बिग ब्रेकिंग: याचिकाकर्ता का शोषण और प्रतारण मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग ने आयुक्त कुमाऊँ को भेजा नोटिस। पढ़ें….

याचिकाकर्ता का शोषण और प्रतारण मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग ने आयुक्त कुमाऊँ को भेजा नोटिस

नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के आदेश पर पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता का शोषण और प्रतारण करने के मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग ने आयुक्त कुमाऊं को नोटिस जारी कर 29 मई को स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से जांच रिपोर्ट आयोग के सामने प्रस्तुत करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 29 मई को होनी तय हुई है।

राज्य मनवाधिकार ने चार वर्ष बीत जाने के बाद भी उनकी इस शिकायत पर सुनवाई नहीं की थी जिज़के बाद याची ने उच्च न्यायलय में शीध्र सुनवाई के लिए याचिका दायर की। पूर्व में उच्च न्यायलय ने राज्य मानवाधिकार आयोग को निर्देश दिए थे कि उनकी शिकायत का निस्तारण चार सप्ताह में करें।

आयोग ने इसके बाद आयुक्त को नोटिस जारी कर जाँच रिपोर्ट पेश करने को कहा, लेकिन जांच रिपोर्ट पेश नहीं की गई, जिसपर आयोग ने उन्हें पुनः नोटिस जारी कर स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से जांच रिपोर्ट आयोग के सामने प्रस्तुत करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 29 मई को होनी तय हुई है।

राज्य मनवाधिकार ने चार वर्ष बीत जाने के बाद भी उनकी इस शिकायत पर सुनवाई नहीं की थी जिज़के बाद याची ने उच्च न्यायलय में शीध्र सुनवाई के लिए याचिका दायर की। पूर्व में उच्च न्यायलय ने राज्य मानवाधिकार आयोग को निर्देश दिए थे कि उनकी शिकायत का निस्तारण चार सप्ताह में करें।

आयोग ने इसके बाद आयुक्त को नोटिस जारी कर जाँच रिपोर्ट पेश करने को कहा, लेकिन जांच रिपोर्ट पेश नहीं की गई, जिसपर आयोग ने उन्हें पुनः नोटिस जारी कर स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से 29 मई को जाँच रिपोर्ट आयोग के सामने प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।

मामले के अनुसार हल्द्वानी के चोरगलिया निवासी भुवन चन्द्र पोखरिया ने आयोग में प्रथर्नापत्र देकर कहा है कि चोरगलिया में अवैध खनन, भंडारण, स्टोन क्रशर, एन.जी.टी.और उच्च न्यायलय के आदेशों की अवहेलना करने के मामले में उनके द्वारा समाज का हित देखते हुए आवाज उठाई थी।

आरोप लगाया कि इसके बाद चोरगलिया पुलिस ने उनके खिलाफ आई.पी.सी.की विभिन्न धाराओं और गुंडा एक्ट में मुकदमा दर्ज कर दिया। यही नहीं, पुलिस ने बिना उपयोग किये उनका शस्त्र लाइसेंसी जमा कराकर लाइसेंस भी निरस्त कर दिया।

बार-बार उन्हें थानों और न्यायलयों में ले जाकर प्रताड़ित किया गया। जिसकी वजह से उनकी सामाजिक छवि धूमिल हुई है। इसलिए उन्हें प्रताड़ित करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की जाय।