स्वरोजगार: अल्मोड़ा में महिलाओं ने मशरूम से तो दीपक ने काफल की चाय से बनाई अनोखी पहचान

अल्मोड़ा में महिलाओं ने मशरूम से तो दीपक ने काफल की चाय से बनाई अनोखी पहचान

अल्मोड़ा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की महत्वाकांक्षी “लखपति दीदी योजना” और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत अल्मोड़ा जनपद के विकासखंड हवालबाग में एक अनूठी सफलता की कहानी लिखी गई है।

यहां की महिलाओं ने मशरूम उत्पादन के जरिए न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल की, बल्कि ग्रामीण उद्यमिता की एक नई मिसाल भी कायम की है।

परियोजना निदेशक एसके पंत ने जानकारी देते हुए बताया सितंबर 2024 में निर्मला फर्त्याल और पार्वती बिष्ट ने अपने समूह की 30 महिलाओं के साथ मिलकर 1500 मशरूम बैग लगाए।

यह प्रयास केवल उत्पादन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि महिलाओं ने एनआरएलएम के अंतर्गत सीआईएफ और सीसीएल से वित्तीय सहायता प्राप्त कर स्वरोजगार की ठोस मिसाल कायम की।

जय माँ नंदा, सरस्वती और उजाला समूहों की महिलाओं ने यह दिखाया कि यदि सही मार्गदर्शन और समर्थन मिले, तो महिलाएं किसी भी क्षेत्र में सफलता की ऊंचाइयों को छू सकती हैं।

इस मशरूम यूनिट की स्थापना कोसी क्षेत्र में की गई, जिसे आरएफ के तहत ₹30,000, सीआईएफ के तहत ₹2 लाख और सीसीएल के अंतर्गत ₹45,000 की सहायता प्राप्त हुई। अब तक यह इकाई ₹9 लाख का कुल टर्नओवर और ₹5.7 लाख का शुद्ध लाभ अर्जित कर चुकी है।

यह नवाचार न केवल महिलाओं के लिए एक स्थायी आजीविका का साधन बना, बल्कि उन्होंने अपने कौशल का विस्तार करते हुए अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया। निर्मला फर्त्याल और पार्वती बिष्ट ने अपने समर्पण और नेतृत्व से ग्रामीण महिला उद्यमिता का आदर्श प्रस्तुत किया है।

यह पहल इस बात का प्रमाण है कि जब योजनाएं ज़मीन पर सही ढंग से लागू होती हैं, तो ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल सकती है।

काफल की चाय से पेश की अनोखी मिसाल

अल्मोड़ा जिले के पेटशाल गांव निवासी दीपक पेटशाली ने जंगलों में पाए जाने वाले काफल फल से एक अनोखी हर्बल चाय तैयार की, जो अब न सिर्फ भारत, बल्कि विदेशों में भी लोगों को लुभा रही है।

दीपक ने अपने हर्बल चाय ब्रांड ‘Back to Nature’ के तहत काफल की चाय बनाना शुरू किया। यह चाय स्वाद के साथ-साथ सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद मानी जाती है।

इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन C और प्राकृतिक औषधीय गुण इसे एक हर्बल टॉनिक बना देते हैं, जो एनीमिया, अस्थमा, कब्ज, गैस, और जुकाम जैसी बीमारियों में राहत देती है।

ऐसे बनती है काफल की चाय?

  1. सबसे पहले जंगलों से लाए गए काफल फलों को अच्छी तरह साफ और सुखाया जाता है।
  2. फिर उसकी पत्तियों को भी सुखाकर चाय मिश्रण में मिलाया जाता है।
  3. इसमें लौंग, इलायची, तुलसी जैसे औषधीय मसाले मिलाकर स्वाद और औषधीय गुणवत्ता को बढ़ाया जाता है।

आज ये चाय केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत के कई राज्यों और विदेशों में भी पसंद की जा रही है। दीपक द्वारा बनाई गई अन्य हर्बल चायें जैसे बुरांश चाय, तुलसी चाय, मिंट और नैटल टी भी तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।

सोशल मीडिया से कारोबार में बढ़ोतरी

दीपक अपने उत्पादों का प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया के माध्यम से कर रहे हैं और उन्हें देशभर से ऑर्डर मिल रहे हैं। उनके प्रयासों की सराहना कुमाऊं विश्वविद्यालय के बनस्पति विभागाध्यक्ष प्रो. ललित तिवारी ने भी की है, जिन्होंने कहा कि काफल की चाय वैज्ञानिक रूप से स्वास्थ्यवर्धक है।जब आज के युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।

वहीं दीपक जैसे युवा अपने गांव में रहकर न सिर्फ स्वरोजगार कर रहे हैं, बल्कि अन्य ग्रामीणों को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं। उनका यह प्रयास प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का बेहतरीन उदाहरण बन गया है।

गौरतलब है कि, दीपक पेटशाली की ‘काफल की चाय’ न सिर्फ एक उत्पाद है, बल्कि यह एक सोच है पहाड़ों में रहकर भी सफलता पाई जा सकती है। अगर जुनून हो, तो जंगल की पगडंडी भी आपको वैश्विक पहचान दिला सकती है।