गजब: किसान बाजार में ‘फिक्स्ड बोली’ का खेल! RTI में खुलासा, सवालों के घेरे में 9 दुकानें

किसान बाजार में ‘फिक्स्ड बोली’ का खेल! RTI में खुलासा, सवालों के घेरे में 9 दुकानें

रिपोर्ट- कृष्णा बिष्ट
हल्द्वानी की कृषि उत्पादन मंडी समिति के नवनिर्मित किसान बाजार में दुकानों के आवंटन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। 09 नई दुकानों के वितरण में धांधली, पक्षपात और भ्रष्टाचार के आरोपों ने पूरे मामले को राजनीतिक रंग दे दिया है।

दिलचस्प यह कि जिन दुकानों पर भाजपा कार्यकर्ताओं के हक की चर्चा थी, वे कांग्रेस से जुड़े लोगों को आवंटित हो गईं। यही कारण है कि मामला और अधिक तूल पकड़ता दिख रहा है।

आरटीआई कार्यकर्ता रविशंकर जोशी ने दस्तावेजों के आधार पर इस आवंटन को “भ्रष्टाचार और मिलिभगत का मामला” बताते हुए सचिव कृषि, जिलाधिकारी नैनीताल, प्रबंध निदेशक कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड और निदेशक विजिलेंस को विस्तृत शिकायत भेजी है।

नेता प्रतिपक्ष के रिश्तेदारों को भी दुकानें मिलने का आरोप

शिकायत में कहा गया है कि दुकानों का आवंटन “पूर्व नियोजित तरीके से” तय किया गया। दो दुकानें कथित तौर पर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के रिश्तेदारों को गई हैं, जिससे राजनीतिक विवाद गहराया है।

टेंडर खुलने से एक दिन पहले खरीदे गए फार्म

शिकायत में प्रमुख सवाल उठाए गए हैं:-

  • 09 लाभार्थियों में से अधिकांश ने टेंडर खुलने से एक दिन पहले ही फार्म खरीदा।
  • फॉर्म जमा करने, बैंक ड्राफ्ट और सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा करने की प्रक्रिया भी अंतिम समय में की गई।
  • आरोप यह कि पूरी प्रक्रिया “इच्छित लोगों के लिए” सेट की गई थी।

एक ही परिवार और रिश्तेदारों की बोली, संदेह बढ़ा

शिकायत में यह भी कहा गया है कि बोली प्रक्रिया में एक ही परिवार, रिश्तेदार और करीबियों को शामिल किया गया ताकि परिणाम मनचाहे तरीके से निकले।

बोली राशि भी संदिग्ध रूप से लगभग समान 18,82,000 से 19,10,000 रुपये पाई गई। सभी बोलीदारों के बीच मात्र 28,000 रुपये का अंतर है, जो प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करता है।

वास्तविक मूल्य भी कम आँका गया?

दुकानों का वास्तविक बाजार मूल्य बोली राशि से काफी अधिक बताया जा रहा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह कि इन दुकानों का मासिक शुल्क मात्र 500 रुपये तय किया गया है।

90 वर्ष की लीज पर आवंटन, इसलिए विवाद और गंभीर

शिकायतकर्ता ने कहा है कि दुकानों का आवंटन 90 वर्षों की लीज पर किया गया है, जो लगभग स्थायी आवंटन की तरह है। इसी कारण इस मामले की पूरी प्रक्रिया को “शक के दायरे में” बताते हुए इसे तत्काल निरस्त करने और उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की गई है।