शोधपत्र में खुलासा। जलवायु परिवर्तन ने उत्तराखंड को बनाया ‘बादल फटने का हॉटस्पॉट’
देहरादून। वैज्ञानिकों के ताजा शोध में यह बड़ा खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड बादल फटने की घटनाओं का हॉटस्पॉट बन गया है। 1982 से 2020 तक के मौसमीय आंकड़ों पर आधारित इस अध्ययन को जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने 1 जुलाई 2025 को प्रकाशित किया।
इस शोधपत्र में दून विवि के नित्यानंद हिमालयी रिसर्च एंड स्टडी सेंटर, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, दिल्ली विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियो मैग्नेटिज्म मुंबई और जलसंग्रहण निदेशालय पौड़ी के वैज्ञानिकों ने योगदान दिया।
शोध की मुख्य बातें
- चरम मौसम घटनाएं बढ़ीं – 2010 के बाद से बादल फटना और अचानक बाढ़ जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ीं।
- पूर्वी बनाम पश्चिमी उत्तराखंड – 1990 में पूर्वी जिलों (नैनीताल, ऊधमसिंह नगर) में बारिश बढ़ी, 2000 में बागेश्वर व पश्चिमी जिलों में कमी आई। 2010 में पश्चिमी जिलों में बारिश बढ़ी, जबकि 2020 में फिर पूर्वी जिलों में भारी वर्षा का रुझान दिखा।
- जल प्रवाह में उतार-चढ़ाव – रुड़की और निचले जिलों में 1990 में जल प्रवाह अधिक था, 2000 में कमी आई, फिर 2010 और 2020 में वही पैटर्न दोहराया गया।
- तापमान में वृद्धि – उत्तराखंड के उत्तरी ग्लेशियर क्षेत्र और दक्षिणी हिस्सों में सतही तापमान लगातार बढ़ा है।
- अरब सागर की नमी का असर – राजस्थान और हरियाणा से होकर आने वाली हवाएं जब हिमालय से टकराती हैं, तो तेजी से ऊपर उठती हैं और बादल फटने की घटनाएं होती हैं। ये घटनाएं प्रायः तड़के सुबह दर्ज की गईं।
बारिश का हाल: औसत से 14% अधिक
मौसम विभाग के अनुसार, उत्तराखंड में मानसून सीजन (जून–सितंबर) का औसत 1162.7 मिमी है। 23 अगस्त 2025 तक ही राज्य में 1031 मिमी बारिश दर्ज हो चुकी है, जो सामान्य (904.2 मिमी) से लगभग 14% अधिक है।
जिलावार बारिश (23 अगस्त 2025 तक)
- सबसे ज्यादा बारिश: बागेश्वर (2047.1 मिमी)
- सबसे कम बारिश-
- अल्मोड़ा (740.6 मिमी)
- चंपावत (765 मिमी)
- देहरादून (1362.5 मिमी)
- हरिद्वार (1169.4 मिमी)
- रुद्रप्रयाग (1076.2 मिमी)
- टिहरी (1106.8 मिमी) में सामान्य से कहीं अधिक वर्षा दर्ज की गई।
वैज्ञानिकों का मानना है कि बदलता जलवायु पैटर्न और हिमालयी भौगोलिक स्थिति मिलकर उत्तराखंड को बादल फटने और बाढ़ जैसी आपदाओं के लिए और अधिक संवेदनशील बना रही है।