SIR की टाइट डेडलाइन ने तोड़ी हिम्मत। बंगाल में BLO की आत्महत्या से प्रशासन में हड़कंप
देश में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) को लेकर बढ़ता वर्कलोड अब जानलेवा दबाव में बदलता दिख रहा है।
पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में 53 वर्षीय बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) रिंकू तरफदार ने शनिवार, 22 नवंबर को कथित रूप से आत्महत्या कर ली। परिवार का सीधा आरोप है कि उनकी मौत के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है।
परिवार के अनुसार रिंकू कई दिनों से लगातार फील्ड में काम कर रही थीं, घर-घर जाकर फॉर्म भरना, देर रात तक डिजिटल एंट्री करने का प्रयास, फॉर्म अपलोड न होने पर मिलने वाली झिड़कियाँ, और हर कुछ मिनट में वरिष्ठ अधिकारियों के कॉल।
टाइट डेडलाइन, गलती होने पर कार्रवाई का डर और हर दिन बढ़ता दबाव उन्हें अंदर से तोड़ चुका था। उनके पति आशीष तरफदार का दावा है कि रिंकू ने अपने अंतिम पत्र में सीधे चुनाव आयोग को जिम्मेदार बताते हुए लिखा कि वह अब इस बोझ को और नहीं झेल सकतीं।
घटना के बाद चुनाव आयोग ने जिलाधिकारी से तत्काल रिपोर्ट मांगी है, हालांकि यह सवाल अब और गहरा हो गया है कि क्या आयोग BLO के वर्कलोड को लेकर सच में जागेगा या यह भी एक औपचारिक रिपोर्ट बनकर फाइलों में गुम हो जाएगी। पुलिस ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।
रिंकू की मौत के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने SIR प्रक्रिया पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “और कितनी जानें जाएंगी? SIR की वजह से हमें और कितनी लाशें देखनी होंगी?
यह प्रक्रिया अब BLO के लिए मौत की वजह बन चुकी है।” दो दिनों पहले ही उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र लिखकर SIR प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग की थी।
रिंकू की मौत कोई अकेला मामला नहीं है। SIR की शुरुआत के बाद से अब तक देश के 12 राज्यों में कम से कम पाँच BLO आत्महत्या कर चुके हैं। हर परिवार की कहानी एक जैसी है, “काम का दबाव असहनीय हो चुका था।”
इन मामलों में केरल के अनीश जॉर्ज, कोलकाता की शांतिमोनी एक्का, राजस्थान के मुकेश जांगिड़, गुजरात के अरविंदकुमार वधेल और अब पश्चिम बंगाल की रिंकू तरफदार सभी में एक ही पैटर्न दिखा: अत्यधिक काम, मानसिक तनाव और उच्च अधिकारियों का दबाव।
विशेषज्ञों का कहना है कि SIR प्रक्रिया अब BLO के लिए ‘मिशन’ नहीं, बल्कि ‘दबाव वाला दायित्व’ बन चुकी है। कई BLO प्रतिदिन 12 से 14 घंटे फील्ड में काम कर रहे हैं।
ऊपर से लगातार फोन, फॉर्म अपलोड न होने का डर, हर गलती पर सस्पेंशन की धमकी, मानसिक स्वास्थ्य सहयोग का अभाव और कोई अतिरिक्त स्टाफ नहीं ये सभी कारण उन्हें मानसिक रूप से तोड़ रहे हैं।
कई राज्यों में OFFICIAL DUTY अब परिवारों को उजाड़ने का कारण बनती जा रही है, और यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर चुनाव आयोग इस व्यवस्था में सुधार की शुरुआत कब करेगा?


