पूर्व मुख्यमंत्रीयों की सुविधा बहाली के लिए त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश पर विरोध शुरू

पूर्व मुख्यमंत्रीयों की सुविधा बहाली के लिए त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश पर विरोध शुरू

देहरादून। राज्य की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार अब पूर्व मुख्यमंत्रीयों को दी गई सुविधाओं के लिए अध्यादेश ले आई। पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाएं हाई कोर्ट ने वापस लेने का आदेश दिया तो सरकार इन सुविधाओं को बहाल करने के लिए अध्यादेश ले आई। सरकार के इस अध्यादेश का चौतरफा विरोध शुरू हो गया है, साथ ही उत्तराखण्ड के तमाम बुद्धिजीवी सरकार के इस कदम से खासा नाराज हैं। 13 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में गुप-चप तरीके इस प्रस्ताव को लाया गया, जहां विधेयक मंजूरी के लिए राजभवन जाएगा। हालांकि, जिस तरह का विरोध शुरू हो गया है, उससे तो लगता नहीं कि, राजभवन से इस विधेयक को मंजूरी मिल पाएगी। राजभवन पहले ही भांग की खेती वाले विधेयक को लौट चुका है, जाहिर है कि, राजभवन की नजर में भी सरकार की जनविरोधी नीतियां खटकने लगी हैं।

 

पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए सरकारी किराया दरों पर आवास के साथ निशुल्क चालक सहित वाहन, ओएसडी, टेलीफोन सहित तमाम सुविधाएं देने का प्रावधान कर दिया गया है। उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार तथा राज्य आंदोलनकारी महिपाल सिंह नेगी कहते हैं कि, सरकार शर्म करो और जनता प्रतिरोध करो। महिपाल नेगी कहते हैं कि, सरकार भ्रष्टाचार को कानून बनाकर ढक रही है। एक ओर कोर्ट कह रहा है कि, जनता की कमाई को वसूल करो तो सरकार कह रही है कि नहीं करेंगे। इसके लिए कानून लाएंगे। महिपाल नेगी सवाल उठाते हैं कि, सरकार का यह फैसला जनहितकारी है या स्वर हितकारी उत्तराखंड के वयोवृद्ध समाजसेवी और रूलक संस्था के संस्थापक पदम अवधेश कौशल और रूलक संस्था के संस्थापक मुख्यमंत्रियों की सुविधाओं को वापस लिए जाने तथा उनसे अब तक के सारे हर्जे- खर्चे वसूलने के लिए एक जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट गए थे।

कोश्यारी और बहुगुणा पर सरकार का 84 लाख रु कर्ज

हाईकोर्ट मे सरकार केस हार गई तो फिर पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाएं बहाल करने के लिए अध्यादेश ले आई है। गौरतलब है कि, अध्यादेश के प्रभावी होने के साथ ही न्यायालय का यह निर्णय लागू नहीं हो पाएगा और पूर्व मुख्यमंत्रियों को वैयक्तिक सहायक, विशेष कार्य, अधिकारी, वाहन, वाहन चालक और तमाम तरह के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, चौकीदार, माली, टेलीफोन, अटेंडेंट और अन्य सुरक्षा गार्ड आदि की सुविधाएं मिलेंगी। पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी आवासों की मरम्मत का खर्च भी अब सरकार उठाएगी और पूर्व मुख्यमंत्रियों को पेंशन भत्ता और अन्य सुविधाएं के साथ-साथ बिजली पानी और सीवर शुल्क का भुगतान भी स्वयं सरकार करेगी। हर पांच साल के कार्यकाल में दो मुख्यमंत्री बदलने वाले उत्तराखंड पर यह एक बड़ा आर्थिक बोझ है।

 

अब सवाल यह है कि, एक ओर सरकार हर 15 दिन में खुले बाजार से करोड़ो रुपए कर्ज़ उठा रही है, वहीं दूसरी ओर न्यायालय के आदेश के बावजूद इस तरह की फिजूलखर्ची के लिए बाकायदा अध्यादेश ला रही है। सरकार के इस निर्णय पर वरिष्ठ अध्यापक तथा लेखक मुकेश प्रसाद बहुगुणा तंज कसते हुए कहते हैं कि, इस तरह की दरियादिली उत्तराखंड राज्य बनाने वालों के लिए भी हो तो क्या बात हो। इसके बाद सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को किराया वसूली का नोटिस जारी कर दिया था। इस मामले में दो पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा ने अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। न्यायालय ने दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी, अगर आधिकारिक सूत्रों की मानें तो कोश्यारी पर सरकार का 47 लाख रुपये और बहुगुणा पर 37 लाख रुपये किराया बकाया है। प्रदेश सरकार जो अध्यादेश लाई है, उसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को बड़ी राहत दी गई है।

 

कई देशों में राष्ट्राध्यक्षों को पद से हटाने पर नही दी जाती सुविधाएं फिर उत्तराखण्ड में क्यों?

सरकार के इस कदम से लोगों के मन में त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पनप रहा गुस्सा और तेज हो चला है। हर रोज कर्ज के दलदल में समाते जा रहे उत्तराखण्ड में इस तरह के फैसले के पक्ष में एक भी व्यक्ति खड़ा नहीं है और न ही वित्त विभाग इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए की जा रही इस फिजूलखर्ची के पक्ष मे है। हाल ही में अपर जिला सूचना अधिकारी के पद से रिटायर हुए शक्ति मोहन बिजल्वाण भी कहते हैं कि, यह अध्यादेश लाना न्यायालय के निर्णय का निरादर करना है। एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं, कर्मचारियों और अन्य योजनाओं के लिए धन की कमी का रोना रोती रहती है, ऐसे में इस निर्णय पर जनता का निर्णय क्या होगा यह समय बताएगा। सवाल यह भी है कि, कई देशों में तो राष्ट्राध्यक्षों तक को पद से हटने के बाद यह सुविधा नहीं मिलती फिर अदने से राज्य में पूर्व मुख्यमंत्रियों को क्यों? आखिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत यह अध्यादेश किस की मांग पर और क्या सोच कर लाए। यह सरकार के मानसिक दिवालियापन की एक और निशानी है।

 

देहरादून की नदियों को कब्जाने वाले अतिक्रमणकारियों के लिए अध्यादेश लाने वाले सीएम त्रिवेन्द्र की छवि उत्तराखण्ड विरोधी हो गयी है। इसके बाद भांग की खेती के लिए अध्यादेश, हिलटॉप दारू की फैक्ट्री खोलने का निर्णय तथा अब पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाओं के लिए हाईकोर्ट में हारने के बावजूद अध्यादेश लाने जैसे फैसले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की हनक और सनक के कुख्यात उदाहरण हैं। जाहिर है कि, सरकार के इन फैसलों से भाजपा के वरिष्ठ नेता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक नाराज हैं।