इस IFS अधिकारी के मामले में एक और जज ने सुनवाई से स्वयं को किया अलग
देहरादून। उत्तराखंड कैडर के वरिष्ठ IFS अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक हल्द्वानी, संजीव चतुर्वेदी से जुड़े एक आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई से नैनीताल की अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) नेहा कुशवाहा ने स्वयं को अलग कर लिया है।
उन्होंने यह निर्णय कैट के सदस्य डीएस महरा से पारिवारिक संबंधों का हवाला देते हुए लिया है। न्यायाधीश कुशवाहा ने स्पष्ट किया कि महरा उनके सरकारी आवास पर आते रहते हैं, ऐसे में इस मामले की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकती।
यह मामला उस आपराधिक मानहानि याचिका से जुड़ा है जो संजीव चतुर्वेदी ने नवंबर 2023 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के सदस्य मनीष गर्ग के विरुद्ध दायर की थी। आरोप है कि 16 अक्टूबर 2023 को कैट की खुली अदालत में गर्ग ने संजीव के प्रति आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया था।
इस याचिका को लेकर नवंबर 2024 में एसीजेएम कोर्ट में आपराधिक अवमानना याचिका भी दायर की गई थी। उल्लेखनीय है कि इसी मामले में अक्टूबर 2024 में कैट के सदस्य डीएस महरा की अध्यक्षता वाली पीठ ने संजीव को नोटिस जारी कर उनसे पूछा था कि क्यों न उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।
अब तक 14 न्यायाधीश कर चुके हैं खुद को अलग
इस पूरे प्रकरण की सबसे खास बात यह है कि आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से जुड़े मामलों में अब तक कुल 14 न्यायाधीश स्वयं को सुनवाई से अलग कर चुके हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट के दो, नैनीताल हाईकोर्ट के दो, कैट के अध्यक्ष, दिल्ली, इलाहाबाद और शिमला की अदालतों के न्यायाधीश शामिल हैं।
फरवरी 2025 में कैट के न्यायाधीश हरविंदर कौर ओबेरॉय और बी. आनंद ने भी चतुर्वेदी से जुड़े मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था और यह भी निर्देश दिया था कि भविष्य में उनके समक्ष ये मामले सूचीबद्ध न किए जाएं। इन आदेशों में कारण नहीं बताया गया था।
फरवरी 2024 में उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मनोज तिवारी ने प्रतिनियुक्ति से जुड़े एक मामले में यह निर्देश जारी किया था कि भविष्य में संजीव चतुर्वेदी के मामले उनके समक्ष लिस्ट न किए जाएं।
इससे पहले वर्ष 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि संजीव चतुर्वेदी के सेवा संबंधी मामलों की सुनवाई केवल नैनीताल सर्किट बेंच में ही होनी चाहिए, और केंद्र सरकार पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
वर्ष 2021 में इस आदेश को दोहराया गया, जिसे केंद्र सरकार ने पुनः सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और मार्च 2023 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ को सौंपा गया।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भी कर चुके हैं स्वयं को अलग
नवंबर 2013 में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश रंजन गोगोई और अगस्त 2016 में जस्टिस यूयू ललित ने संजीव द्वारा दायर भ्रष्टाचार जांच संबंधी याचिकाओं से स्वयं को अलग कर लिया था।
इन याचिकाओं में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अन्य अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की गई थी। दोनों न्यायाधीशों ने अपने अलग होने का कोई कारण नहीं बताया