डोली में ढोई जिंदगी। पिथौरागढ़ का गोल्फा गांव अब भी सड़क और सुविधाओं से वंचित
पिथौरागढ़। यह कहानी है सीमांत जिले के गोल्फा गांव की, जहां आज भी इंसानी जिंदगियां सड़क और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में दांव पर लगी हुई हैं। हाल ही में 65 वर्षीय खिला देवी, जब मवेशियों के लिए घास काटने जंगल गईं, तो पांव फिसलने से गंभीर रूप से घायल हो गईं।
लेकिन असली दर्द उस चोट से नहीं था, बल्कि उस रास्ते से था, जो उन्हें अस्पताल तक ले जाने से पहले पार करना पड़ा।
5 किलोमीटर तक डोली में सफर
गोल्फा गांव से सड़क की दूरी है 5 किलोमीटर। न वाहन जा सकता है, न एंबुलेंस पहुंच सकती है। ऐसे में ग्रामीणों ने चादर और लकड़ी के डंडों से एक अस्थायी डोली बनाई और बारी-बारी से कंधों पर उठाकर घायल महिला को सड़क तक पहुंचाया।
सड़क से टैक्सी कर महिला को 120 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ जिला अस्पताल ले जाया गया। यह डोली, गांव वालों के लिए “एंबुलेंस” बन गई थी।
एक दशक से सड़क की मांग
गांव के ग्राम प्रधान मुकेश सिंह और सरपंच डिगर सिंह कहते हैं कि यहां सड़क, संचार और पेयजल जैसी सुविधाओं का गंभीर अभाव है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया बताते हैं कि गोल्फा गांव को सड़क सुविधा से जोड़ने की मांग पिछले एक दशक से हो रही है, लेकिन सरकार और प्रशासन सिर्फ आश्वासन देते रहे।
पानी और नेटवर्क की विडंबना
गांव में जल जीवन मिशन के तहत नल तो लगाए गए हैं, लेकिन उनमें पानी नहीं आता। मोबाइल नेटवर्क की हालत यह है कि ग्रामीणों को सिग्नल पाने के लिए ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ता है। गोल्फा, तोमिक और बोना गांवों की करीब 2,000 की आबादी इन्हीं समस्याओं से सालों से जूझ रही है।
संघर्ष और चेतावनी
गांव वालों का कहना है कि वे अब और इंतजार नहीं करेंगे। यदि जल्द समाधान नहीं हुआ तो वे जिला मुख्यालय और तहसील मुख्यालय में धरना-प्रदर्शन करने को बाध्य होंगे।
फिलहाल अधिकारियों ने कार्रवाई का भरोसा दिया है, लेकिन ग्रामीणों की आंखों में अब भरोसे की जगह आक्रोश साफ झलकने लगा है।
सवाल जो उठते हैं
- क्या 2025 में भी उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों में इंसानों की जिंदगी सड़क और अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही खतरे में पड़ी रहेगी?
- क्या सरकार के विकास के दावे इन गांवों तक कभी पहुंचेंगे?
- गोल्फा गांव की यह घटना सिर्फ एक महिला की कहानी नहीं, बल्कि पूरे पहाड़ की पीड़ा है।