अधर में लटका कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा मंत्रियों के विभागों का बंटवारा। जनता की टिकी निगाहें
देहरादून। विधानसभा चुनाव के पांचवी विधानसभा का सत्र शुरू हो चुका है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि, सत्ता में बैठी सरकार हो या विपक्ष में बैठी कांग्रेस दोनों दलों में से किसी ने भी अभी तक जनता के प्रति अपनी जवाबदेही नहीं दी।
पक्ष हो या विपक्ष दोनों ही अपने हाईकमान पर निर्भर है और बात करें हाईकमान की तो दोनों पक्षों का हाईकमान इतना सुस्ताया हुआ है कि, समय से निर्णय लेने में असमर्थ नजर आ रहा है।
आपको बता दें कि, 14 फरवरी को चुनाव हो गए थे, जिसके बाद 10 मार्च को चुनाव परिणाम आ गया था। भाजपा से मिली करारी हार के बाद भी कांग्रेस 19 सीटों के साथ विपक्ष में बैठी हुई है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि, कांग्रेस अभी तक अपने नेता प्रतिपक्ष का चेहरा घोषित नहीं कर पाई है।
वही बात करें सत्ता में बैठी सरकार की तो वह भी कांग्रेस से पीछे नहीं है, सरकार सत्ता में है और पहला विधानसभा सत्र शुरू हो चुका हैं, लेकिन आज भी विभागों के मंत्री नहीं चुने गए हैं। जो कि, सोचनीय विषय है, और सभी की नजरें इस पर टिकी हुई है।
कांग्रेस के 19 विधायक विजयी हुए। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि, यह विपक्षी दल भी अब तक इन 19 विधायकों में से सदन में नेता प्रतिपक्ष कौन होगा? इसका चुनाव नहीं कर सका है।
अब बात करें कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष चुने जाने की तो इसका सबसे बड़ा कारण आपसी अंतर्कलह है। विपक्ष का नेता चुनने के लिए भी केंद्रीय पर्यवेक्षक की जरूरत पड़ती है और फैसला हाईकमान पर छोड़ा जाता है।
जब तक पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं होगा और हर बात के लिए हाईकमान पर कांग्रेस निर्भर रहेगी तो शायद विधानसभा के कई सत्र निकल जाएंगे। लेकिन कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष का चेहरा घोषित नहीं हो पाएगा।
ज्ञात हो कि, विपक्ष में बैठे नेता प्रतिपक्ष का बहुत महत्व होता है। क्योंकि यह सदन में जनता की समस्या को प्रखरता से दिखाता है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि, 19 सीटों पर विजय प्राप्त करने के बाद भी कांग्रेस अपने हाईकमान पर आधारित है और अभी तक सदन में नेता प्रतिपक्ष नहीं ला पाई है।
यही हाल सत्ता पक्ष का भी है। जिसके 8 मंत्री सदन में बैठे हुए हैं। जबकि तीन सीटें अभी तक खाली छोड़ी गई है, लेकिन जो भरी हुई सीटें हैं, जिन पर मंत्री बिठा दिए गए हैं वह भी नाम मात्र के बिठाए हैं। उनको अभी तक जिम्मेदारी और उनका विभाग नहीं बांटा गया है। क्योंकि सत्ता पक्ष से भी हाईकमान का कोई आदेश नहीं आया है कि, वह अपने मंत्रियों को विभाग और जिम्मेदारी बांट सकें।
राज्य में सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों ही अपने बलबूते से कभी कार्य नहीं करते हैं। बस इंतजार करते हैं कि, हाईकमान का कब कौन सा आदेश आए और हम तब जाकर कुछ कार्य करें।
वही बात करें तो साथ में हुए दूसरे राज्यों के चुनाव की तो पंजाब, उत्तर प्रदेश में मंत्रियों को विभाग मिल गए हैं और विधानसभा का सत्र भी शुरू कर दिया गया है और महत्वपूर्ण कार्य भी अन्य राज्यों की सरकारों ने शुरू करने प्रारंभ कर दिए गए हैं।
लेकिन उत्तराखंड में अभी तक यह निर्धारित ही नहीं हुआ है कि, पक्ष और विपक्ष में कौन-कौन से मंत्री किस विभाग का पद लेकर बैठेंगे।
वही बात करे जनता की तो मंत्रीमंडल के बंटवारे को लेकर अभी तक न आये फैसले को लेकर जनता भी आक्रोशित नजर आ रही है।