उत्तराखंड की घाटियों में बढ़ता जंगल का ख़तरा। इंसान बनाम वन्यजीव संघर्ष की दर्दनाक हकीकत
उत्तराखंड। पहाड़ों का शांत, सुरम्य और आध्यात्मिक प्रदेश। लेकिन इस सुंदर भूभाग का एक कड़वा सच है, बढ़ता हुआ मानव–वन्यजीव संघर्ष, जिसने पहाड़ के जनजीवन को खौफ, चीखों और अनिश्चितताओं की गिरफ्त में ले लिया है।
कभी जंगलों में रहने वाले जानवर अब गांवों की चौपालों, खेतों और सड़कों तक पहुंच गए हैं और इंसानी दुनिया अचानक उनकी हिंसक प्रतिक्रिया का सबसे बड़ा मैदान बनती जा रही है।
यह सिर्फ घटनाओं की खबर नहीं, यह एक संकेत है कि जंगल और इंसान के बीच संतुलन खतरनाक स्तर पर टूट चुका है।
डोईवाला का दहला देने वाला सच: मॉर्निंग वॉक पर आई मौत
रविवार सुबह 60 वर्षीय मनीराम थापा रोज की तरह सोंग नदी पुल के पास टहलने गए थे। लेकिन इस बार जंगल भी उनके साथ चल पड़ा था, एक उग्र हाथी के रूप में।
कुछ ही सेकंड में हाथी ने हमला कर दिया। उठाकर पटक दिया। जैसे किसी ने जिंदगी और मौत के बीच की दूरी मिटानी हो।
स्थानीय लोग चिल्लाए, हाथी पीछे हटा और मनीराम को गंभीर हालत में हिमालयन हॉस्पिटल ले जाया गया। आज डोईवाला के लोग कहते हैं, “जंगल हमारे घर तक आ चुका है, अब डर लेकर जीना मजबूरी है।”
अल्मोड़ा: 24 घंटे में दो हमले, रात होते ही ‘गश्त’ करते तेंदुए
द्वाराहाट और कांडे गांव के लोग रोज शाम एक ही सवाल पूछते हैं, “आज तेंदुआ किस रास्ते से आएगा?” असगोली में रमेश अधिकारी के चेहरे पर तेंदुए के पंजों के निशान आज भी ताजा हैं।
उसी दिन कांडे गांव में नवीन कांडपाल बाल-बाल बचे, लेकिन डर की छाया गाँव की दीवारों पर आज भी तैर रही है। वन विभाग राहत राशि बांट रहा है, लेकिन ग्रामीणों की रातों की नींद कौन लौटाएगा?
राज्यव्यापी संकट: मौत की गिनती रुकने का नाम नहीं ले रही
उत्तराखंड में पिछले 25 सालों में 1,200 से अधिक लोग वन्यजीवों के हमलों में मारे गए। यह सिर्फ आंकड़े नहीं, ये हर पहाड़ी परिवार की टूटती कहानी है।
- 543 मौतें गुलदार के हमले में
- 250 से अधिक सांप के डसने से
- करीब 250 मौतें हाथियों के हमलों में
- 176 मौतें भालू और बाघ के हमलों में
यह बताता है कि पहाड़ की कठिन जिंदगियों को एक नई परत मिली है, जंगल का भय।
वन्यजीवों पर सियासत: समाधान कम, बयान ज्यादा
- कांग्रेस कह रही है-
“अगर सरकार ने कुछ नहीं किया तो हम खुद ग्रामीण टास्क फोर्स बनाएंगे।” - बीजेपी कह रही है-
“कांग्रेस इसे राजनीतिक मुद्दा बना रही है।” - मगर जनता पूछ रही है-
“हम मर रहे हैं, और आप राजनीति कर रहे हैं?”
चंपावत: सांस रोक देने वाली दहशत का अंत, आदमखोर गुलदार पकड़ा गया
मंगोली गांव में 12 नवंबर की रात गुलदार ने भुवन राम की जान ले ली थी। इसके बाद गांव में सन्नाटा था, सुनसान रास्ते थे, और हर घर में यह सवाल है कि, “कब पकड़ा जाएगा?”
वन विभाग ने चार पिंजरे, दर्जनों ट्रैप कैमरे और ड्रोन लगाए। रविवार सुबह 5 बजे वह नर गुलदार आखिरकार पिंजरे में कैद हो गया। यह राहत का पल था, लेकिन डर पूरी तरह खत्म नहीं।
हाथी क्यों गांवों में घुस रहे हैं? तेंदुए क्यों घरों तक आ रहे हैं?
विशेषज्ञों के मुताबिक:
- जंगलों में मानवीय दखल तेजी से बढ़ा
- हाथियों और गुलदारों के कॉरिडोर कट गए
- खनन, सड़कें, निर्माण—इन सबने प्राकृतिक रास्ते कब्जा लिए
- अब जानवर भोजन और रास्तों के लिए मानव बस्तियों में घुस रहे हैं
यानी इंसान की प्रगति ने जंगलों को जकड़ा और जंगल इंसानों को।
यह सिर्फ संघर्ष नहीं, एक चेतावनी है
उत्तराखंड आज दो दुनियाओं के बीच फंसा प्रदेश बन गया है। जंगल की मजबूरी और इंसान की बढ़ती पैठ। अगर अब भी राहत, सुरक्षा, और वन प्रबंधन के आधुनिक उपाय नहीं अपनाए गए तो आने वाले दिन और अधिक डरावने होंगे।
क्योंकि याद रखिए- जब जंगल सिकुड़ता है, संघर्ष बढ़ता है और जब संघर्ष बढ़ता है तो इंसान और जानवर दोनों हारते हैं।

