हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट के नेत्र रोग विभाग ने किया लोगो को जागरुक। विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के तहत चलाया अभियान
- 40 की उम्र पार करते ही साल में एक बार अवश्य कराये आंखों की जांच
डोईवाला। हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट में विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जा रहा है। इस दौरान अस्पताल आने वाले लोगों को इससे लक्ष्ण व उपचार के विषय में जानकारी दी जा रही है।
शनिवार को नेत्र रोग विभाग की ओर से आयोजित जागरुकता कार्यक्रम में पैरामेडिकल साइंस के छात्र-छात्राओं ने नाटक के माध्यम से काला मोतियाबिंद के लक्ष्ण व इसकी पहचान की जानकारी दी।
साथ ही लक्ष्ण आने पर चिकित्सक की सलाह अनुसार ईलाज के लिए प्रेरित किया। इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. रेनू धस्माना ने कहा कि काला मोतिया को ग्लूकोमा या काला मोतियाबिंद भी कहते हैं।
काला मोतिया के लक्ष्णों में आंखों और सिर में तेज दर्द, नज़र कमजोर होना या धुंधला दिखाई देना, आंखें लाल होना, रोशनी के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखाई देना, जी मचलाना, उल्टी होना आदि शामिल है।
कहा कि काला मोतिया में हमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़ता है जिससे उन्हें काफी नुकसान पहुंचता है। उन्होंने बताया परिवार में यदि किसी को ग्लूकोमा है तो अन्य सदस्यों में इसके होने की आशंका ज्यादा होती है।
लोगों को 40 की उम्र पार करते ही साल में एक बार अपनी आंखों का चेकअप नेत्र विशेषज्ञ से करवाना चाहिए। यदि परिवार में कोई भी सदस्य ग्लूकोमा से पीड़ित नहीं है, तब भी अपनी आंखों का चेकअप हर दो साल में एक बार जरूर करवाना चाहिए।
ग्लूकोमा को जांचने के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है, इसलिए भी मुश्किलें आती हैं। ग्लूकोमा को जांचने के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर ही ग्लूकोमा की पुष्टि की जाती है।
ग्लूकोमा की पुष्टि के लिए आंख का प्रेशर, आंख का एंगल, फील्ड ऑफ विजन और ऑप्टिक नर्व की जांच होना बहुत जरूरी है। कहा कि यदि एक बार ग्लूकोमा से आंखों का नुकसान हो गया तो उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। सिर्फ ग्लूकोमा को रोका जा सकता है।
इसलिए इसका सटीक उपाय समय पर जांच है। इस अवसर पर डॉ. सुखदीप बैंस, नीलम तिवारी, मनोज वर्मा, सुरेन्द्र सिंह भंडारी, सुबोध गुप्ता मनोज कुमार उपसिथत थे।