एक्सक्लूसिव: विधानसभा चुनावों में शहरों से गाँव लौटे धनबल ने दिखाया अपना जौहर। हार जीत मत पेटी में बंद

विधानसभा चुनावों में शहरों से गाँव लौटे धनबल ने दिखाया अपना जौहर। हार जीत मत पेटी में बंद

रिपोर्ट- इंद्रजीत असवाल
लैंसडौन। बीती 14 फरवरी को सम्पन्न वर्ष 2022 विधानसभा चुनावों का हल्ला अब शांत हो गया। कोरोना महामारी के मध्य अनेकों सम्भावनाओं से भरे लोगों के गॉसिप अपनी-अपनी गाथा लगा रहे हैं। 70 सीटों पर हुए इस चुनाव में लगभग 200 करोड़ का खर्चा अनुमानित है।

समूचे चुनाव के दौरान चुनाव आयोग मूकदर्शक बना रहा।शासन-प्रशासन सिर्फ अनोपचारिक्ता निभा रहा था। जिसका खामियाजा जनता जल्द भुगतेगी। शहरों से गाँव लौटे धनबल ने अपना जौहर दिखाया और सभी 70 सीटों पर “घर-घर नल, हर-घर काला जल” की योजना चरितार्थ हुई। समूचे विधानसभा में महिला मंगल दलों, आशकर्मियों, आंगनबाडी कार्यकत्रियों, भोजन माताओं का अहम योगदान रहा।

उम्मीदवारों ने इनके माध्यम से जीत की राह पकड़ी और अनेकों जगह इनको प्रलोभन देने की बातें भी उठी। सत्तारूढ़ ने BELO में अपने समर्थन अध्यापकों की टीम बनाई, जिस का असर जरूर पड़ा होगा। शिक्षकों ने भी राजनीति में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पूरी भूमिका निभाई। राजस्व पटवारियों के पौबारह रहे। सेक्शन मजिस्ट्रेटों ने सिर्फ सरकारी गाड़ियों का तेल फूंक लोकतंत्र के चीरहरण का मजा लिया।

यहां यदि बात हॉट सीट लैन्सडाउन विधानसभा की करें तो मुख्य मुकाबला दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के मध्य रहा। डॉ हरक सिंह रावत के इस सीट पर हस्तक्षेप से बर्फबारी बारिश के मध्य भी तापमान 50 डिग्री सेल्सियस बना रहा। BJP उम्मीदवार महंत दिलीप सिंह रावत ने अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार सब से अधिक मेहनत की, जिसमें धन बल व छल खूब बहा।

महंत ने इस सीट पर 2 बार अपना कब्जा बनाया, पहली बार मोदी लहर व दूसरी बात रक्षा मोर्चा के उम्मीदवार तेजपाल सिंह रावत व कोंग्रेस की उम्मीदवार ज्योति रौतेला के एक द्वंद ने उन्हें राजयोग का सौभाग्य दिया। इस सीट पर आम आदमी पार्टी व रक्षा मोर्चा मात्र 3% बूथों पर अपने बूथ एजेंट उतारने में कामयाब रहे। जबकि, अन्य 2 निर्दलीय उम्मीदवारों ने खानापूर्ति के लिए ईवीएम पर अपना नाम दर्ज कराया।

विधामसभा में 84,832 मतदाताओं को अपना भविष्य तय करने का अधिकार मिला, जिसके मुकाबले मात्र 40,615 मत पड़े। जो 47.87% रहा। सब से कम मत जयहरीखाल से पड़े, जिस का कारण पलायन व दुर्गमता रही। लैन्सडाउन विधानसभा में रिखणीखाल, जयहरीखाल, नैनीडांडा व बीरोंखाल के 13 बूथ आते हैं।

बीरोंखाल से सदैव भाजपा अच्छा मार्जन लेकर जाती हैं, किंतु इस बार सम्भावनाओं पर सब टिके हैं। जयहरीखाल भाजपा उम्मीदवार महंत दिलीप सिंह का गढ़ माना जाता हैं, जहां इस बार भी उन के पक्ष में मतदान रहा, इसकी वजह यह हैं कि, महंत दिलीप सिंह रावत इस क्षेत्र से वर्ष 2007 में क्षेत्र पंचायत ब्लॉक प्रमुख रहे हैं।

नैनीडांडा में जिस तरह भौगोलिक विषमताएं अन्य ब्लॉक से अधिक हैं, मतदान प्रतिशत भी बेहतर हैं। नैनीडांडा से जुटाए गए आंकड़े कहते है कि, दोनों उम्मीदवारों के मध्य बहुत बड़ा अंतर नही रहेगा। फिर भी कोंग्रेस उम्मीदवार अनुकीर्ति गुसाई यहां से आगे रहेगी। यूकेडी से उम्मीदवार आनंद प्रकाश जुयाल इसी क्षेत्र से आते है और उन का यह आखरी चुनाव हो सकता हैं।

उन्हें भी इस क्षेत्र में बहुत अच्छी बढ़त मिली हैं, तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होने की संभावना हैं। रिखणीखाल ब्लॉक में अनुकीर्ति गुसाई द्वारा अनेकों जनयात्रा निकाली गई थी। जिसका असर यह रहा कि, महिलाओं-युवाओं ने अपनी भागीदारी पूरी निभाई। मंदाल घाटी में 11 फरवरी से JIO संचार सेवा शुरू होने ने समूचा क्षेत्र अनुकीर्ति गुसाई के पक्ष में वोट करने गया।

पट्टी पैनो का यह क्षेत्र 10 वर्ष से संचार सेवा की मांग कर रहा था। अनुकृति गुसाईं रावत को अथक प्रयासों से यह सौभाग्य चुनाव के मध्य मिला। इसका खामियाजा महंत को भगतना पड़ेगा। बदलपुर व ईडियाकोट में कोंग्रेस का बेहतरीन प्रदशनी रहा आंकड़े कहते हैं कि, कोंग्रेस रिखणीखाल ब्लॉक में बड़े अंदर के साथ आगे आएगी।

यहां अन्य किसी भी उम्मीदवार का जनाधार शून्य हो गया।
महंत की कमजोरी यहां ऐसी रही कि, वे अपने समर्थकों को संभाल नही सके। टिकट मिलने की माथापच्ची में वे देहरादून-दिल्ली की दौड़ में उलझ गए और धरातल पर हरक सिंह ने उन से नाराज चल रहे उनके समर्थकों को अपने साथ मिला दिया।

कोंग्रेस से भाजपा में गए लोगों ने महंत को खास फायदा नही दिया। महंत उन्ही कांग्रेसियों को तोड़ने में कामयाब हुए जिनका जनाधार शून्य हैं। क्षेत्र के सभी समाजसेवी महंत से नाराज चल रहे थे, जिन्होंने अनुकीर्ति गुसाईं का निस्वार्थ भाव से पूरा समर्थन किया। 10 वर्षों से सत्ता का सुख भोग रहे महंत ने ठेकेदारों की टीम खड़ी की, मगर सामाजिक कार्यकर्ताओं व भाजपा पार्टी के कार्यकर्ताओं की पूरी अंदेखी हुई।

बिगत 10 वर्षों से उनके खिलाफ उठी हर आवाज को बलपूर्वक दबाया गया, जिसका गुस्सा अब फूटा। महंत के कार्यकर्ताओं ने जनता के कामकाज में रुचि नही दिखाई। अनेकों कामों में टालमटोल, भ्रस्टाचार की सीमा का उलंघन, संचार सेवा, सड़क गुणवत्ता, शिक्षा का गिरता स्तर, क्षेत्र में पेयजलापूर्ति की विकट समस्या, सरकारी कमर्चारियों की निरंकुशता, ब्लॉक कार्यालय में मनरेगा विधायक निधि की प्रतिशत में इजाफा, महंत के लिए चुनोती बनी।

मोदी व हिंदुत्व के नाम पर वोट मांग रहे महंत के सामने काम पर वोट मांग रही अनुकीर्ति इक्कीस साबित हुई। खर्चे के मामले में अनुकीर्ति बहुत पीछे रही, जबकि महंत ने दिल खोल कर खजाना लुटाया। जिस की आवाज भी सुनाई दी। मतों में महंत के पक्ष में इजाफा भी होगा। कांटे की टक्कर में बहुत बड़े अंतर से हार जीत का फैसला नही होगा।

अनुकीर्ति गुसाई के लिए आम जनता की भावना मातृशक्ति के रूप में बनी। मगर हरक सिंह की पुत्रबधू होने का उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा। 5 बार दल-बदल चुके हरक सिंह रावत पर अनेकों आरोप लगे हैं, जिसका कोर्ट के पास भी जवाब नही हैं। यह निराधार आरोप है या सत्य बातें इस पर जवाब अभी नही आया। न्यायालय इसको तय करेगी।

अनुकीर्ति गुसाई की अपनी छवि के चलते बहुत लोगों का रुझान बना रहा। 12 से 14 तारिक के मध्य समूचे विधामसभा में भाजपा का सिस्टम फेल हो गया था, भाजपा के बूथ एजेंट व वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को समझ नही आ रहा था कि, आगे क्या करना हैं और किस से बात करनी है।

बौखलाहट कोंग्रेस कार्यकर्ताओं में भी हुई परंतु 12 तारिक सुबह का सूरज कांग्रेस के लिए फलदायक साबित हुआ और हरक सिंह रावत की फील्डिंग 12 से शुरू हुई, जो 13 रात में जीत की और अग्रसर हो गई। आपको भी जानकारी होगी कि, हरक सिंह अजेय माने जाते हैं और इस बार भी अजेय ही रहेंगे।

हार जीत का फैसला अब मत पेटी में बंधा हैं। 10 मार्च को पता चलेगा कि, किस की कुण्डली में राजयोग हैं। आने वाले 10 मार्च को लैंसडाउन से जिसके भी सिर जीत का सेहरा बंधेगा, वह भावी कैविनेट मंत्री होगा और हारने वाले का राजनीतिक जीवन यहीं खत्म हो जाएगा। हारने वाले उम्मीदवार की अनेकों पीढ़ी राजनीति से सन्यास ले लेगी।