Exclusive: आखिर आईएएस के पद पर क्यों विराजमान है पीसीएस अधिकारी

आखिर आईएएस के पद पर क्यों विराजमान है पीसीएस अधिकारी

 

– क्या यही है त्रिवेंद्र सरकार का जीरो टॉलरेंस

देहरादून। उत्तराखंड का ये दुर्भाग्य है कि, आईएएस के पद पर पीसीएस अधिकारियो को तैनात कर दिया जाता है। जबकि सूचना की नियमावली में महानिदेशक का पद शासन में सचिव स्तर के अधिकारी के लिए आरक्षित किया गया है।

 

अब ज्वलंत सवालयह उठता है कि, क्या उत्तराखंड के शासन में ऐसा काबिल कोई आईएएस अधिकारी नही है जो सूचना विभाग को संभाल सके। ऐसा लगता है शायद मुख्यमंत्री को किसी आईएएस पर भरोसा नही रहा जो उनकी छवि बिगाड़ने वालो को सुधार सके। मुख्यमंत्री के जीरो टॉलरेंस को सूचना में मेहरबान की मेहरबानी से हवा में उड़ाया जा रहा है। लाखो रुपये जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स के रूप में आये धन को एक चैंनल को 50 लाख दे डाले, मुख्यमंत्री के सलाहकार को एक करोड़, दिल्ली के पत्रकार को 75 लाख ब्रांडिंग के लिए है न गज़ब

 

सिर्फ इतना ही नहीं कई समाचार पत्रों नियमित कर नियमावली का पालन शत प्रतिशत कर रहे थे। उनके बिना कारण विज्ञापन रोक दिए क्योकि, सरकार की कमियां जो लिख रहा है उसकी कलम की आवाज को दबाने की साजिश के सूत्रधार ये विभाग के अधिकारी।

नियमावली में नहीं फिर भी पत्रकार से पूछा जाता है अपराधी हो

अखबार को सूचीबद्ध करने के नियम नियमावली में अलग और सूचना विभाग के जिलों में कई सालों से सूचना अधिकारी के पदों पर बैठे लोग मेहरबान के नाम पर पत्रकारों को धमकाने में लगे अपनी मर्जी का बनवा रहे हैं नियम।मेहरबान पर इतनी मेहरबानी कही मुख्यमंत्री को भारी न पड़ जाये। मुख्यमंत्री की सोच छोटे से छोटा पत्रकार महानिदेशक से मिल कर अपनी समस्या हल करवा सके। घमंड के मेहरबान मिलना तो दूर फ़ोन उठाने में भी अपनी तौहीन समझते हैं। तमाम कामो में व्यस्त इतने ही है, तो सूचना महानिदेशक का पद क्यों नही छोड़ देते।

जब पत्रकारों से मिलने का समय ही नही है उनके पास आखिर होगा भी कैसे? खनन के खंन्नं का भी तो सवाल है।विधानसभा सत्र मे कांग्रेस की नेता प्रतिपक्ष व विधायक जरूर इस मुद्दे को सदन में उठाये पत्रकार के लिए नियमावली का पालन अनिवार्य तो फिर अधिकारियों के लिए क्यों नही?

 

क्या यही है त्रिवेंद्र सरकार का जीरो टॉलरेंस

आइए सरकार की दोहरी नीति का हम सब मिलकर करते हैं विरोध। सभी साथी 11:00 बजे सूचना निदेशालय पहुँचे। जुल्म करने वाला तो दोषी है ही, सबसे बड़ा दोषी वह भी है जो चुपचाप जुल्म को सहता है।

सूचना का एक उप निदेशक नियमावली के खेल को खेल के कैसे बन बैठा करोड़ो का मालिक? जिस अधिकारी ने चढ़ाई सीढ़ी, उसको कैसे बनाया झंडू बाम। अब इन बड़े साहब का नंबर तैयार है आप सब को कराएंगे रूबरू।

आज 11 बजे श्रमजीवी पत्रकार यूनियन द्वारा सूचना निदेशालय के निर्जीव हो चुके अधिकारियों के समक्ष अमृतधारा विसर्जन कार्यक्रम की शुरुआत हम आप मिल कर करेंगे।