DM-SSP की भूमिका पर सवाल, हाईकोर्ट ने माँगा चुनाव आयोग का शपथपत्र
नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने जिला पंचायत अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष चुनाव विवाद में आज अहम टिप्पणी करते हुए चुनाव आयोग से पूछा कि उन पाँच सदस्यों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, जिन्होंने बिना अनुमति अपना मत नहीं डाला।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने आयोग को सोमवार तक शपथपत्र दाखिल कर अपना पक्ष स्पष्ट करने के निर्देश दिए।
सुनवाई के दौरान आयोग के अधिवक्ता संजय भट्ट ने बताया कि ऑब्जर्वर की दो रिपोर्टें दी गईं, जिनमें मतदान केंद्र से 100 मीटर के दायरे में शांति व्यवस्था और किसी गड़बड़ी के न होने का उल्लेख है।
हालांकि न्यायालय ने सवाल उठाया कि नियमावली में तो मतदान केंद्र से एक किलोमीटर तक निषेधाज्ञा लागू करने का प्रावधान है, फिर आयोग केवल 100 मीटर की सीमा का पालन कैसे करवा रहा है?
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र पाटनी ने कहा कि चुनाव के दौरान अपहरण और दबाव डालने जैसे गंभीर आरोपों पर पाँच–छह एफआईआर दर्ज की गईं, मगर मतदान प्रभावित करने वाले इन मामलों पर आयोग ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। उन्होंने पुनर्मतदान की मांग को भी दोहराया।
वहीं नव-निर्वाचित अध्यक्ष दीपा दरमवाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद वशिष्ठ ने कहा कि विपक्ष के पास 15 प्रमाणपत्र मौजूद हैं, जिनमें सदस्यों के उनके साथ होने की पुष्टि होती है। बावजूद इसके पाँच सदस्य अचानक अनुपस्थित हो गए।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि “एसएसपी और डीएम की कार्यशैली पर क्या कार्रवाई हुई? डीएम पंचतंत्र की कहानी भेज रही थी क्या? एसएसपी तो पूरी तरह फेल हो गए।”
न्यायालय ने यह भी पूछा कि जब सदस्यों ने मतदान नहीं किया और इसके लिए कोई अनुमति आवेदन भी नहीं दिया, तो उनके खिलाफ क्या दंडात्मक कार्यवाही की गई।
अदालत ने स्पष्ट कहा कि चुनाव आयोग शक्तिहीन नहीं है, उसे अपनी भूमिका निभानी होगी। आयोग से पूछा गया कि मतदान के दिन हुए अपराधों का उल्लेख उसकी रिपोर्टों में क्यों नहीं है और संबंधित अधिकारियों को क्या निर्देश दिए गए।
अब इस मामले पर सोमवार को चुनाव आयोग को शपथपत्र दाखिल कर अदालत के सवालों का जवाब देना होगा।