आपदा विभाग में करोड़ों का गबन। जांच की मांग
भाजपा के वरिष्ठ नेता रविन्द्र जुगरान ने आपदा प्रबन्धन विभाग के दो संविदा अधिकारीयों पर सरकारी धन के गबन के गंभीर आरोप लगाते हुये मुख्य सचिव, सचिव कार्मिक, सचिव वित्त, सचिव आपदा प्रबन्धन और अपर सचिव आपदा प्रबन्धन को पत्र दिया है।
जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि, आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन केंद्र में संविदा में कार्यरत अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला और वित्त अधिकारी के०एन०पाण्डे (सेवानिवृत) ने डाक खर्च और कार्यालय व्यय के नाम पर हर माह लाखों रूपये एडवांस लेकर उपनल से नियुक्त कार्मिक महाबीर प्रसाद चमोली (इनका देहांत हो चुका है) के निजी बैंक अकाउंट में 10 वर्ष में 90 लाख से अधिक की सरकारी धनराशी जमा करवाई और फर्जी कूरियर के बिलों, फर्जी बेकरी और खाने के बिलों तथा पेट्रोल के बिलों से समायोजन करके इस धनराशी का गबन किया गया है।
इसके अलावा जुगरान ने इस पत्र में शिकायत की है कि, संविदा में कार्यरत अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला और वित्त अधिकारी के०एन०पाण्डे (सेवानिवृत) ने बिना शासन की अनुमति के 32 लाख रुपय ग्रैचुटी के नाम पर निर्गत किये है।
इन दोनों संविदा कार्मिकों ने स्वयं के अनुमोदन से 32 लाख रूपय भारतीय जीवन बिमा निगम को ट्रांसफ़र कर दिये और किसी भी उच्च अधिकारी को इसकी भनक भी नहीं लगी। इसके अलावा बिना अनुमति के फिल्म निर्माण के लिये सरकारी धन का उपयोग करने जैसे गंभीर आरोप भी जुगरान ने लगाये हैं।
जुगरान के अनुसार इन दोनों अधिकारियों द्वारा लगभग 1.5 करोड का अनुमानित गबन किया गया है। अपने पत्र में जुगरान ने मुख्य सचिव व अन्य अधिकारियों से निम्न बिन्दुओं पर जाँच की मांग की है –
1- सबसे पहले यह जाँच की जाये कि इन दोनों कार्मिकों ने प्रत्येक माह 04 बार एडवांस किस नियम के अनुसार लिया, और हर माह लगभग 1.5 लाख रूपय पोस्टल एंड कूरियर एक्स्पेंसेस और ऑफिस एक्स्पेंसेस के नाम पर कैसे और क्यों निर्गत किये गये। क्या आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र का पोस्टल और कार्यालय व्यय असल में 1.5 लाख रूपय महिना था।
2-10 वर्षों से ये दोनों बिना अनुमति के लाखों रुपय का एडवांस हर माह कैसे निर्गत कर रहे थे, किसी भी उच्च अधिकारी ने इसमें आपत्ति क्यों नहीं की। बिना अनुमति के 32 लाख रूपए ग्रेचुटी के नाम पर कैसे निर्गत कर दिये गये, यदि ग्रेचुटी नियमानुसार ली गयी थी तो उच्च अधिकारियों का अनोमोदन प्राप्त क्यों नहीं किया गया।
3-सरकारी धन से लाखों रूपय हर माह एक उपनल कार्मिक के निजी बैंक अकाउंट में क्यों ट्रान्सफर किये गये। सरकारी कार्य करने के लिये सरकारी धन को किसी के निजी बैंक अकाउंट में ट्रांसफ़र करने का कोई भी नियम नहीं है तो फिर इन दोनों संविदा कार्मिकों को ऐसा करने की अनुमति किस अधिकारी ने प्रदान की।
4-यह जाँच की जाये कि इन दोनों कार्मिकों के अलावा इस गबन घोटाले में विभाग व शासन के कौन कौन से पूर्व व वर्तमान अधिकारी शामिल रहे हैं, उन सभी दोषी अधिकारियों को चिन्हित करके उनपर IPC की धारा 420, 403 और 409 के तहत सरकारी धन के गबन करने का मुकदमा दर्ज किया जाये तथा SIT से जाँच कराकर सभी दोषी अधिकारियों से गबन की गयी धनराशी की तत्काल ब्याज सहित रिकवरी की जाये।
5-गबन में शामिल इन दोनों कार्मिकों से पूछा जाये कि विभाग और शासन के किन किन अधिकारियों और कर्मचारियों को गबन की यह राशि बांटी गयी है, क्योंकि बिना किसी संरक्षण के दो संविदा कार्मिकों के लिये अकेले इतनी बड़ी धनराशी का हर माह गबन करना आसान नहीं है।
6-इस पूरी धनराशी का गबन फर्जी बिलों के माध्यम से किया गया है, फर्जी बिल छपवाना और इस्तेमाल करना IPC की धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध है, यह जाँच की जाये कि फर्जी बिल बुक किस अधिकारी ने छपवायी थी।
7-जुगरान ने यह भी मांग की है कि शासन के उन अधिकारियों पर जाँच कर कार्यवाही की जाये जिन्होंने इन दोनों संविदा कार्मिकों में से एक को DDO के अधिकार प्रदान किये और दुसरे को वित्त अधिकारी नियुक्त किया। इनको लाखों रूपए आहरण करने के वित्तीय अधिकार किस अधिकारी ने प्रदान किये। ग्रेचुटी के लिये 32 लाख का आहरण किया गया, क्या इसके लिये इन दोनों संविदा कार्मिकों को वित्तीय अधिकार प्राप्त थे।
8-वित्तीय नियमों में Parking of Fund की अनुमति नहीं है लेकिन इसके बावजूद भी प्रत्येक माह लाखों रुपय का अग्रिम आहरण करके उक्त धनराशी को उपनल के आउटसोर्स कार्मिक महाबीर प्रसाद चमोली के निजी अकाउंट में जमा करवाया गया, 10 साल के कार्यकाल में 01 करोड 20 लाख से अधिक का गबन हुआ और किसी भी विभागीय अधिकारी को इसकी भनक क्यों नहीं लगी, इसकी भी जाँच की जाये।
9-जुगरान ने यह भी मांग की है कि इन 10 वर्षों में जिन जिन ऑडिटर ने DMMC के अकाउंट का audit किया है और उन्होंने हर साल इतने बड़े स्तर पर हो रहे गबन पर कोई ऑब्जेक्शन नहीं किया और ना ही कोई कार्यवाही की, उन सभी ऑडिटर पर भी गबन को छुपाने के लिये मुकदमा दर्ज किया जाये।
10-जुगरान ने यह भी मांग की है कि अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला और वित्त अधिकारी के०एन०पाण्डे की निजी संपत्तियों की जाँच की जाये, जाँच पूरी होने तक इनके बैंक अकाउंट, EPF अकाउंट व fixed deposite अकाउंट सब सीज किये जाये, और इनसे गबन की गयी पूरी धनराशी ब्याज सहित रिकवरी की जाये।
आपदा प्रबन्धन विभाग में गबन का यह गंभीर प्रकरण है और जनता के टैक्स के धन की इस प्रकार से खुली लूट की गयी है,जिसकी जाँच की जानी बहुत आवश्यक है।
जुगरान ने मांग की है कि इस प्रकरण पर जाँच समिति गठित करके दोषियों से गबन की गयी धनराशी की तत्काल रिकवरी की जाये और दोषियों पर तत्काल दंडात्मक कार्यवाही की जाये।
जुगरान ने अपने पत्र में लिखा है कि दोषियों पर तत्काल कार्यवाही ना किये जाने की स्थिति में वे इस प्रकरण को भी उच्च न्यायालय के समक्ष ले जाने को बाध्य होंगे। अब देखते हैं गबन के इस गंभीर प्रकरण पर शासन कब और क्या कार्यवाही करता है।