वीडियो: ‘मजदूरी’ नहीं ‘सेवाभाव’ था बच्चों का काम। निलंबित शिक्षिका ने लगाई न्याय की गुहार

‘मजदूरी’ नहीं ‘सेवाभाव’ था बच्चों का काम। निलंबित शिक्षिका ने लगाई न्याय की गुहार

देहरादून। सोमवार को सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने उत्तराखंड के शिक्षा तंत्र में हलचल मचा दी। वीडियो में राजकीय प्राथमिक विद्यालय, बांध विस्थापित बंजारावाला के कुछ छोटे छात्र सिर पर बजरी ढोते नजर आ रहे थे। वीडियो वायरल होते ही आरोप लगे कि छात्रों से मजदूरी कराई जा रही है।

देखें वीडियो:-

मामला गर्माते ही शिक्षा विभाग हरकत में आया और जिला शिक्षा अधिकारी ने स्कूल की प्रभारी प्रधानाध्यापिका अंजू मनादुली को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। लेकिन, घटना के पीछे की कहानी इससे कहीं ज्यादा जटिल और संवेदनशील है।

प्रधानाध्यापिका की चिट्ठी: “यह बच्चों की सेवा भावना थी, मजबूरी नहीं”

निलंबन के बाद अंजू मनादुली ने मीडिया को एक भावुक पत्र जारी किया है। उन्होंने लिखा, “छात्रों ने भोजनावकाश के दौरान अपने स्तर पर कीचड़ भरे रास्ते को सुधारने के लिए यह काम किया। मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। यह बच्चों की स्वेच्छा थी, मजदूरी नहीं।”

प्रधानाध्यापिका के अनुसार, बारिश के कारण स्कूल के मुख्य द्वार से कक्षाओं तक पहुंचने वाला रास्ता कीचड़ से भर गया था। छात्र और शिक्षक कई बार फिसल चुके थे। बच्चों ने कई बार बजरी डालने की मांग की थी, पर संसाधन और अनुमति के अभाव में काम नहीं हो पाया।

सोमवार को बच्चों ने स्वयं रेन वाटर हार्वेस्टिंग के काम में लगी बजरी उठाई और रास्ते को समतल करने लगे। उनका उद्देश्य केवल स्कूल को साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाना था।

“वीडियो को गलत मंशा से वायरल किया गया”

अंजू मनादुली का आरोप है कि यह वीडियो जानबूझकर उनके खिलाफ प्रसारित किया गया। उन्होंने दावा किया कि स्कूल के पास रहने वाले वीरेंद्र डंगवाल नाम के व्यक्ति ने उनसे व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते यह वीडियो वायरल किया।

अंजू ने लिखा, “उन्हें इस बात से आपत्ति है कि इस स्कूल में गरीब और मुस्लिम परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। वे कई बार छात्रों और मुझ पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कर चुके हैं,”

प्रधानाध्यापिका के अनुसार, यह वीडियो उसी व्यक्ति द्वारा गलत मंशा से प्रसारित किया गया ताकि उनकी छवि धूमिल हो और स्कूल को बदनाम किया जा सके।

58 वर्ष की शिक्षिका का दर्द

उन्होंने अपनी चिट्ठी में कहा, “58 वर्ष की उम्र में मुझ पर ऐसे आरोप असहनीय हैं। मैंने जीवनभर बच्चों को शिक्षित करने का काम किया है, मजदूरी कराने का नहीं,”

प्रशासनिक कार्रवाई और सवाल

जिला शिक्षा अधिकारी ने निलंबन का आदेश जारी करते हुए जांच बैठाई है। जांच में यह देखा जाएगा कि क्या प्रधानाध्यापिका वास्तव में इस घटना से अनजान थीं या उनकी ओर से लापरवाही हुई।

वहीं, शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बच्चों से किसी भी प्रकार का श्रम कराया जाना निंदनीय है, भले ही वह ‘स्वेच्छा’ से किया गया हो।

सामाजिक सवाल भी उठे

यह घटना केवल एक वीडियो विवाद नहीं, बल्कि यह दिखाती है कि कैसे सरकारी स्कूलों, खासकर गरीब और विस्थापित परिवारों के बच्चों से जुड़े मुद्दे संवेदनशील और भेदभावपूर्ण नजरिए का शिकार बन जाते हैं।

क्या बच्चों की सेवा भावना को ‘मजदूरी’ कहना उचित था? या फिर एक सच्चे सामाजिक सरोकार को बिना संदर्भ समझे बदनाम कर दिया गया?