उत्तराखंड में 2210 स्कूलों के खस्ताहाल। जर्जर हालात में टॉयलेट, बाउंडरी वॉल और छतें
देहरादून। उत्तराखंड राज्य की शिक्षा व्यवस्था कितनी बेहतर है? इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश के खासकर पर्वतीय क्षेत्र में मौजूद स्कूलों की कक्षा में पानी टपकना, स्कूल की छत गिरने या दीवार गिरने की घटना सामने आती रही है।
इस दौरान कई बार बच्चे घायल भी हो जाते हैं। बावजूद इसके शिक्षा विभाग हमेशा से ही यह दावा करता रहा है कि मॉनसून से पहले सभी स्कूलों की मरम्मत कर दी जाएगी।
लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि अभी भी प्रदेश में जर्जर स्कूलों की संख्या दो हजार से अधिक हैं। जो मॉनसून के दौरान एक बड़ी चुनौती बन जाते हैं। इन चुनौती को लेकर विभाग ने क्या रणनीति तैयार की है, जानते हैं।
उत्तराखंड में मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश की स्थिति काफी अधिक दयनीय हो जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिस वजह से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
मॉनसून सीजन के दौरान लैंडस्लाइड होने की वजह से सड़कों को काफी नुकसान पहुंचता है. लेकिन कई बार भारी मात्रा में पानी के बहाव की वजह से मकान, स्कूल समेत इंफ्रास्ट्रक्चर को भी काफी नुकसान पहुंचता है।
लेकिन मॉनसून सीजन आते ही उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों पर मौजूद सैकड़ों स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों की चिंताएं बढ़ जाती हैं। क्योंकि, आज भी प्रदेश में करीब 2210 स्कूलों की स्थिति जीर्ण-शीर्ण है।
पौड़ी में सबसे ज्यादा खराब स्थिति वाले स्कूल
उत्तराखंड शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2024-25 के आंकड़ों के तहत सरकारी विद्यालयों की कुल संख्या 15,873 है, जिसमें से 2210 स्कूलों की स्थिति जीर्ण-शीर्ण है। सबसे अधिक पौड़ी जिले में 330 स्कूलों की स्थिति जर्जर है, जबकि सबसे कम चंपावत जिले में 90 स्कूलों की स्थिति जीर्ण-शीर्ण है।
प्रदेश में जीर्ण-शीर्ण स्थिति में मौजूद स्कूल मॉनसून के दौरान और अधिक खतरनाक हो जाते हैं। क्योंकि मॉनसून सीजन के दौरान इन स्कूलों के छत गिरने, दीवार गिरने या फिर क्लास रूम में पानी टपकने जैसी समस्याएं देखी जाती रही है। बावजूद इसके शिक्षा विभाग की ओर से अभी तक प्रदेश के जीर्ण-शीर्ण स्कूलों को ठीक नहीं किया जा सका है।
3691 स्कूलों में बॉउंड्री वॉल नहीं
उत्तराखंड राज्य में मौजूद जर्जर 2210 स्कूलों की स्थिति जहां एक ओर जीर्ण-शीर्ण है तो वहीं, तमाम ऐसे स्कूल भी हैं जिन स्कूलों में बाउंड्री वॉल, बॉयज टॉयलेट, गर्ल्स टॉयलेट और पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड के 3691 स्कूलों की स्थिति यह है कि इन स्कूलों में बाउंड्री वॉल नहीं है. इसके साथ ही 547 स्कूलों में बॉयज टॉयलेट, 361 स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट और 130 स्कूलों में पीने के पानी की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
बावजूद इसके राज्य सरकार इस बात का दावा करती रही है कि प्रदेश के स्कूलों की स्थिति काफी अधिक बेहतर है, लेकिन विभागीय आंकड़े ही स्कूलों की स्थिति का पोल खोलते नजर आ रहे हैं।
18 स्कूलों की हालत काफी खराब
वहीं, माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा के तहत संचालित स्कूलों को श्रेणियां में बांटा गया है। डी श्रेणी में जिन स्कूलों को रखा गया है, उनकी स्थिति काफी अधिक खराब है। लेकिन प्रदेश में मात्र 18 स्कूल ही ऐसे हैं जिनकी स्थिति खराब है।
ऐसे में इन सभी स्कूलों को दुरुस्त करने की कवायद चल रही है। वर्तमान समय में 6 स्कूलों की डीपीआर तैयार करने के साथ ही बजट भी जारी कर दिया गया है। ऐसे में सभी स्कूलों को इस बाबत निर्देश दे दिए गए हैं कि, मॉनसून सीजन के दौरान कोई भी क्लास ऐसे कमरे में ना लगाई जाए जिस कमरे की स्थिति जर्जर है।
255 स्कूलों की मेजर रिपेयरमेंट की गई
राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान के अपर राज्य परियोजना निदेशक कुलदीप गैरोला ने बताया कि समग्र शिक्षा अभियान के तहत पिछले साल 255 स्कूलों की मेजर रिपेयरमेंट का कार्य कराया गया है। इसके साथ ही प्राइमरी शिक्षा के 70 स्कूलों और अपर प्राइमरी शिक्षा की 14 स्कूलों को रिकंस्ट्रक्शन किया गया है।
इसके अलावा, 330 कमरे माध्यमिक शिक्षा के स्कूलों में बनवाए गए हैं। ऐसे में इस साल भी माध्यमिक शिक्षा के स्कूलों में 190 कमरे का निर्माण प्रस्तावित है। ऐसे में अगर प्रदेश से किसी स्कूल की स्थिति जीर्ण-शीर्ण होगी और अधिकारियों के संज्ञान में लाई जाएगी तो उसे दुरुस्त करने का काम किया जाएगा।
साभार:-ETV Bharat