कागजों पर खानापूर्ति, तमाशबीन बना प्रशासन
– प्रशासन की मिलीभगत से नदियों में अवैध खनन बदस्तूर
रिपोर्ट- गिरीश चंदोला
थराली। जिस प्रशासन के भरोसे राज्य के राजस्व से लेकर जनता की सुरक्षा और उसके हक हकूकों की जिम्मेदारी है, वो प्रशासन किस तरह का कार्य कर रहा है। इसकी एक बानगी थराली में देखने को मिलती है। जहां प्रशासन की मिलीभगत से नदियों में अवैध खनन बदस्तूर जारी है। दरसल मार्च माह में थराली में तीन जगह पर रिवर ट्रेनिग के पट्टे आवंटित हुए थे, जो आधार मूल्य से लगभग 7 गुना महंगे दामों में बिके, जिससे अच्छा खासा राजस्व सरकार को मिला है। लेकिन इस राजस्व की आड़ में स्थानीय प्रशासन खुद ही नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाता नजर आ रहा है। थराली के नगरकोटियाणा के खसरा नंबर 132 मे 1.050 रकबा और कुलसारी मल्लाबगड़ मे खसरा नंबर 606 मे कुल 0.840 रकबा में रीवर ट्रेनिंग के पट्टो में खनन चोरी और कृषि भूमि को नुकसान की संभावना देख ग्रामीणों ने उपजिलाधिकारी से पट्टो के सीमांकन की मांग की थी।
पहले तो खनन पट्टाधारकों ने बिना सीमांकन के ही नदी में बड़ी-बड़ी मशीनें डालकर खनन कार्य शुरू कर दिया। खनिज विभाग द्वारा भी बिना सीमांकन कराये ही रम्मनै भी जारी कर दिए और प्रशासन खामोश बैठा तमाशबीन बना रहा। लेकिन बाद में ग्रामीणों और मीडिया के भारी दवाब को देख प्रशासन ने सीमांकन की प्रक्रिया शुरू कर दी। लेकिन सीमांकन के नाम पर महज एक पटवारी को भेजकर नदी किनारे चार पत्थरो पर लाल पेंट मारकर ही सीमांकन की इतिश्री करवा दी। जबकि खनन नियमावली कहती है कि, खनन पट्टो के चिंन्हीकरण और सीमांकन के समय 5 विभागों की एक कमेटी उपजिलाधिकारी की अध्यक्षता में सीमांकन का कार्य करती है। जिसमे खनन विभाग, वन विभाग, राजस्व विभाग, भूतत्व विभाग और पर्यावरण वैज्ञानिक की उपस्थिति में ही सीमांकन करवाया जाता है।
लेकिन थराली में खनन के इन पट्टो में प्रशासन ने महज एक पटवारी को भेजकर ही सीमांकन करवा दिया और नियम कानूनों को धत्ता बताते हुए पट्टाधारकों को खनन की खुली छूट भी दे दी। वहीं खनन निरीक्षक दिनेश कुमार से सीमांकन की प्रक्रिया के बारे में जब जानकारी ली गयी तो उन्होंने बताया कि, लॉकडाउन के चलते वे जिला मुख्यालय पर ही हैं और जिला प्रशासन द्वारा उन्हें कहीं भी जाने की अनुमति नही दी जा रही है। ऐसे में सीमांकन के लिए थराली नही पहुंच सके और उपजिलाधिकारी थराली द्वारा ही पट्टे का सीमांकन करवा दिया गया। खनन अधिकारी दिनेश कुमार पर वैध खनन को सुचारू रखने और अवैध खनन को भी रोकने की अहम जिम्मेदारी है। बावजूद इसके खनन की अनुमति तो शासन प्रशासन ने दे दी। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार विभाग के अधिकारियों को कार्यालय तक ही कैद करके रखा है।
खनन अधिकारी के इस बयान पर दोबारा गौर करें तो पता चल जाएगा कि, खनन के इस खेल में किस तरह बड़े से लेकर छोटे अधिकारी तक सभी अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं या फिर नियमो को ताक पर रखकर खुद भी चांदी काट रहे हैं। खनन के लिए जिम्मेदार खनन अधिकारी का ये गैर जिम्मेदाराना बयान बताता है कि, प्रदेश में किस तरह नियम कानून से इतर खनन माफियाओं की बल्ले-बल्ले हो रही है। अब खनन अधिकारी ऐसा बयान खुद के बचाव के लिए दे गए या फिर इस बयान के पीछे की कहानी कुछ और ही है। ये तो खुद वे ही जाने लेकिन इतना साफ है कि, विभागीय अधिकारी लगातार अपनी जिम्मेदारियों से बचते नजर आ रहे हैं।
अब दूसरा बयान उपजिलाधिकारी थराली का है। जिन्होंने बताया कि, वे खुद सीमांकन करवाने नही गए उनके द्वारा राजस्व उपनिरीक्षक को पट्टो का सीमांकन करवाने भेजा गया था, साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, खनन की चोरी को रोकने के लिए उनके द्वारा भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि, जो अधिकारी खनन पट्टो के सीमाकंन के लिए ही खुद जिम्मेदारी से बचते हुए एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं, वो खनन की चोरी किस तरह रुकवाएँगे जबकि सीमांकन ही नियमपूर्वक नही हो सके।