बिग ब्रेकिंग: कार्बेट टाइगर रिज़र्व घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बढ़ी सरकार और वन विभाग की मुश्किलें

कार्बेट टाइगर रिज़र्व घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बढ़ी सरकार और वन विभाग की मुश्किलें

देहरादून। उत्तराखंड वन विभाग की छवि लंबे समय से विवादों में रही है। जंगलों में अवैध पेड़ कटान, अवैध निर्माण, सीमांकन पिलरों की गुमशुदगी और फंड के दुरुपयोग जैसे मामलों ने विभाग को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। इनमें सबसे बड़ा और चर्चित मामला है कार्बेट टाइगर रिज़र्व घोटाला, जो अब राज्य सरकार और विभाग दोनों के लिए गले की हड्डी बन चुका है।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार

बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को इस प्रकरण में कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने साफ कहा कि सरकार पूर्व निदेशक राहुल को बचाने की कोशिश कर रही है।

कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि 17 सितंबर तक सरकार ने अपना स्पष्ट रुख प्रस्तुत नहीं किया, तो मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होना पड़ेगा। साथ ही किसी भी अधिकारी को बचाने की कोशिश पर सख्त कार्रवाई की बात भी कही गई।

मार्च 2024 का आदेश

  • मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने कार्बेट टाइगर रिज़र्व में अवैध पेड़ कटान और निर्माण कार्यों की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया था।
  • सीबीआई की रिपोर्ट में 8 अधिकारियों के नाम सामने आए।
  • इनमें सबसे वरिष्ठ पूर्व निदेशक राहुल भी शामिल थे।
  • रिपोर्ट में आईएफएस अधिकारियों अखिलेश तिवारी और किशन चंद का भी जिक्र था।

राज्य सरकार का रुख विवादों में

  • राज्य सरकार ने पिछले महीने दोनों पूर्व डीएफओ के खिलाफ अभियोजन की अनुमति तो दे दी, लेकिन पूर्व निदेशक राहुल को बचाने का प्रयास किया।
  • 4 अगस्त को सरकार ने सीबीआई को पत्र भेजकर कहा कि विधि विभाग से विचार के बाद अभियोजन का कोई आधार नहीं मिला।
  • इसी पत्र को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए और इसे “अधिकारी को बचाने की कोशिश” बताया।

अगले कदम की तैयारी

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद माना जा रहा है कि सरकार को एक सप्ताह के भीतर पूर्व निदेशक राहुल के खिलाफ भी अभियोजन की अनुमति देनी पड़ सकती है। यदि ऐसा हुआ तो जांच की दिशा और तेज होगी और कई वरिष्ठ अधिकारियों पर कानूनी शिकंजा कस सकता है।

यह मामला केवल पेड़ कटान और अवैध निर्माण का नहीं है, बल्कि यह राज्य के वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण की गहरी जड़ों को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह प्रकरण अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है।