धराली आपदा: श्रीकंठ पर्वत से टूटी जलप्रलय ने उजाड़ दिया पूरा गांव

धराली आपदा: श्रीकंठ पर्वत से टूटी जलप्रलय ने उजाड़ दिया पूरा गांव

  • प्रो. एमपीएस बिष्ट ने सेटेलाइट और ड्रोन विजुअल्स से किया आपदा का विश्लेषण

उत्तरकाशी के धराली गांव को 05 अगस्त 2025 को तबाह करने वाली जलप्रलय कितनी विकराल थी, इसका विश्लेषण एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष और यूसैक के पूर्व निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने किया है।

उन्होंने श्रीकंठ पर्वत (6133 मीटर) और उससे जुड़े गाड़/गदेरों का अध्ययन सेटेलाइट चित्रों और SDRF व NIM की टीमों से प्राप्त ड्रोन विजुअल्स के आधार पर किया।

धराली क्यों बना तबाही का केंद्र

धराली गांव खीर गंगा के तट पर बसा था। यही कारण रहा कि जब जलप्रलय ने गांव को अपनी चपेट में लिया, तो पूरा का पूरा गांव जमींदोज हो गया। हर्षिल क्षेत्र में तिलगाड़ और भागीरथी के संगम स्थल पर मौजूद आर्मी कैंप भी आपदा से बच नहीं पाया।

अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार 70 से 78 लोगों की जानें गईं, जिनमें आम नागरिकों के साथ सेना के जवान भी शामिल हैं।

5485 मीटर की तीव्र ढाल बनी विनाश का कारण

प्रो. बिष्ट के अध्ययन के अनुसार, श्रीकंठ पर्वत (6133 मीटर) से धराली (648 मीटर) तक लगभग 5485 मीटर का तीव्र ढाल है। खीर गंगा का यह कैचमेंट क्षेत्र संकरा है और घाटी के दोनों ओर ग्रेनाइट की कठोर चट्टानें हैं।

इस कारण भारी मलबा और पानी फैलने के बजाय तीव्र वेग के साथ नीचे की ओर बहा, जिसने रास्ते में आए हर अवरोध को अपने साथ समेट लिया।

पहले से जमा मलबा बना जलप्रलय का ईंधन

ऊपरी क्षेत्रों में वर्षों से भारी मलबा जमा था। एवलांच के कारण जगह-जगह हजारों टन बोल्डर और ढेर बने हुए थे। 05 अगस्त को हुई अतिवृष्टि ने इस मलबे को खिसका दिया और ढाल की तीव्रता के चलते उसका वेग कई गुना बढ़ गया। इसी मलबे और पानी का मिश्रण धराली की तबाही का मुख्य कारण बना।

श्रीकंठ से पांच और जगह निकली जलप्रलय

प्रो. बिष्ट ने अपने अध्ययन में बताया कि खीर गाड़ के अलावा श्रीकंठ पर्वत से पांच अन्य गाड़—लिमचा गाड़, तिलगाड़, हर्त्या गाड़, बेला गाड़ और लोध गाड़—में भी भारी मलबे और पानी का बहाव दर्ज हुआ। यानी आपदा केवल एक धारा तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया।

सटीक अनुमान लगाना चुनौती

प्रो. बिष्ट का कहना है कि आपदा से पहले खीर गंगा के अपर कैचमेंट और उद्गम स्थल पर हजारों टन मलबा जमा था। यह कितना था, इसका सटीक अनुमान फिलहाल संभव नहीं है। जीपीआर और अन्य तकनीकों से इसकी गहराई व मोटाई का अध्ययन किया जा सकता है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यह किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।