शिक्षा विभाग की लापरवाही उजागर। कहीं बच्चे स्कूल में बंद, कहीं स्कूल ही नहीं बचा
देहरादून। उत्तराखंड में शिक्षा विभाग की लापरवाही एक बार फिर उजागर हुई है। एक ओर हरिद्वार जिले के रुड़की में शिक्षकों की लापरवाही से एक मासूम बच्चा स्कूल में ही बंद रह गया।
वहीं दूसरी ओर सीमांत पिथौरागढ़ जिले के अनरगांव में पिछले दो साल से बच्चे दुकान में पढ़ने को मजबूर हैं क्योंकि स्कूल भवन अब तक नहीं बना। दोनों घटनाओं ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
रुड़की : स्कूल पर ताला लगाकर घर चले गए शिक्षक, अंदर बंद रह गया छात्र
रुड़की के अंबर तालाब मोहल्ले स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय नंबर-12 में सोमवार को बड़ी लापरवाही सामने आई। छुट्टी के समय एक बच्चा क्लास में सो गया था। शिक्षकों को इसका पता नहीं चला और वे स्कूल पर ताला लगाकर घर चले गए।
कुछ देर बाद बच्चे की रोने की आवाज सुनकर आसपास के लोगों ने पुलिस को सूचना दी। सूचना पाकर मौके पर पहुंची गंगनहर कोतवाली पुलिस ने ताला तोड़कर बच्चे को बाहर निकाला। इस दौरान बच्चा काफी डरा और सहमा हुआ था।
इंस्पेक्टर मनोहर सिंह भंडारी ने बताया कि बच्चे को सुरक्षित परिजनों को सौंप दिया गया है। खंड शिक्षा अधिकारी अभिषेक शुक्ला ने कहा कि शिक्षकों से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा और मामले की जांच चल रही है।
स्थानीय लोगों ने कहा कि अगर समय पर पुलिस न पहुंचती, तो यह लापरवाही गंभीर हादसे का कारण बन सकती थी।
पिथौरागढ़ : दो साल से दुकान में चल रहा स्कूल, खंडहर में तब्दील भवन
वहीं सीमांत जिले पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अनरगांव में एक और शर्मनाक तस्वीर सामने आई है। यहां का प्राथमिक विद्यालय दो साल पहले आपदा में ध्वस्त हो गया था, लेकिन अब तक नया भवन नहीं बन पाया।
बच्चों की पढ़ाई ठप न हो, इसके लिए गांव के निवासी श्याम सिंह ने अपनी दुकान निशुल्क स्कूल चलाने के लिए दे दी। तब से यह विद्यालय एक छोटे से कमरे में चल रहा है।
इस कमरे में पांच कक्षाओं के सात विद्यार्थी एक साथ बैठते हैं, वहीं कोने में शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर पढ़ाते हैं और मिड-डे मील बनाने वाली भोजन माता भी वहीं खाना बनाती हैं।
बीडीसी सदस्य प्रियंका देवी ने कहा, “दुकान के एक कमरे में बच्चे कैसे पढ़ेंगे, यह सोचने वाली बात है। शिक्षा विभाग को तुरंत कदम उठाने चाहिए।”
अभिभावक भागीरथी देवी ने कहा कि अगर यह दुकान भी बंद हो गई तो बच्चों को चार किलोमीटर दूर स्कूल जाना पड़ेगा, जो छोटे बच्चों के लिए असंभव है। एक अन्य अभिभावक मंजू देवी ने चेतावनी दी कि अगर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो ग्रामीण आंदोलन करेंगे।
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी तरुण पंत ने कहा, “नए विद्यालय भवन के लिए बजट प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, स्वीकृति मिलते ही निर्माण शुरू कराया जाएगा।”
प्रणाली पर प्रश्नचिह्न
रुड़की की लापरवाही और पिथौरागढ़ की मजबूरी दोनों ही घटनाएं यह दर्शाती हैं कि, राज्य की शिक्षा व्यवस्था कागजों पर सुधार की बातें करती है, जबकि जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है।
जहां एक ओर शिक्षक अपने कर्तव्य से बेपरवाह हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में बच्चे सुविधाओं के अभाव में शिक्षा से वंचित हैं।
इन घटनाओं ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था सच में “संवेदनशील और जवाबदेह” बनेगी?


 
                     
                    