बिहार मतदाता सूची विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का चुनाव आयोग को अल्टीमेटम। गड़बड़ी पर रद्द होगी सूची
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रही मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने चुनाव आयोग को साफ़ संकेत दिया है कि यदि इस प्रक्रिया में कोई गैरकानूनी गतिविधि या अनियमितता पाई जाती है, तो अंतिम सूची प्रकाशित हो जाने के बावजूद पूरी प्रक्रिया रद्द की जा सकती है।
15 सितंबर को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। अदालत ने सुनवाई को 7 अक्टूबर तक टाल दिया, क्योंकि 28 सितंबर से दशहरा अवकाश शुरू हो रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया था कि सुनवाई 1 अक्टूबर से पहले हो, लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि अंतिम सूची प्रकाशित होना न्यायालय की हस्तक्षेप करने की शक्ति को बाधित नहीं करेगा।
“अंतिम सूची प्रकाशित होने से फर्क नहीं” – सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को आश्वस्त करते हुए कहा, “अगर हमें लगे कि कोई गैरकानूनी काम हुआ है, तो हम कदम उठा सकते हैं।” यह टिप्पणी ADR की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण की दलीलों पर आई, जिन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग न तो अपने मैनुअल का पालन कर रहा है और न ही आपत्तियों को सार्वजनिक कर रहा है।
पारदर्शिता पर अदालत की नसीहत
सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने मांग की कि आयोग को रोज़ाना दावों और आपत्तियों का बुलेटिन जारी करना चाहिए। हालांकि आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि प्रतिदिन अपडेट देना व्यावहारिक नहीं है, इसलिए साप्ताहिक अपडेट दिए जा रहे हैं।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि “जितनी जानकारी सार्वजनिक की जा सकती है, उतनी करनी चाहिए।” जस्टिस बागची ने भी सुझाव दिया कि आयोग कम से कम आपत्तियों की संख्या तो साझा कर सकता है।
आधार कार्ड पर सवाल
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने एक अलग याचिका में आधार को “वैध दस्तावेज़” मानने के आदेश पर पुनर्विचार की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि बिहार में बड़ी संख्या में रोहिंग्या और बांग्लादेशी रह रहे हैं और आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता।
जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर कहा, “कोई भी दस्तावेज़ नकली बनाया जा सकता है। आधार का इस्तेमाल उतनी ही सीमा तक होना चाहिए, जितनी कानून में अनुमति दी गई है।”
ECI के लिए कड़ा संदेश
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से साफ है कि अदालत मतदाता सूची की प्रक्रिया पर सख्त निगरानी रखेगी। यदि पारदर्शिता और वैधानिकता से समझौता हुआ तो न्यायालय हस्तक्षेप करेगा। यह चुनाव आयोग के लिए साफ़ चेतावनी है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं होगी।

