सवालों के कटघरे में महिला सुरक्षा। उत्तराखंड में हर दिन बढ़ते अपराध, 5 साल में 10,000 से ज़्यादा महिलाएं लापता
देहरादून। 2023 की नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट ने जब उत्तराखंड को हिमालयी राज्यों में महिला अपराध के मामलों में शीर्ष पर बताया, तो एक बार को लगा कि शायद यह एक चेतावनी का काम करेगी और व्यवस्था खुद को दुरुस्त करेगी।
लेकिन समय बीतने के बावजूद 2024 और 2025 के मध्य तक जो स्थिति सामने आई है, वह और भी ज्यादा चौंकाने वाली और चिंताजनक है।
तथ्य जो डरा रहे हैं, आंकड़े जो झकझोरते हैं
उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से यह स्पष्ट हो गया है कि महिला अपराधों में कोई ठोस सुधार नहीं हो सका है।
- 2021–2023 के बीच 1,822 बलात्कार,
- 1,796 महिला अपहरण,
- 4,890 गुमशुदगी, और 190 दहेज हत्या के मामले दर्ज किए गए।
साल 2023 में बलात्कार के मामलों में अचानक उछाल देखा गया, 635 घटनाएं, जबकि 2022 में यह संख्या 337 थी।
गुमशुदा महिलाएं और लड़कियां, एक मौन त्रासदी
2021 से लेकर 2025 के जून तक लगभग 8,300 से अधिक महिलाएं और बालिकाएं गुमशुदा हुईं, जिनमें से 767 का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है। जून 2025 तक ही 273 महिलाएं और 77 बालिकाएं अब भी लापता हैं।
अज्ञात महिला शव: न पहचान, न इंसाफ
बीते पांच सालों में 318 अज्ञात महिला शव बरामद हुए, जिनमें से केवल 87 की शिनाख्त हो पाई। 231 महिलाएं आज भी “नंबर” बनकर पुलिस रिकॉर्ड में दबी पड़ी हैं। न कोई नाम, न कोई परिजन, न ही कोई ठोस जांच परिणाम।
“कई शवों की शिनाख्त तकनीकी रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन डीएनए सुरक्षित रखे जाते हैं और नए पोर्टल्स पर डिटेल साझा की जाती है।”– नीलेश आनंद भरणे, मुख्य प्रवक्ता, उत्तराखंड पुलिस
व्यवस्था की चेतावनी हैं यह आंकड़ें
उत्तराखंड जैसे शांत और आध्यात्मिक राज्य में महिला अपराध का इस हद तक बढ़ना सामाजिक विफलता है। गुमशुदा और अज्ञात शवों की संख्या एक सामाजिक आपातकाल की तरह है। कानून-व्यवस्था को और ज्यादा संवेदनशील, तकनीकी रूप से दक्ष और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है।
यह वक्त आंकड़ों की नहीं, जवाबदेही की मांग करने का है।
हर गुमशुदा लड़की, हर अज्ञात शव सिर्फ एक केस नंबर नहीं, बल्कि किसी की बेटी, बहन या मां है। अगर अब भी हम नहीं चेते, तो अगली रिपोर्ट और भी भयावह हो सकती है।