सरकारी कर्मचारी को पसंदीदा पोस्टिंग का अधिकार नहीं, शिक्षिका की याचिका खारिज
नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपनी पसंद के स्थान पर तैनाती का निहित अधिकार नहीं है।
यह टिप्पणी अदालत ने एक प्राथमिक स्कूल की सहायक अध्यापिका के तबादले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए की। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने की।
पदोन्नति के बाद स्थानांतरण, शिक्षिका की याचिका खारिज
याचिकाकर्ता कमला शर्मा 1999 से जसपुर (ऊधम सिंह नगर) के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात थीं।
18 अगस्त 2025 को उन्हें सरकारी जूनियर हाईस्कूल में सहायक अध्यापिका के पद पर पदोन्नत किया गया और गदरपुर ब्लॉक के बलराम नगर में स्थानांतरित कर दिया गया।
इस ट्रांसफर को चुनौती देते हुए उन्होंने पहले भी एक याचिका दायर की थी, जिसे 29 अगस्त 2025 को निपटा दिया गया था। इसके बाद विभाग में प्रस्तुत उनका प्रत्यावेदन भी 11 नवंबर 2025 को खारिज कर दिया गया।
सरकार का पक्ष: विकल्प नहीं दिया, इसलिए मजबूरी में ट्रांसफर
राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि पदोन्नति के बाद शिक्षिका को स्कूलों के विकल्प चुनने का अवसर दिया गया था, लेकिन उन्होंने कोई विकल्प नहीं दिया। इसलिए सक्षम प्राधिकारी के पास उन्हें बलराम नगर स्थानांतरित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
सरकार ने यह भी जानकारी दी कि 17 मार्च 2021 को भी कमला शर्मा को सहायक अध्यापिका पद पर पदोन्नत किया गया था, लेकिन अपनी पसंद का स्थान न मिलने के कारण उन्होंने उस समय ज्वाइनिंग से इनकार कर दिया था।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया हवाला
याचिका को खारिज करते समय हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ‘राजेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा जताया। अदालत ने साफ कहा कि,
- किसी सरकारी कर्मचारी को पसंदीदा स्थान पर बने रहने का अधिकार नहीं है।
- प्रशासनिक आवश्यकता के आधार पर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जा सकता है।
- ट्रांसफर सेवा शर्तों का हिस्सा है और इसका पालन हर कर्मचारी के लिए अनिवार्य है।
कोर्ट ने कहा कि यदि सरकारी कर्मचारी अपनी पसंद की पोस्टिंग पर अड़े रहें तो शासन का सुचारू संचालन संभव नहीं है। इसलिए अदालत ने कमला शर्मा की याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया।


