Article: उत्तराखंड में एक मिसाल-ए-इंसान है समाजसेवी हाजी सलीम

Haaji saleem ahmad

उत्तराखंड में एक मिसाल-ए-इंसान है हाजी सलीम

 

देहरादून। उत्तराखंड प्रदेश के निवासी स्व मुल्तान अहमद के घर में सन 1957 में जन्में हाजी सलीम अहमद आज एक बड़े समाजसेवी के रूप से जनता में जाने जाते है। जिन्हें कई बडी समितियों के द्वारा कई मर्तबा सम्मान पुरुस्कार देकर सम्मानित भी किया जा चुका है। जिन्होंने समाज सेवा को अपना कर्म-धर्म माना और अपने जीवन की आधी उम्र समाज की सेवा करने में गुजार दी। समाज सेवा से अपनी पहचान बनाने वाले हाजी सालीम जिन्हें आज समाज का हर एक व्यक्ति बखूबी जानता और पहचानता है। सलीम ने समाज के लिए बहुत से सराहनीय कार्य किए व क्षेत्रवासियों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर खड़े रहते हैं।

 

चाहे बात गरीब लड़कियों की शिक्षा की हो या उनकी शादी की, सलीम आर्थिक सहायता करने में कोई गुरेज नहीं करते। इतना ही नहीं समाज में बेसहारा लोगों की सहायता करने के लिए हमेशा खड़े नजर आते है। अगर बात करें उत्तराखंड में हाल ही में आई आपदा की तो उसमें भी मौके पर पहुंच कर हाजी सलीम ने मौके का जायजा लिया और खाने-पीने की सामग्री सहित जो बन सका वहां के लोगों के लिये किया। केरल आपदा में भी बेघर हुए पीड़ित लोगों के लिए राहत सामग्री भेजने में हाजी ने अपना एक बड़ा सहयोग दिया था। सिर्फ इतना ही नहीं कौमी एकता बनाए रखने में भी हाजी का एक बड़ा योगदान रहता है।

 

ऐसे लोग समाज में बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। एक खास बातचीत के दौरान हाजी सलीम ने बताया कि, ये बात तो सबको मालूम है कि, समाज में गरीबी तो कभी खत्म नहीं होगी पर अपनी ओर से गरीबी का खात्मा करने की मैंने अपने मन में बहुत पहले ही ठान ली थी। क्योंकि मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, जब में स्कूल जाया करता था तो वहाँ कई बच्चे अच्छे कपड़े पहन कर आते थे, नई किताबें कॉपियां लेकर आते थे, तो कुछ बच्चें मेरे जैसे ही गरीब हुआ करते थे। एक दिन मैं खाली बैठा सोच रहा था कि, आखिर समाज में गरीबी आयी कैसे और इसका खात्मा गर करना हो तो कैसे किया जा सकता है।

 

फिर ज्यों-ज्यों मैं बड़ा हुआ तो मुझे ज्ञात हुआ कि गरीबी का खात्मा हमारे देश में कभी नहीं हो सकता। यह एक ऐसी महामारी आज के समय में बन गयी है कि, जिसको खत्म करना मुमकिन ही नहीं नमुमकिन है। इसलिए मेरे पास से जब भी जितना बनता मैं गरीब लोगो की सहायता में देता हूँ, और पुरजोर कोशिश करता हूँ की अधिक से अधिक गरीबों की सहायता कर मैं गरीबी को दूर करूँ। मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना है कि, कोई भी परिवार किसी दिन भूखा न सोने पाए, कोई भी बच्चा स्कूल जाने से न रह जाये, या किसी बेटी की शादी किसी वजह से न रुक जाए इसलिए जितना मुझसे बनता है में करता हूँ बाकी कुछ अन्य लोगों से भी गुजारिश कर सहायता में सहयोग कर देता हूँ।

 

अपनी बात को जारी रखते हुए हाजी ने यह भी बताया कि, मैंने अपने जीवनकाल में कई बड़ी संस्थाओं में भी समाजसेवा करने के लिए अपना सहयोग दिया है। जिनमें उत्तरांचल उर्दू अकैडमी, इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी, इदारा शबाब-ए-इस्लामी, मदरसा दारुल उलूम रहीमा, अस्मा ग्रामीण विकास समिति, नई दिशा, जनहित ग्रामीण विकास समिति, युवा कल्याण एवं प्रादेशिक विकास दल जैसी विभिन्न संथाओं में रहकर अपनी सेवा दी है, और इन सभी संस्थाओं द्वारा मुझे सम्मानित कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। इन सभी कामों के साथ ही लाइब्रेरी कंपलेक्स मेहूवाला माफी देहरादून की कमेटी में एक सदस्य के रूप में हाजी कई सालों से जुड़े हुवे हैं, तथा मदरसे और उलेमा हजरत की खिदमत के नेक कार्य को भी हालफिलहाल अंजाम दे रहे हैं।

 

बता दें कि, हाजी सलीम पूर्व में ग्राम पंचायत मेहुवाला माफी के सदस्य तथा उप प्रधान भी रह चुके हैं। जिसके दौरान उन्होंने क्षेत्रवासियों की हर प्रकार की समस्याओं को दूर का पूरा प्रयास किया है। वर्तमान समय में भी समाजसेवी के रूप में आम जनमानस की समस्याओं को उचित मंच पर उठाकर उनके निराकरण का प्रयत्न हाजी लगातार करते रहते हैं। समाज की सेवा में हर वक्त मजबूर रहना, मस्जिद मदरसों और उलेमा से जुड़े रहना, समय-समय पर जो गरीबों की सहायता के लिए बन सके करना, उत्तराखंड समाजवाद व क्षेत्रवासियों की विभिन्न प्रकार की समस्याओं का निस्वार्थ समाधान करना ही हाजी ने अपना धर्म-कर्म और कर्तव्य बताया।