाने के लिए विद्यालयों की संख्या तो बढ़ा रही है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सुविधाओं के मोर्चे पर बुरी तरह पिछड़ रही है। वीरभट्टी का यह स्कूल हमें चेतावनी देता है कि अगर हमने अभी भी ध्यान नहीं दिया, तो शिक्षा का उद्देश्य केवल आंकड़ों में सिमटकर रह जाएगा।