हाईकोर्ट ने RTI एक्टिविस्ट से मांगा संपत्ति का ब्यौरा। सरकार से मांगी बैकग्राउंड रिपोर्ट, पढ़ें….
नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने आर.टी.आई.एक्टिविस्ट भुवन को अपनी आर.टी.आर., संपत्ति और खर्चों का ब्यौरा न्यायालय को दिखाने को कहा है। न्यायालय ने राज्य सरकार से भी आर.टी.आई. कार्यकर्ता के बैकग्राउंड की जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है।
महाधिवक्ता एस.एन.बाबुलकर ने भुवन का वीरोध करते हुए न्यायालय से कहा कि सरकार के विषेशाधिकार को न्यायालय में इस तरह नहीं खींचना चाहिए, जिसपर न्यायालय ने ये निर्देश जारी किए। भुवन ने इसे न्याय की लड़ाई बताया।
मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने आर.टी.आई. कार्यकर्ता भुवन से एक जनहित याचिका में सुनवाई करते हुए पूछा कि उनके परिवार में कितने सदस्य हैं और बच्चे क्या क्या करते हैं ? न्यायालय ने ये भी पूछा कि उनकी आय कितनी है और उनके पास कितनी चल अचल संपत्ति है ?
जानकारी के अनुसार भुवन ने न्यायालय को बताया कि उनकी एक बेटी एम.टैक, एक बी.टैक, बेटा 11वीं में है जबकि एक बच्चा नोएडा में प्रशिक्षण ले रहा है। भुवन ने न्यायालय से कहा कि उनकी पांच हजार रुपया प्रतिमाह की आय है।
इसपर न्यायालय ने उनसे उनका आयकर रिटर्न मांगते हुए खर्चों और संपत्ति का ब्यौरा दाखिल करने को भी कहा है।
खंडपीठ ने सरकार से भी भुवन की आय और संपत्ति का ब्यौरा न्यायालय के सामने रखने को कहा है। खनन संबंधी एक जनहित याचिका में अधिवक्ता को एंगेज करने के एक मामले में शामिल एक्टिविस्ट भुवन खुद (इन पर्सन) अपनी बहस के लिए शामिल होते हैं।
महाधिवक्ता ने याचिकाकर्ता भुवन के बैकग्राउंड को दाखिल करने के लिए एक अल्प समयावधि मांगी है।
न्यायालय ने याची से अगली तारीख तक पिछले दस वर्षों का आयकर रिटर्न फ़ाइल करने को कहा है। महाधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा जनहित याचिका में जिन्हें पक्षकार बनाया गया है।
उनका इस केस से कोई लेना देना नही है लिहाजा उनका नाम जनहित याचिका से हटाया जाए। मामले में अगली सुनवाई 23 जुलाई को होनी तय हुई है।
याचिकाकर्ता भुवन ने बताया कि उन्होंने भ्रष्टाचार को उजागर करते दस्तावेजों के साथ याचिका लगाई लेकिन दिया तले अंधेरा है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और बाहर से अधिवक्ता हायर किये, जिसमें विधि और न्याय परामर्श का उल्लंघन किया गया।
कहा कि आर.टी.आई. से जानकारी मिली है कि तीन वर्ष में सरकार ने एक करोड़ अठ्ठासी लाख रुपया भुगतान किया है, जबकि 75% मुकदमों में सरकार हारी है। इसके अलावा कुछ और भ्रष्टाचार हैं जसपर निर्णय आने हैं।
उन्हें न्यायालय ने आय, संपत्ति का विवरण और पूर्व में किये गए सामाजिक कार्यों की जानकारियां देने को कहा है।