बिग ब्रेकिंग: हाईकोर्ट के दो बड़े फैसले। FCI अधिकारी के तबादले पर हस्तक्षेप से इंकार, दुष्कर्म के आरोपी को जमानत

हाईकोर्ट के दो बड़े फैसले। FCI अधिकारी के तबादले पर हस्तक्षेप से इंकार, दुष्कर्म के आरोपी को जमानत

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को दो अहम मामलों में फैसले सुनाते हुए साफ संदेश दिया कि सेवा संबंधी प्रशासनिक निर्णयों में न्यायालय दखल नहीं देगा, जबकि कमजोर साक्ष्यों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

FCI अधिकारी भारत भूषण का तबादला मामला

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के हल्द्वानी मंडल कार्यालय में गुणवत्ता नियंत्रण प्रबंधक के रूप में कार्यरत भारत भूषण ने अपने 7 अक्टूबर 2025 के तबादला आदेश को चुनौती दी थी। उन्हें हल्द्वानी से श्रीनगर (गढ़वाल) स्थानांतरित किया गया था।

याचिकाकर्ता का पक्ष

उन्होंने दलील दी कि उनके दो नाबालिग बच्चे और बीमार पिता हैं जिनकी देखभाल उन्हें करनी पड़ती है।

एफसीआई की दलील

भारत भूषण ने हल्द्वानी में चार साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है, और पहले भी 2023 में तबादला आदेश कोर्ट के कारण स्थगित हो चुका है।

कोर्ट का फैसला

न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने कहा कि स्थानांतरण सेवा का स्वाभाविक हिस्सा है और इस पर न्यायिक हस्तक्षेप उचित नहीं। हालांकि, याचिकाकर्ता को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपील (प्रत्यावेदन) देने की छूट दी गई।

दुष्कर्म के दोषी को साक्ष्य के अभाव में राहत

दूसरे मामले में हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के दोषी युवक की सजा निलंबित करते हुए जमानत मंजूर की। विशेष न्यायाधीश पॉक्सो/अपर सत्र न्यायाधीश देहरादून की अदालत ने 28 मार्च 2024 को युवक को दोषी करार दिया था।

हाईकोर्ट में सुनवाई

मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने पाया कि

  • मेडिकल और फॉरेंसिक रिपोर्ट नकारात्मक थीं।
  • पीड़िता के बयान विरोधाभासी और असंगत रहे।
  • जिस होटल में घटना होने का दावा था, वहां पीड़िता के ठहरने के कोई साक्ष्य नहीं मिले।

कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि केवल बयान पर आधारित प्रतीत होती है, जो न्यायसंगत नहीं है। अतः सजा निलंबित कर आरोपी को जमानत पर रिहा किया गया।

हाईकोर्ट ने एक ही दिन में दो महत्वपूर्ण आदेश देकर यह स्पष्ट कर दिया कि, न तो प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप होगा और न ही अधूरे साक्ष्यों पर किसी की स्वतंत्रता छीनी जाएगी।