हाईकोर्ट के एक ही दिन में तीन बड़े आदेश। कहीं मिली जमानत, कहीं सख्ती बरकरार
नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को तीन अलग-अलग मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय दिए। हरिद्वार के रानीपुर ज्वेलरी शॉप डकैती मामले में आरोपी नितिन को दो साल बाद जमानत मिल गई है, जबकि बागेश्वर में आंख फोड़ने वाले दो आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी गई। वहीं, खटीमा डकैती मामले में आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।
रानीपुर ज्वेलरी डकैती: दो साल बाद आरोपी नितिन को जमानत
हरिद्वार के रानीपुर में 8 जून 2022 को एक जौहरी की दुकान पर हथियारबंद लोगों ने डकैती की वारदात को अंजाम दिया था। इस मामले में आरोपी नितिन बीते दो साल से जेल में बंद था।
न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकलपीठ ने नितिन की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए माना कि चार्जशीट दाखिल होने और आरोप तय होने के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के ‘संजय चंद्रा बनाम सीबीआई (2012)’ मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि “स्वतंत्रता नियम है और हिरासत अपवाद।”
कोर्ट ने यह भी माना कि आरोपी की पहचान को लेकर पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं और अन्य आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है। राज्य की ओर से पर्याप्त सबूत न पेश करने के चलते अदालत ने नितिन को निजी मुचलके पर रिहा करने के आदेश दिए।
बागेश्वर में आंख फोड़ने वाले आरोपियों की जमानत याचिका खारिज
इसी बीच, हाईकोर्ट ने बागेश्वर के कांडा क्षेत्र में जानलेवा हमला करने के आरोपी नूर आलम और शहजाद की जमानत याचिका खारिज कर दी।
कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता, पीड़ित को हुई स्थायी क्षति (बाईं आंख की रोशनी का स्थायी नुकसान) और मजबूत साक्ष्यों के आधार पर इस स्तर पर जमानत नहीं दी जा सकती।
मामला 24 मार्च 2024 का है, जब शिकायतकर्ता तनवीर ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि काम के दौरान हुए झगड़े में ठेकेदार शाहिद अहमद के कहने पर नूर आलम, शहजाद और अन्य लोगों ने उन पर लाठी-डंडों और चाकू से हमला किया, जिससे उनकी आंख निकालनी पड़ी।
खटीमा डकैती केस में आरोपियों को राहत
वहीं, हाईकोर्ट ने उधम सिंह नगर जिले के खटीमा डकैती मामले में दोषसिद्ध चारों आरोपियों को बरी कर दिया।
न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की पीठ ने 24 फरवरी 2021 को पारित सत्र न्यायाधीश खटीमा के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 395 के तहत डकैती साबित करने के लिए कम से कम पांच अभियुक्तों की संलिप्तता जरूरी है।
इस मामले में केवल चार अभियुक्तों धर्मेंद्र कुमार उर्फ समीर मलिक, मनमत राय, संजीव मजूमदार और प्रदीप कुमार उर्फ कालिया के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी।
पांचवें आरोपी के अस्तित्व या भागीदारी के साक्ष्य न होने, गवाहों की कमी और एफआईआर दर्ज करने में देरी के कारण अदालत ने चारों को बरी कर दिया।
हाईकोर्ट के इन तीनों फैसलों ने एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अपराध की गंभीरता और सबूतों की मजबूती के सिद्धांतों को रेखांकित किया है।

