वरिष्ठ IFS अधिकारी को RTI में भी नहीं मिली जानकारी, राज्य सूचना आयोग ने PIO को फटकारा
- “सूचना से बचने के बहाने न बनाएं” – राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट का कठोर निर्देश, एक सप्ताह में जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश
रिपोर्ट- राजकुमार धीमान
देहरादून। जब एक वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी को अपनी ही विभागीय कार्रवाई के संबंध में जानकारी हासिल करने के लिए RTI की जद्दोजहद करनी पड़े, तो आम नागरिकों की स्थिति का अंदाज़ा स्वतः लगाया जा सकता है।
ऐसा ही मामला सामने आया है वर्ष 2004 बैच के IFS अधिकारी राहुल का, जिन्होंने शासन से दो अलग-अलग RTI के तहत जानकारी मांगी थी—लेकिन विभाग ने “जांच लंबित होने” का हवाला देकर सूचना देने से इनकार कर दिया।
मामला राज्य सूचना आयोग तक पहुंचा, जहां राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने लोक सूचना अधिकारी (PIO) की दलीलों को खारिज करते हुए स्पष्ट टिप्पणी की कि, “सूचना का अधिकार पारदर्शिता के लिए है, न कि उससे बचने के बहाने खोजने के लिए।”
क्या थी मांगी गई सूचना
IFS अधिकारी राहुल ने RTI में दो बातें पूछीं:
- क्या CBI ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत उनके खिलाफ जांच हेतु धारा 17(क) में राज्य सरकार से अनुमति ली है? — यदि ली है तो उसकी प्रति दी जाए।
- कालागढ़ वन प्रभाग के पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण (जनवरी 2022 के बाद) से जुड़ी अनुशासनिक कार्रवाई की पत्रावली व नोटशीट उपलब्ध कराई जाए।
विभाग का जवाब- “CBI जांच जारी, सूचना नहीं देंगे!”
PIO ने दोनों RTI पर एक जैसा जवाब दिया, “प्रकरण न्यायालय में लंबित है तथा CBI जांच जारी है, इसलिए सूचना नहीं दी जा सकती।”
इस जवाब से असंतुष्ट राहुल ने राज्य सूचना आयोग में अपील की। अपील के बाद CBI अनुमति संबंधी जानकारी तो दे दी गई, लेकिन विभागीय कार्रवाई की जानकारी अब भी रोक दी गई।
सूचना आयोग की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान आयोग ने पाया कि,
- PIO ने जानबूझकर सूचना देने में टालमटोल की।
- मांगी गई जानकारी 2022 की चार्जशीट पर कार्रवाई से संबंधित थी।
- जबकि PIO ने 2025 की नई चार्जशीट का हवाला देकर सूचना टाल दी।
राज्य सूचना आयुक्त ने स्पष्ट किया कि, “यहां सूचना कोई तृतीय पक्ष नहीं, बल्कि संबंधित अधिकारी स्वयं मांग रहा है, फिर बाधा क्यों?”
आयोग ने यह भी कहा कि—
- PIO यह सिद्ध नहीं कर पाए कि सूचना देने से जांच प्रभावित होगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में जांच पूरी करने हेतु 3 माह की समय-सीमा तय की है।
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार यह साबित करना लोक प्राधिकारी का दायित्व है कि सूचना देने से जांच पर क्या असर पड़ेगा
PIO मूल पत्रावली भी आयोग में प्रस्तुत नहीं कर सका। कारण बताया कि, “उच्चाधिकारियों से अनुमति नहीं मिली” लेकिन उच्चाधिकारी कौन थे, यह तक नहीं बताया गया।
स्पष्ट इरादा — सूचना रोकना: आयोग
आयोग ने माना कि PIO की मंशा सूचना साझा करने की नहीं थी। “RTI प्रावधानों और अन्य आदेशों का गलत हवाला देकर अनावश्यक रूप से सूचना अवरुद्ध की गई।”
एक सप्ताह में सूचना देने का आदेश
आयोग ने निर्देश दिया कि, “लोक सूचना अधिकारी एक सप्ताह के भीतर मांगी गई सूचना उपलब्ध कराएं” और स्पष्ट किया कि RTI का उद्देश्य पारदर्शिता को बढ़ावा देना है, न कि सूचना छिपाना।
यह मामला RTI व्यवस्था में दुर्बलता और विभागीय अपारदर्शिता के खिलाफ एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है। जब उच्च अधिकारी को ही अपने खिलाफ की गई कार्रवाई की जानकारी पाने में संघर्ष करना पड़े, तो आम नागरिकों की स्थिति का अंदाज़ा सहज लगाया जा सकता है।

