नंदा देवी राजजात 2026 से पहले वन विभाग में हड़कंप। रेंजर तबादले पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
- रेंज अधिकारी हेमंत सिंह बिष्ट के तबादले पर रोक, DFO से जवाब तलब
देहरादून। उत्तराखंड वन विभाग में नंदप्रयाग रेंज के रेंजर हेमंत सिंह बिष्ट के तबादले को लेकर हाल ही में हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया है। यह तबादला नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 की तैयारी के दौरान DFO कार्यालय को एस्टीमेट न भेजने के आरोप में किया गया था। रेंजर ने कोर्ट में यह दावा किया कि उनके ऊपर लगाए गए आरोप गलत हैं और उन्हें रुद्रप्रयाग वन प्रभाग में अटैच करना उचित नहीं था।
तबादले का विवाद और हाईकोर्ट की भूमिका
मामला नंदप्रयाग रेंज का है, जहां रेंज अधिकारी हेमंत सिंह बिष्ट तैनात हैं। नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 उत्तराखंड का एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इस यात्रा के लिए वन विभाग कई महीनों पहले से तैयारी में जुटा रहता है।
बदरीनाथ वन प्रभाग और वन मुख्यालय के पत्राचार के बाद रेंजर हेमंत सिंह बिष्ट को नंदप्रयाग रेंज से हटाने का आदेश जारी किया गया। आरोप था कि उन्होंने नंदा देवी राजजात यात्रा के लिए आवश्यक कार्यों के एस्टीमेट DFO कार्यालय को नहीं भेजे।
हेमंत सिंह बिष्ट ने हाईकोर्ट में दलील दी कि उन्हें 5 लाख रुपये तक के एस्टीमेट बनाने को कहा गया था, जबकि विभिन्न कार्यों को 5 लाख में विभाजित करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था। उन्होंने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को पूरी तरह से गलत बताया और इस आधार पर अपने तबादले के आदेश को चुनौती दी। कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्काल स्टे जारी कर दिया।
DFO और वन विभाग का पक्ष
बदरीनाथ वन प्रभाग के DFO सर्वेश दुबे ने कहा कि नंदा देवी राजजात यात्रा का कुल 73 किलोमीटर क्षेत्र उनके डिवीजन में आता है। यात्रा अगस्त 2026 में प्रस्तावित है और कार्य को समय पर पूरा करने के लिए स्थानीय लोगों को अवसर प्रदान करने हेतु केवल 5 लाख तक के एस्टीमेट मांगे गए थे। DFO ने यह भी कहा कि यह कदम क्षेत्र में कार्यों की गति बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया था।
वन विभाग की मानव संसाधन की जिम्मेदारी देख रही APCF मीनाक्षी जोशी ने कहा कि न्यायालय के निर्देशों का पालन किया जाएगा और DFO से मांगा गया जवाब जल्द ही प्रस्तुत किया जाएगा।
नंदा देवी राजजात यात्रा और वन विभाग की जिम्मेदारी
नंदा देवी राजजात यात्रा हर बार हजारों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है। इसके दौरान वन विभाग की जिम्मेदारी होती है कि पर्यावरण संरक्षण, जंगल की सुरक्षा, रास्तों और यातायात की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। रेंजर और वन कर्मचारियों की भूमिका इस यात्रा में केंद्रीय होती है।
वन विभाग की तैयारी में समय पर एस्टीमेट तैयार करना महत्वपूर्ण है ताकि यात्रा के लिए आवश्यक उपकरण, सुरक्षा उपाय और स्थानीय सहायता योजनाएँ समय पर लागू हो सकें। ऐसे में रेंजर द्वारा एस्टीमेट न भेजना प्रशासनिक प्रक्रिया में देरी और भ्रम पैदा करता है।
हाईकोर्ट का स्टे और आदेश
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि रेंजर के तबादले पर तत्काल रोक दी जाती है। इसके अलावा कोर्ट ने अगली सुनवाई में वन सचिव को भी उपस्थित होने का निर्देश दिया। यह कदम प्रशासनिक निर्णयों में न्यायिक हस्तक्षेप की एक महत्वपूर्ण मिसाल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के मामलों में स्पष्ट नीति और संवाद की कमी प्रशासनिक अव्यवस्था को जन्म देती है। कोर्ट का हस्तक्षेप सुनिश्चित करता है कि अधिकारियों को अनुचित या बिना कारण तबादला का सामना न करना पड़े।
वन विभाग में तबादलों की परंपरा और पिछले मामले
उत्तराखंड वन विभाग में तबादलों पर हाईकोर्ट का दखल नया नहीं है। इसी महीने भारतीय वन सेवा के अधिकारी पंकज कुमार ने अपने तबादले के खिलाफ याचिका दायर की थी। कोर्ट ने तब भी आदेश पर रोक लगाई थी।
इससे यह स्पष्ट होता है कि वन विभाग में तबादलों और प्रशासनिक निर्णयों में पारदर्शिता और स्पष्टता की आवश्यकता है। अधिकारियों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेना आवश्यक है, ताकि वन कार्यों और धार्मिक आयोजनों में व्यवधान न आए।
विशेषज्ञों की राय और प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता
वन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों से यह सीख मिलती है कि वन विभाग को:
- स्पष्ट एस्टीमेट और कार्य प्रक्रियाएं समय पर तैयार करनी चाहिए।
- अधिकारियों को समुचित प्रशिक्षण और निर्देश देना चाहिए।
- किसी भी तबादले या आदेश से पहले समीक्षा और संवाद किया जाना चाहिए।
- उच्च न्यायालय और लोक शिकायत तंत्र के माध्यम से प्रशासनिक फैसलों में पारदर्शिता लाई जा सकती है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि नंदा देवी राजजात जैसी बड़ी धार्मिक यात्राओं में वन विभाग की जिम्मेदारी केवल प्रशासनिक नहीं है, बल्कि पर्यावरणीय सुरक्षा और स्थानीय समुदाय के हितों को ध्यान में रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
स्थानीय प्रभाव और भविष्य की तैयारी
इस घटना ने वन विभाग और अधिकारियों को यह संदेश दिया है कि प्रशासनिक निर्णयों में पारदर्शिता और समय पर कार्रवाई अनिवार्य है। रेंजर और अन्य अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे विभागीय आदेशों और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों का पालन सुनिश्चित करें।
स्थानीय जनता और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा, जंगल की रक्षा और यात्रा की सुचारु व्यवस्था के लिए आवश्यक संसाधन और पूर्व योजना समय पर उपलब्ध कराना वन विभाग की प्राथमिकता होनी चाहिए।
उत्तराखंड वन विभाग में हेमंत सिंह बिष्ट के रेंजर तबादले के मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक फैसलों में न्यायिक समीक्षा आवश्यक है। कोर्ट द्वारा स्टे लगाने से यह सुनिश्चित हुआ कि अधिकारियों को अनुचित दबाव का सामना न करना पड़े और विभागीय कार्यों में बाधा न आए।
नंदा देवी राजजात यात्रा जैसे बड़े आयोजन में वन विभाग की जिम्मेदारियां अत्यंत संवेदनशील हैं। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए स्पष्ट नीतियां, समय पर एस्टीमेट, अधिकारियों की प्रशिक्षित टीम और न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन आवश्यक है।
देखें आदेश:-

