बिग ब्रेकिंग: कॉर्बेट टाइगर शिकार केस। सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल पुराने स्टे पर जारी किया नोटिस, केंद्र–राज्य से जवाब तलब

कॉर्बेट टाइगर शिकार केस। सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल पुराने स्टे पर जारी किया नोटिस, केंद्र–राज्य से जवाब तलब

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के शिकार और कथित मिलीभगत की जांच पर लगी सात साल पुरानी रोक हटाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार, उत्तराखंड सरकार और पूर्व मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीएस खाती को नोटिस जारी किया है।

अदालत ने तीनों पक्षों से तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। मामला अब 12 दिसंबर को फिर सुना जाएगा।

सोमवार को यह मुद्दा मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की जगह अब पद पर बैठे सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उठाया गया।

वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा और वकील गोविंद जी ने अदालत को बताया कि सीबीआई की प्रारंभिक जांच में वन अधिकारियों और शिकारी गिरोहों की कथित मिलीभगत के संकेत मिलने के बावजूद जांच 2018 से रुकी पड़ी है।

पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती की ओर से पेश वकील ने कहा कि सीबीआई की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कुछ वन कर्मियों की संलिप्तता के प्रमाण मिले हैं, लेकिन उस अधिकारी ने ही स्टे ले लिया था जिसकी भूमिका पर सवाल उठे थे।

वहीं अधिकारियों के वकीलों ने दलील दी कि याचिका देरी से दाखिल की गई है और आरोप गंभीर हैं, इसलिए उन्हें जवाब देने के लिए समय मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया।

7 साल पुराना मामला क्यों चर्चा में?

इस मामले की शुरुआत तब हुई थी जब 4 सितंबर 2018 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिछले वर्षों में कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में हुई बाघों की संदिग्ध मौतों और शिकार के मामलों की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।

हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि जांच का केंद्र बिंदु यह भी हो कि कहीं वन अधिकारियों और शिकारी गिरोहों के बीच गठजोड़ तो नहीं है।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने 3 अक्टूबर 2018 को प्रारंभिक जांच शुरू की थी। जांच में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट और अन्य विशेषज्ञ इनपुट का भी उपयोग किया गया।

इसी दौरान 2018 में तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीएस खाती ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और कहा कि उन्हें हाईकोर्ट में अपनी बात रखने का पूरा अवसर नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर 2018 को एक अंतरिम स्टे दे दिया, जिससे जांच थम गई।

सीबीआई की प्रारंभिक जांच में क्या मिले थे संकेत?

सीबीआई की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार—

  • कुछ वन अधिकारी और वन कर्मचारी शिकारी गिरोहों के संपर्क में पाए गए।
  • कई बाघों की मौत प्रकृतिक नहीं थी।
  • तस्करी के नेटवर्क में कुछ स्थानीय अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध थी।

अतुल सती का कहना है कि महत्वपूर्ण तकनीकी रिपोर्टें और वैज्ञानिक तथ्य 2018 में कोर्ट के सामने पूरी तरह नहीं रखे गए, इसलिए जांच दोबारा शुरू होनी चाहिए।

क्या है कॉर्बेट टाइगर शिकार मामला?

इस मामले का खुलासा 2015 में तब हुआ जब नेपाल में पकड़े गए तस्करों के पास कॉर्बेट से तस्करी की गई बाघ की खाल मिली। 2016 में हरिद्वार एसटीएफ ने एक बड़ी कार्रवाई में 5 बाघों की खाल और 125 किलो हड्डियां बरामद की थीं। इनमें से चार खालें कॉर्बेट के बाघों की ही पाई गईं।

आगे क्या हो सकता है?

अगर सुप्रीम कोर्ट स्टे हटाता है तो—

  • सीबीआई को पुनः जांच शुरू करनी होगी।
  • वन अधिकारियों की भूमिका की गहराई से जांच होगी।
  • पिछले वर्षों में कॉर्बेट और राजाजी पार्क से जुड़े शिकार मामलों के नए खुलासे संभव हैं।

सात साल से अटकी जांच में सुप्रीम कोर्ट का यह नोटिस नए मोड़ का संकेत माना जा रहा है।