ED के शिकंजे में हरक सिंह रावत। बोले, अगर दोषी साबित हुआ तो राजनीति से ले लूंगा संन्यास
देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत एक बार फिर सुर्खियों में हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार, 18 जुलाई को देहरादून की सहसपुर तहसील में जमीन फर्जीवाड़े के मामले में रावत, उनकी पत्नी दीप्ति रावत और तीन अन्य के खिलाफ विशेष अदालत में चार्जशीट दाखिल की।
वहीं, शनिवार को रावत ने प्रेस वार्ता कर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए ईडी की कार्रवाई को “राजनीति से प्रेरित” करार दिया।
रावत ने कहा, “अगर मुझ पर लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं, तो मैं हमेशा के लिए राजनीति से संन्यास ले लूंगा।” उन्होंने दावा किया कि उनके पास संबंधित जमीनों से जुड़े सभी दस्तावेज पूरी तरह वैध हैं और उन्हें जानबूझकर राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया जा रहा है।
ईडी का आरोप
ईडी की जांच के मुताबिक, दीप्ति रावत और लक्ष्मी सिंह राणा ने हरक सिंह रावत और अन्य की मदद से सहसपुर की विवादित जमीन को बेहद कम कीमतों पर अपने नाम रजिस्टर्ड कराया।
एजेंसी का कहना है कि कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद सुशीला रानी समेत अन्य लोगों ने दो पावर ऑफ अटॉर्नी रजिस्टर्ड करवाईं, जिसके जरिए यह जमीन दीप्ति रावत और लक्ष्मी सिंह राणा को बेची गई।
बाद में यह संपत्ति दून इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ट्रस्ट में शामिल कर दी गई, जिसका संचालन हरक सिंह रावत का परिवार करता है।
राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप
हरक सिंह रावत ने कहा कि ईडी जैसी संस्थाएं अब विपक्षी नेताओं को डराने का माध्यम बन गई हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के 198 सांसदों और नेताओं पर ईडी ने मुकदमे दर्ज किए, लेकिन केवल दो मामलों में ही सजा दिला पाई है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि ईडी अधिकारियों के खिलाफ वह कानूनी कार्रवाई करने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
जैनी प्रकरण का भी किया जिक्र
रावत ने जैनी मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि उस समय भी उन्हें गलत तरीके से फंसाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उन्हें क्लीन चिट मिली थी। उन्होंने दावा किया कि सहसपुर की जिस जमीन को लेकर विवाद खड़ा किया गया है, वह 1960 में ही जमींदारी एक्ट के तहत सरकारी संपत्ति में शामिल हो चुकी थी।