विशेष रिपोर्ट: नैनीझील में पहली बार दिखे कछुए। पारिस्थितिकी संतुलन के लिए खतरा या संयोग?

नैनीझील में पहली बार दिखे कछुए। पारिस्थितिकी संतुलन के लिए खतरा या संयोग?

नैनीताल। उत्तराखंड की प्राकृतिक धरोहर और पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण नैनीझील इन दिनों एक अनोखी वजह से चर्चा में है। झील के किनारे अचानक कछुओं (Tortoise) की मौजूदगी ने न केवल स्थानीय लोगों और पर्यटकों को चौंकाया है, बल्कि वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के बीच भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

स्थानीय और पर्यटकों का आश्चर्य

नैनीताल घूमने पहुंचे पर्यटकों का कहना है कि उन्होंने कई बार झील में नौकायन और सैर-सपाटा किया है, लेकिन कछुए कभी नज़र नहीं आए। झील किनारे रहने वाले स्थानीय लोग भी यही मानते हैं कि दशकों से यहां रहकर भी उन्होंने कभी कछुए नहीं देखे।

अब बारिश से लबालब भरी झील में ठंडी सड़क क्षेत्र के पास, कभी तीन तो कभी अधिक संख्या में कछुए पेड़ों की टहनियों पर बैठे दिखाई दे रहे हैं।

विशेषज्ञों की चेतावनी

जीव विज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि नैनीताल का ठंडा और पहाड़ी मौसम कछुओं जैसी रैप्टाइल प्रजाति के लिए अनुकूल नहीं है। ठंडे पानी और सर्द जलवायु में ये लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाते।

विशेषज्ञों ने वन विभाग से मिलकर प्रस्ताव रखा है कि इन कछुओं को झील से निकालकर उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ा जाए, ताकि वे सुरक्षित रह सकें।

पारिस्थितिकी संतुलन पर सवाल

नैनीझील का पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) बेहद संवेदनशील है। यहां पहले ही प्लास्टिक प्रदूषण, सीवेज, और पर्यटकों का दबाव झील की सेहत पर असर डाल रहे हैं।

अब नई प्रजाति के जीवों का प्रवेश झील के संतुलन को और प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि यह बाहरी प्रजाति है, तो यह झील की जैव विविधता (Biodiversity) के लिए खतरा भी साबित हो सकती है।

शोध का विषय

कछुए सामान्यतः नदियों, पोखरों और समुद्रों में पाए जाते हैं। सवाल यह है कि ये कछुए नैनीझील में आए कैसे?

  • क्या इन्हें किसी ने छोड़ा है?
  • क्या ये प्राकृतिक प्रवास का हिस्सा हैं?
  • या बारिश और बाढ़ के दौरान किसी अन्य जलस्रोत से यहां पहुंचे?

इन सवालों का जवाब खोजना जरूरी है, ताकि भविष्य में झील की पारिस्थितिकी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

वन विभाग और प्रशासन की प्रतिक्रिया

वन विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें नैनीझील में कछुओं के दिखाई देने की जानकारी मिल चुकी है। प्रारंभिक जांच में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कछुए किसी बाहरी स्रोत से यहां पहुंचे होंगे। विभाग ने विशेषज्ञों की एक टीम गठित की है जो झील में इनकी संख्या, प्रजाति और स्वास्थ्य की जांच करेगी।

अधिकारियों का कहना है कि यदि पाया गया कि यह प्रजाति झील के मौसम और पारिस्थितिकी के लिए उपयुक्त नहीं है, तो इन्हें सुरक्षित तरीके से बाहर निकालकर इनके मूल आवास में भेजा जाएगा।

स्थानीय प्रशासन ने भी वन विभाग को हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया है और कहा है कि नैनीझील का प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ने वाली किसी भी स्थिति को गंभीरता से लिया जाएगा।

नैनीताल की नैनीझील पर्यटन और धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। यहां अचानक कछुओं का दिखना जहां आम लोगों के लिए कौतूहल है, वहीं विशेषज्ञों और प्रशासन के लिए यह गंभीर शोध का विषय है।

यदि समय रहते इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह न केवल कछुओं के जीवन के लिए खतरा हो सकता है, बल्कि झील के पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर डाल सकता है।