उत्तराखंड में मानसून का कहर। हर साल उजड़ते गांव, धराली झील से खतरा बरकरार
देहरादून। उत्तराखंड में मानसून हर साल तबाही लेकर आता है। पिछले 14 वर्षों में हुई आपदाओं—भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने—से अब तक 245 गांव पूरी तरह उजड़ चुके हैं। यानी औसतन हर साल करीब 17 गांव रहने लायक नहीं रह जाते।
2012 से अब तक आपदाओं के कारण 2629 परिवारों का विस्थापन और पुनर्वास करना पड़ा। इन परिवारों ने न केवल अपने घर-बार गंवाए बल्कि रोजगार और आजीविका भी खो दी। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, विस्थापन और पुनर्वास पर अब तक 111 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं।
बजट प्रावधान और पुनर्वास
वित्तीय वर्ष 2025-26 में सरकार ने आपदा प्रभावित ग्रामों के पुनर्वास और विस्थापन के लिए 20 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया था। इसके सापेक्ष अभी तक 12 गांवों के 255 परिवारों के लिए 11.44 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं।
राहत शिविरों में शरण
पिछले साल अतिवृष्टि और भूस्खलन की घटनाओं से केदारनाथ यात्रा मार्ग प्रभावित हुआ था। उस दौरान 13 हजार से अधिक यात्रियों को पैदल और हवाई मार्ग से सुरक्षित रेस्क्यू किया गया।
जुलाई 2024 में चंपावत जिले में भारी बारिश से नुकसान हुआ और 193 परिवारों को राहत शिविरों में शिफ्ट किया गया। इसी महीने टिहरी के तोली गांव में भूस्खलन से 95 परिवार प्रभावित हुए थे। उधमसिंह नगर के सितारगंज और खटीमा में जलभराव से हजारों लोग प्रभावित हुए थे।
धराली आपदा : खतरे के साए में हर्षिल
धराली आपदा के बाद हर्षिल में भागीरथी नदी पर बनी झील अब भी खतरा बनी हुई है। संयुक्त टीम को झील का मुहाना खोलने में आंशिक सफलता मिली है, लेकिन खतरा खत्म नहीं हुआ है।
बढ़ता कटाव
नदी के दाहिने ओर लगातार हो रहे कटाव ने स्थानीय लोगों के बगीचों और कोटेजों के साथ ही जीएमवीएन गेस्ट हाउस और हर्षिल थाने को भी खतरे में डाल दिया है। स्थानीय लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन हालात काबू में नहीं आ पाए हैं।
झील का जलस्तर
तेलगाड़ से आए मलबे के कारण नदी का प्रवाह रुककर झील बनी थी। पहले मशीनरी से इसे खोलने की कोशिश की गई लेकिन नाकाम रहने पर मजदूरों को लगाकर मैनुअल काम शुरू किया गया।
बीते शुक्रवार कुछ पानी झील से निकाला गया, जिससे जलस्तर में मामूली कमी आई। लेकिन शनिवार सुबह फिर से दाहिने ओर पानी का तेज बहाव कटाव को और खतरनाक बना रहा है।