सीएम धामी के सामने दलबदलू और बुजुर्ग नेताओं को साथ लेकर चलने की चुनौती
– क्या उत्तराखंड में दोहराया जाएगा 2016 का इतिहास?
– भाजपा विधायकों में हो सकता है असंतोष, धामी के लिए कांटों की राह
– गुणानंद जखमोला
देहरादून। उत्तराखंड में 2016 का इतिहास क्या एक बार फिर दोहराया जाएगा? इस बार पार्टी कांग्रेस की जगह भाजपा होगी। पुष्कर धामी के सीएम बनने की घोषणा होने के साथ ही भाजपा के कुछ विधायकों में भारी असंतोष बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार हाईकमान के आदेश के बाद पुष्कर धामी का मनोनयन तो कर लिया गया लेकिन विधायकों का एक बड़ा वर्ग नाराज हो गया।
यह माना जा रहा था कि, बिशन सिंह चुफाल, बंशीधर भगत या सतपाल महाराज में से किसी एक को चुना जाएगा। सतपाल महाराज को भाजपा में आरएसएस लाॅबी ही लेकर आई लेकिन वो अब तक हाईकमान का विश्वास नहीं जीत सके।
सूत्रों के अनुसार भाजपा ने पुष्कर धामी पर लंबी रेस के घोड़े के तौर पर दांव खेला। धामी युवा हैं और लंबे समय तक पार्टी की सेवा कर सकते हैं। जबकि दौड़ में शामिल अन्य सभी नेता 70 वर्ष की परिधि में थे। हाईकमान ने युवा के तौर पर तीरथ सिंह रावत पर भी दाव खेला था, लेकिन महाशय ने अपने विवादित बयानों से पार्टी की फजीहत करा दी।
कुछ ही दिनों में पार्टी हाईकमान को यह एहसास हो गया कि, गलत चुनाव हुआ। जानकारी के अनुसार संवैधानिक संकट कोई समस्या नहीं थी। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के आंतरिक सर्वे में गंगोत्री में भी सीएम तीरथ हार रहे थे तो हल्द्वानी में भी जीत नहीं सकते थे। ऐसे में हाईकमान को और फजीहत होने का भय था। इसलिए तीरथ को बदलने का फैसला लिया गया।
लेकिन यह फैसला हाईकमान को भारी पड़ सकता है। आज भाजपा में भले ही सीएम उनका हो, लेकिन अधिकांश मंत्री कांग्रेस से आए हें। यानी दलबदल कर। पश्चिम बंगाल में भाजपा की फजीहत देख और टीएमसी के नेताओं की घर वापसी से उत्तराखंड भाजपा के नेताओं को कांग्रेस में घर वापसी की राह का विकल्प है।
पूर्व सीएम हरीश रावत के हाल के बयान से भी लगा है कि, वह बागी नेताओं के प्रति लचीला रुख अपना सकते हैं। उधर, आम आदमी पार्टी बहुत ही आक्रामक तरीके से प्रदेश में घुसपैठ कर रही है। ऐसे में पुष्कर धामी के लिए कम समय में अधिक काम हैं। जनता के बीच पार्टी का जो गलत संदेश गया है उसकी भरपायी भी करनी है।