मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा की प्रथम पंक्ति में हैं भविष्य के नायक
– मंत्रिमंडल विस्तार के संकेत के मायने
– कुँवर राज अस्थाना, संपादक- दिव्य हिमगिरि
देहरादून। त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी खतरे में है, इस बात का ये सबूत है कि, त्रिवेंद्र ने मंत्रिमंडल विस्तार के संकेत दिए। ये 3 सीटें त्रिवेंद्र ने मुसीबत के समय के लिए बचाकर रखी थी। त्रिवेंद्र का ये आखिरी तुरुप का पत्ता है। CAA और NRC के देशव्यापी शोर के बावजूद झारखंड का हाथ से फिसलना भाजपा को मंथन पर मजबूर कर रहा है। भाजपा को हरीश रावत की स्ट्रेंथ का पता है। लाख कोशिशों के बावजूद अगले चुनाव में हरीश रावत को दरकिनार कर पाना कांग्रेस हाईकमान के बूते से भी बाहर है।
संभवतः कोई बहुत बड़े स्ट्रेचर का कांग्रेस नेता प्रभारी महासचिव बनकर उत्तराखंड राज्य की चुनाव कमान संभाले जैसे 2012 में चौधरी बीरेंदर सिंह ने संभाली थी। यही संभावित खतरा है जो भाजपा को मजबूर कर रहा है, नेतृत्व परिवर्तन के विकल्पों पर विचार करने को। उत्तराखंड की डेमोग्राफी और मिज़ाज़ हरियाणा जैसा नहीं बल्कि हिमांचल प्रदेश जैसा है। दिल्ली हारने के बाद भाजपा के खिलाफ एक नई धड़ेबंदी शुरू होने वाली है। ये भी विचारणीय है कि, राममंदिर आंदोलन के बाद हुए हिंसक आंदोलन और गुजरात दंगों के बाद उठे तूफान में भी भाजपा दृढ़ता के साथ खड़ी रही।
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि, CAA और NRC के खिलाफ मचे बवाल में मात्र 10 दिनों के भीतर ही भाजपा की जड़े तक हिल गई। असल में वैश्विक परिदृश्य ने भाजपा को विचलित कर दिया है। जिस ईरान के साथ इराक ने 8 वर्षों तक अमेरिका के सहयोग से युद्ध लड़ा आज वही इराक, ईरान-अमेरिका की तनातनी के बीच अपने को अमेरिका से मुक्ति चाह रहा है। दूसरी और ईरान ने भारत से मध्यस्थता की अपेक्षा ज़ाहिर की है। जिस समय विश्व का ध्रुवीकरण हो रहा हो तथा वैश्विक संकट सर पर हो और इन सबके बीच भारत की अर्थव्यवस्था पहले से ही डगमगाई हुई हो तो निश्चित तौर पर भाजपा अपने यहां कुछ ऐसे परिवर्तन ज़रूर करेगी जो एन्टी इनकम्बेंसी के संभावित खतरों को कम करेगी।
हरियाणा में गठबंधन, महाराष्ट्र, झारखंड में आउट होने के बाद सभी चैनल दिल्ली में भी भाजपा को क्लीन बोल्ड दिखा रहे है। बसपा UP में ब्राह्मण और ठाकुर कार्ड खेलने की तैयारी में समाजवादी ओबीसी कार्ड खेलने की तैयारी में है। दिल्ली में क्लीन बोल्ड होने के बाद तो निश्चित तौर पर भाजपा के खिलाफ एक तूफान उठना स्वाभाविक है। ऐसे में शायद उत्तराखंड में भाजपा कुछ सोशल इंजीनियरिंग करने की फिराक में है। मौजूदा परिस्थितियों में यदि उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन होता भी है तो मानकर चलिए की त्रिवेंद्र सिंह रावत को केंद्र में नई पारी खेलने को मिलेगी। त्रिवेंद्र को अपनी यात्रा के बारे में पूर्वानुमान है तभी वह जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रहे है।
भाजपा में ही एक गुट उनको कई तरीकों से बदनाम करने पर जुटा है पर तथ्यविहीन आरोपों से त्रिवेंद्र को भाजपा और आरएसएस में और मजबूती मिली है। त्रिवेंद्र रावत भाजपा की प्रथम पंक्ति के भविष्य के नायक है। उनको पता है इसीलिए नेतृत्व परिवर्तन के अटकलों के बीच मुस्कराते हुए चेहरे के साथ तैयार बैठे है। हो सकता है कि, जाने से पहले वो तीन मंत्री भी बना दें और दूसरे के लिए दुकान का सारा राशन समाप्त करके जाएं।