सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला। नाबालिग के निजी अंगों को छूना दुष्कर्म या यौन हमला नहीं, दोषसिद्धि बरकरार
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग लड़कियों से जुड़े अपराधों पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि यदि किसी नाबालिग के निजी अंगों को केवल ‘छुआ’ गया है, तो इसे दुष्कर्म (Rape) या यौन हमला (Sexual Assault) नहीं माना जा सकता।
हालांकि, ऐसे मामलों में आरोपी दोषी रहेगा और उसे सज़ा से छूट नहीं मिलेगी, लेकिन अपराध की गंभीरता के अनुसार सज़ा घटाई जा सकती है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत दुष्कर्म या यौन हमले की परिभाषा काफी स्पष्ट है।
- केवल शारीरिक संपर्क या छूने की घटना को दुष्कर्म या यौन हमला नहीं कहा जा सकता।
- यह कृत्य यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) या अनुचित स्पर्श की श्रेणी में आता है, जिसके लिए सज़ा का प्रावधान है।
- निचली अदालतों को यह ध्यान रखना होगा कि हर मामले में अपराध की गंभीरता के अनुसार सज़ा तय की जाए।
मामला क्या था?
- यह केस महाराष्ट्र का है।
- आरोपी ने एक नाबालिग बच्ची के निजी अंगों को अनुचित ढंग से छुआ था।
- ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए आरोपी को लंबी सज़ा सुनाई थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आरोपी दोषी है, लेकिन अपराध की श्रेणी बदलते हुए सज़ा घटाने का आदेश दिया।
क्यों अहम है यह फैसला?
- पॉक्सो कानून के तहत नाबालिगों के साथ किसी भी प्रकार का यौन व्यवहार गंभीर अपराध है।
- लेकिन सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि हर मामले में दुष्कर्म या यौन हमला की श्रेणी लगाने से न्याय का संतुलन बिगड़ सकता है।
- यह फैसला भविष्य में निचली अदालतों के लिए एक मार्गदर्शन बनेगा कि मामलों को तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में देखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि नाबालिगों से छेड़छाड़ किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जा सकती और इसके लिए आरोपी सज़ा का हकदार है। लेकिन केवल छूने की घटना को ‘दुष्कर्म’ या ‘यौन हमला’ की श्रेणी में डालना उचित नहीं है। अदालत ने निचली अदालतों को अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए सज़ा तय करने की हिदायत दी।