KMVN में करोड़ों की गड़बड़झाला! ऑडिट गायब, डिफॉल्टरों की सूची अधूरी
देहरादून। कुमाऊँ मंडल विकास निगम (KMVN), नैनीताल में कमर्शियल गैस सिलेंडरों की बिक्री, वसूली और बकाया राशि से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है। यह खुलासा सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत सिंह गौनिया द्वारा मांगी गई जानकारी के बाद हुआ।
गौनिया ने निगम से चार बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी मांगी थी, जिसके जवाब में निगम की ओर से जो सूचना उपलब्ध कराई गई, वह न केवल अधूरी पाई गई, बल्कि इसने गंभीर वित्तीय अनियमितताओं की ओर संकेत भी किया।
आरटीआई के जवाब में सामने आया कि कुमाऊँ मंडल की सभी गैस एजेंसियों को कमर्शियल सिलेंडर बिक्री और जमा राशि का ब्यौरा देने के लिए पत्र जारी किए गए थे।
लेकिन एजेंसियों ने केवल सिलेंडर बिक्री और जमा धनराशि की सूचना दी, बकाया राशि और अनियमितताओं से संबंधित महत्वपूर्ण विवरण गायब थे।
हैरानी की बात यह है कि राज्य निर्माण के बाद से अब तक का पूर्ण ऑडिट रिपोर्ट निगम ने उपलब्ध ही नहीं कराई, जिससे संदेह और गहरा गया।
जानकारी न मिलने पर गौनिया ने अपील दायर की, लेकिन अपील अधिकारी सुनवाई में उपस्थित ही नहीं हुए और मामले को दूसरी तारीख पर टाल दिया। कई बार समय और धन खर्च करने के बाद भी उनको केवल छोटे डिफॉल्टरों की सूची दी गई, जबकि बड़े डिफॉल्टरों के नाम निगम ने स्पष्ट रूप से छुपा लिए।
आरटीआई से मिले दस्तावेजों के अनुसार, निगम में लगभग ₹90 लाख बकाया वाले बड़े डिफॉल्टर हैं, जिनमें प्रमुख नाम हेमन्त कुमार आर्य, जगदीश सिंह, श्याम सिंह खत्री, नरेन्द्र प्रसाद और राजेश कुमार शामिल हैं। यह सभी कमर्शियल गैस सिलेंडर बेचने के बाद विभाग में राशि जमा न करने के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं।
इसके विपरीत, KMVN ने केवल 38 छोटे डिफॉल्टरों की सूची उपलब्ध कराई, जिन पर कुल लगभग ₹65 लाख का बकाया है। 2015 से 2025 तक की अवधि में इन कर्मचारियों और गैस एजेंसियों द्वारा कमर्शियल सिलेंडरों की बिक्री के बाद राशि जमा न करने के कई मामले सामने आए।
इनमें कई सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं, जबकि कई अभी भी ड्यूटी पर तैनात हैं। इतना ही नहीं, भवाली इंडेन गैस एजेंसी से जुड़े 10 लाख रुपए बकाया के मामले में भी बड़े डिफॉल्टर हेमंत कुमार आर्य का नाम सामने आया, जिसे निगम ने अपनी प्रारंभिक सूची में छुपा लिया था।
आरटीआई के माध्यम से हुए इस खुलासे ने KMVN की कार्यप्रणाली, पारदर्शिता और वित्तीय जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
करोड़ों रुपए के बकाया होने के बावजूद विभाग द्वारा न तो कोई दंडात्मक कार्रवाई की गई, न ही फाइलों में दर्ज महत्वपूर्ण जानकारी सार्वजनिक की गई। बार-बार नोटिस भेजने और अपील पर सुनवाई में अधिकारियों की अनुपस्थिति ने मामले को और अधिक संदिग्ध बना दिया है।
सूचना का यह आंशिक खुलासा अब बड़े कानूनी कदमों की ओर बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला हाईकोर्ट और राज्य सूचना आयोग दोनों में ले जाया जा सकता है। साथ ही, पूरी पारदर्शिता के लिए राज्य निर्माण से 2025 तक सभी गैस इकाइयों का पूर्ण ऑडिट कराना जरूरी है।
बड़े डिफॉल्टरों के खिलाफ FIR दर्ज करना, बकाया वसूली के लिए रिकवरी सर्टिफिकेट जारी करना और संबंधित विभागीय अधिकारियों पर कार्रवाई करना ही इस घोटाले का वास्तविक समाधान हो सकता है।
यह मामला न केवल निगम की जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह लगाता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि सूचना छुपाने और अनियमितताओं को दबाने की प्रवृत्ति किस तरह सरकारी तंत्र में जड़ें जमा चुकी है।
RTI के जरिए सामने आई ये विसंगतियाँ अब एक बड़े वित्तीय घोटाले की ओर इशारा कर रही हैं, जिसकी पूर्ण जांच और पारदर्शी कार्रवाई समय की मांग है।


