ब्रेकिंग: करोडों के चिट फंड घोटाले मामले में ED की छापेमारी। कब्जे में लिए कई दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस

करोडों के चिट फंड घोटाले मामले में ED की छापेमारी। कब्जे में लिए कई दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस

देहरादून। पर्ल एग्रो कॉर्पोरेशन लि. (पीएसीएल) से जुड़े करीब 60 हजार करोड़ रुपये के चिट फंड (पौंजी स्कीम) घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने दून में ताबड़तोड़ छापेमारी की।

ईडी की टीम दून में पर्ल ग्रुप से जुड़े बिल्डर मिकी अफजल के ठिकानों पर जांच कर रही है। इसके अलावा ईडी की अलग-अलग टीमें पंजाब और हरियाणा आदि राज्यों में भी घोटाले से जुड़े तमाम व्यक्तियों के घरों और प्रतिष्ठानों की जांच में भी जुटी है।

ईडी के सूत्रों के मुताबिक देहरादून में बिल्डर मिकी अफजल के कैनाल रोड स्थित भवन/प्रतिष्ठान के अलावा इसी क्षेत्र में एक वेडिंग पॉइंट/फार्म पर भी जांच की जा रही है। इस दौरान ईडी ने बड़ी संख्या में दस्तावेज और इलेक्ट्रानिक डिवाइस कब्जे में ली हैं।

साथ ही जमीनों की खरीद-फरोख्त के कई अहम रिकॉर्ड भी ईडी अधिकारियों को मिले हैं। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत ईडी जल्द बिल्डर की संपत्तियों को अटैच करने की कार्रवाई भी शुरू कर सकती है।

पूर्व में उत्तराखंड में सीबीआई भी पर्ल ग्रुप पर शिकंजा कस चुकी है। जिसमें सीबीआई की ओर से राजस्व परिषद को भेजे गए पत्र के बाद उत्तराखंड में पर्ल ग्रुप से जुड़ी संपत्तियों की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि, इसके बाद भी भूमाफिया ने जमीनों को खुर्दबुर्द करने का काम किया।

प्रदेश में जिला प्रशासन भी पर्ल ग्रुप की संपत्तियों को खुर्दबुर्द होने से बचाने की दिशा में नाकाम रहा है। यही हाल गोल्डन फारेस्ट की संपत्तियों के मामले में भी सामने आया। दोनों ही कंपनियों के घोटाले एक जैसी प्रकृति के हैं।

जानिए क्या है पर्ल ग्रुप घोटाला, कितने हुए शिकार

पर्ल एग्रो कॉर्पोरेशन लि. (पीएसीएल) के 60 हजार करोड़ रुपये के स्कैम को जानने से पहले उस निर्मल सिंह भंगू के बारे में जानना जरूरी है, जो पंजाब के एक गांव (रोपड़ में चमककौर साहिब) में साइकिल से दूध बेचने का काम करता था।

विभिन्न रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ बड़ा करने के इरादे से वह वर्ष 1970 में कोलकाता चला गया और पहले पीरलेस नाम की चिटफंड कंपनी खोली।

गोल्डन फारेस्ट इंडिया लि. (यह कंपनी भी हजारों करोड़ का फ्रॉड कर चुकी) से जुड़कर काम सीखा। करीब 10 साल अलग-अलग कंपनियों में काम सीखने के बाद वर्ष 1980 में पर्ल ग्रुप शुरू किया।

कंपनी ने स्वयं और तमाम सहयोगियों की मदद से 05 करोड़ से अधिक निवेशकों से 60 हजार करोड़ रुपये जुटाए। उन्हें मोटे मुनाफे का झांसा दिया गया और बाद में रकम हड़प ली गई।

यह राशि सेबी के नियमों के विपरीत एकत्रित की गई थी, लिहाजा मामला खटाई में पड़ गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की संपत्तियों को बेचकर/नीलाम कर निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए वर्ष 2015-16 में जस्टिस आरएम लोढ़ा कमेटी गठित की।

दूसरी तरफ सीबीआई और ईडी ने भी कंपनी पर शिकंजा कसना शुरू किया। ताकि कंपनी और उसके सहयोगियों की चल-अचल संपत्ति को जब्त कर जस्टिस लोढ़ा कमेटी के माध्यम से निवेशकों को राहत दिलाई जा सके।

समिति के माध्यम से 878 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि जुटा ली गई है। सूत्रों के मुताबिक अब तक 1.5 करोड़ निवेशकों का रिफंड आ चुका है। हालांकि, अभी भी बड़ी संख्या में निवेशक अपने पैसे की वापसी की राह ताक रहे हैं