उत्तराखंड: मार्निंग वॉक में घूमकर लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंस का खुला उल्लंघन

मार्निंग वॉक में घूमकर लॉकडाउन व सोशल डिस्टेंस का खुला उल्लंघन

– उपजिलाधिकारी नहीं उठाते फोन

रिपोर्ट- मनोज नौडियाल
कोटद्वार। कोरोना महामारी के चलते जहां पूरे भारत में लाॅकडाउन चल रहा है, वहीं लोग इस लाॅकडाउन को मजाक समझकर इसकी धज्जियाँ उडाने से बाज नहीं आ रहे है।लाॅकडाउन के दौरान केवल आवश्यक सामग्रियों के लिए समय निर्धारित किया हुआ है। किंतु लोग सुबह पांच बजे से ही सडको पर एकट्ठा होकर चलने लगते है। जिससे कि, लाॅकडाउन के साथ-साथ सोशल डिस्टेंस की भी धज्जियाँ उड़ाई जाती है। इसके अलावा लोग निर्धारित समय में भी बेवजह घर से निकल रहे हैं। एक बार में जरूरत का सामान नहीं खरीद रहे।

ऐसे में लॉकडाउन का खुला उल्लंघन हो रहा है और प्रशासन भी कुछ नहीं कर पा रहा। सुबह के वक्त जो 6 घंटे की छूट दी गई है। उसका दुरुपयोग हो रहा है। ऐसे में कोरोना से जंग कैसे जीती जाएगी। यह सवाल भी बन रहा है कि, अगर इसी तरह से जोखिम उठाया गया तो यहां भी स्थिति बिगड़ने से नहीं बच सकती। सुबह के वक्त 7 बजे से लेकर दोपहर एक बजे तक खरीदारी के लिए छूट दी गई है। जिसका दुरुपयोग हो रहा है। लोग एक बार में राशन का सामान नहीं खरीद रहे, बार-बार दुकान पर जाने की आदत से बाज नहीं आ रहे।

वहीं ठेले वाले गली-गली सब्जी बेच रहे हैं। लेकिन फिर भी सब्जीमंडी में भीड़ जुट रही है। वहां सारे मानक ध्वस्त हैं, न तो शारीरिक दूरी का पालन हो रहा है और तमाम लोग बिना मास्क के भी पहुंच रहे हैं। सब्जी बेचने वाले दस्ताने नहीं पहन रहे, तमाम ठेले वाले मास्क नहीं लगाते, इन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं। सुबह के समय सड़कों पर इस कदर भीड़ उमड़ रही है कि, मानो लॉकडाउन है ही नहीं। इसके अलावा लोग गली-कूचों में यूं ही घूमते रहते हैं। जिसके जब मन में आता है तब वह बाहर निकल आता है।

ऐसे में अगर मास्क नहीं है तो भी लोग खुले घूम रहे हैं। सवाल यह है कि, कोरोना का जब इतना बड़ा खतरा मंडरा रहा है तो यह लापरवाही आखिर क्यों की जा रही है? लोगों को क्यों अपनी जान की परवाह नहीं? ऐसे लोग खुद के अलावा दूसरों की जान के भी दुश्मन बन रहे हैं। इसकी सूचना देने के लिए जब उपजिलाधिकारी कोटद्वार को फोन किया जाता है, तो वह फोन उठाने की जहमत भी नहीं करते।जबकि पूरे शहर की जिम्मेदारी उपजिलाधिकारी पर निर्भर है फिर भी न जाने उपजिलाधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से क्यों पीछे हट रहे है?