मानवाधिकार आयोग पहुंचा पुलिसकर्मी से पैसे लेकर पदक दिलाने का मामला। नोटिस जारी, मांगा जवाब
उत्तराखंड में खर्चा-पानी देकर पुलिसकर्मी को पदक दिलाने का मामला मानवाधिकार आयोग पहुंच गया है। आयोग की पीठ ने इस मामले में पुलिस उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर आख्या आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
बताते चलें कि, मामला इस वर्ष 15 अगस्त 2021 के समय का है। उत्तराखंड में स्वतंत्रता दिवस पर पदक दिलाने के बदले एक पुलिसकर्मी पैसे की मांग कर रहा था। यह अति संवेदनशील मामला जब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया तो पुलिस महानिदेशक ने इसका संज्ञान लेते हुए एसडीआरएफ के पुलिसकर्मी को तत्काल सस्पेंड कर दिया था।
पुलिस जांच में पता चला कि, उक्त सिपाही एसडीआरएफ का बाबू प्रमोद कुमार है। वायरल ऑडियो में एक पुलिसकर्मी द्वारा दूसरे पुलिसकर्मी से कहते हुए सुना जा रहा है कि, अगर कुछ ‘खर्चा पानी’ हो जाए तो उसे पदक दिला सकता है। पदक दिलवाने के बदले पैसे की मांग करने वाला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को इंस्पेक्टर साहब से संबोधन कर नमस्ते कर रहा है और जिस इंस्पेक्टर से बात हो रही है, वह किसी डूंगर सिंह के लिए कह रहा है कि इसे तो पदक देना ही देना है।इस पर दूसरी ओर से पुलिसकर्मी कह रहा है कि, मैडम तो हटाने के लिए बोल रही हैं।
बड़ा सवाल यह है कि, पैसे मांग कर पदक दिलाने का दावा करने वाले पुलिसकर्मी स्वयं की हैसियत से इतनी बड़ी बात नहीं कह सकता है। ऐसे में जाहिर है कि, वह अपने किसी बड़े आका के दम पर ही उक्त बातें कह रहा होगा। ऐसे में कानून एवं व्यवस्था के रखवालों के विभाग में इस तरह का प्रकरण सार्वजनिक होने के बाद उच्चाधिकारियों की भूमिका पर भी प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं।
सवाल यह भी है कि, इतने बड़े और संवेदनशील प्रकरण में मात्र एक पुलिसकर्मी को सस्पेंड कर खानापूर्ति कर दी गई। इससे भी यह मामला और गंभीर बन जाता है।
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्र कुमार ने उत्तराखंड मानवाधिकार आयोग में जनहित याचिका दायर की है। उनका कहना है कि, मामला बहुत ही गंभीर हैं, क्योंकि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पदक दिलाने के नाम पर पैसों की मांग की जा रही है, पदक बेचे जा रहे हैं, जिस कारण अयोग्य व्यक्ति तो पैसे देकर आसानी पदक प्राप्त कर लेगा, किंतु पदक के लिए योग्य व्यक्ति, जो उसका वास्तविक हकदार है, पदक से वंचित रह जाएगा।
ऐसे में यह योग्य कर्मियों के मानव-अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन है। इसलिए राष्ट्रहित, राज्यहित, जनहित में उक्त प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच के आदेश किया जाना न्यायहित में है। उनका कहना है कि, जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
इस पर मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रकरण की गंभीरता एवं संवेदनशीलता को देखते हुए आयोग की डबल बेंच द्वारा शिकायत पर तत्काल सुनवाई की गई। आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति अखिलेश चंद्र शर्मा तथा सदस्य पूर्व आईपीएस राम सिंह मीणा द्वारा कार्यवाही करते हुए पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में आख्या आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया गया है।