भगवान शिव के क्रोध से डोली थी पृथ्वी। जानिए किस स्थान पर भगवान शिव किया था पृथ्वी को स्थिर
रिपोर्ट- वंदना गुप्ता
हरिद्वार। कनखल भगवान शिव की ससुराल जिसके बारे में मान्यता है कि, यहां के कण-कण में बसते है। भगवान शंकर इसी कनखल में कई ऐसे सिद्ध स्थान भी है। जिनके बारे में बहुत लोगो को पता नहीं है ऐसा ही एक स्थान है। कनखल में भूमिया के एक पेड़ के नीचे स्थित है। भूमिया मंदिर मान्यता है कि, जब माँ सती ने हवन कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग किया था। उस वक्त भगवान शिव के क्रोध से धरती भी डोल गई थी, देवी देवताओं के आग्रह करने पर इस स्थान पर भगवान शिव ने अपनी मृगछला रखी थी और पृथ्वी डोलना बंद हो गई थी। कहा जाता है कि, जो भी यंहा पर सर्प की पूजा करेगा उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। पौराणिक काल से ही इस स्थान पर लोग पूजा अर्चना करते आये है। खासकर इस स्थान पर श्रवण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी नाग पंचमी के दिन सर्प पूजा का विशेष महत्व माना गया है। आखिर राजा दक्ष की नगरी कनखल के किस स्थान पर है यह पौराणिक मंदिर पढ़िए हमारी यह खास रिपोर्ट
जीवन में आपके अगर सुख शांति गायब हो गई है। जमीन जायदाद का सुख नही मिल रहा है। आपसी संबंधों में तनाव रहता है। नौकरी व्यापार नही रहा। यानी जीवन मे मृत्यु तुल्य कष्ट भरे पड़े हो तो बस एक बार इस मंदिर में सच्चे मन से नाग देवता की पूजा करने से ये सारे कष्ट जीवन से दूर हो जाएंगे और जीवन मे आ जायेगी खुशहाली देखने मे यह मंदिर अथाह छोटा सा नजर आ रहा है। मगर इस स्थान का सीधा संबंध भगवान शंकर से जुड़ा हुआ है। धर्म के जानकार डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी बताते है कि, इस छोटे से स्थान का बहुत बड़ा महत्व है। जब भगवान शिव की अर्धांगनी माँ सती अपने पिता द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में अपने पति के अपमान को सहन नही कर सकी और यज्ञ कुंड में कूदकर खुद को स्वाहा कर लिया था, तब भगवान शंकर के क्रोध से धरती भी डोलने लगी थी।
धरती को अपने फन पर टिकाये हुए शेषनाग भी डगमगाने लगे थे। पूरी सृष्टि में भय व्याप्त हो गया था तब भगवान शंकर ने देवताओं के आग्रह पर अपने क्रोध पर काबू किया था और कनखल में इस स्थान पर अपनी मृगछला उतार कर रख दी थी, तब भगवान शंकर ने कहा था कि, जो भी इस स्थान पर सर्प देवता की पूजा करेगा। उसके सभी कष्ठ दूर हो जाएंगे। इस स्थान पर एक पेड़ के नीचे स्थित है एक छोटा सा मंदिर जिसमे नाग देवता विराजमान रहते है
डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी बताते है कि, जीवन मे व्याप्त घोर निराशा और कष्टों से बचने के लिए विधि विधान के साथ सच्चे मन से श्रावण मास की शुक्ल पंचमी के दिन यंहा पर नाग देवता की पूजा करनी चाहिए। एक छोटा सा चांदी का नाग बनाकर उसकी पूजा करने से जीवन में खुशहाली लौट आती है।
इस मंदिर में भक्त अपनी खाली झोली लेकर आते हैं और यहां से भरकर जाते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि, इस मंदिर की बहुत मान्यता है। जब माता सती द्वारा हवन कुंड में अपने शरीर का त्याग कर दिया गया था। भगवान शिव के क्रोध से पृथ्वी डोल गई थी। भगवान शिव ने पृथ्वी को बचाने के लिए अपने मृगछला इस स्थान पर रखी थी। उसके बाद पृथ्वी स्थिर हो गई थी। इस मंदिर में आकर जिसकी शादी नहीं होती या अपना मकान नहीं बना पा रहा हो या किसी के बच्चा नहीं हो रहे हो। यहां मन्नत मांगी जाए तो वह पूरी होती है। इस मंदिर में आकर मन को बहुत शांति मिलती है। हरिद्वार देवभूमि है और कई बड़े मंदिर हरिद्वार में स्थित है। मगर इस मंदिर का इतना पुराना इतिहास होने के बावजूद भी इसका जीर्णोद्धार नहीं किया गया।
उत्तराखंड सरकार और हरिद्वार के ब्राह्मण समाज इस मंदिर का जीर्णोद्धार करें श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी है और इस मंदिर में दर्शन करने के लिए लोग आस्था लेकर आते हैं यहां से उनकी सभी मुरादें पूरी होती है। हरि का द्वार हरिद्वार में कई पौराणिक मंदिर है। जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और अपनी मुरादे मांगते हैं तो वहीं राजा दक्ष की नगरी और हरिद्वार की उपनगरी कनखल में स्थापित भूमिया मंदिर में श्रद्धालु अपने जीवन की उत्तल-पुथल को शांत करने के लिए दर्शन करते हैं और उनको इस मंदिर में आकर शांति मिलती है। मगर जिस तरह से हरिद्वार के तमाम बड़े मंदिरों की देख-रेख की जाती है। मगर पुराणिक आस्था का प्रतीक होने के बावजूद भी इस मंदिर की तरफ कोई ध्यान नहीं देता। लोगों की श्रद्धा इस मंदिर से अटूट बंधी हुई है और उनको इससे फर्क नहीं पड़ता कि, मंदिर भव्य है या छोटा। इस मंदिर में कोई भी श्रद्धालु अगर अपनी परेशानी लेकर पहुंचता है तो उसकी सभी परेशानियां दूर हो जाती है।