भीमताल के हरीशताल क्षेत्र में पहुंचे दो हाथी, ग्रामीणों में दहशत
नैनीताल। कभी सिर्फ मैदानी इलाकों में देखे जाने वाले हाथी अब उत्तराखण्ड के पहाड़ी गांवों तक पहुंचने लगे हैं। हाल ही में नैनीताल जिले के भीमताल के समीप हरीशताल क्षेत्र में दो हाथियों की मौजूदगी ने ग्रामीणों को दहशत में डाल दिया।
दिन के उजाले में गांव के पास बने मंदिर तक पहुंचे ये हाथी हालांकि शांत नजर आए और किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया, लेकिन ग्रामीणों के दिलों में यह डर बैठ गया है कि कब ये खेतों और घरों पर कहर बरपा दें।
पहाड़ पर हाथियों की दस्तक
पहाड़ी क्षेत्रों में हाथियों का पहुंचना अब नई बात नहीं रह गई है। पहले ये नजारा बेहद दुर्लभ माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह क्रम तेज हो गया है।
ग्रामीणों के अनुसार, हाथी अब ज्युलिकोट के चोपड़ा, बल्दियाखान के देवीधुरा और अब हरीशताल तक देखे जा चुके हैं।
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि बीते दशक में उन्होंने कभी इन इलाकों में हाथियों का आना नहीं देखा था। उनका कहना है कि यह बदलाव चिंताजनक है, क्योंकि पहाड़ी गांवों की बस्तियां छोटी और सघन होती हैं, जहां हाथियों के आने पर बड़े हादसे हो सकते हैं।
क्यों बदल रहा है हाथियों का व्यवहार?
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि हाथियों का पहाड़ों की ओर बढ़ना केवल संयोग नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई कारण हैं:-
- खाद्य संकट: मैदानी जंगलों में मानवीय दखल और खेती-बाड़ी के विस्तार ने हाथियों के पारंपरिक मार्ग (Elephant Corridors) को प्रभावित किया है। पर्याप्त भोजन न मिलने पर हाथी नए इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं।
- आवासीय दबाव: रियल एस्टेट और पर्यटन के नाम पर जंगलों में अतिक्रमण और अवैध कटान बढ़ा है। हाथी अपने सुरक्षित आवास खो रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन: बारिश और तापमान में बदलाव से जंगलों का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ा है। इससे हाथियों की आवाजाही की दिशा भी प्रभावित हुई है।
- पारंपरिक मार्गों का अवरोध: रेलवे ट्रैक, सड़कों और कॉलोनियों ने हाथियों के पुराने रास्तों को तोड़ दिया है। ऐसे में वे वैकल्पिक रास्ते तलाशते हुए पहाड़ी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं।
ग्रामीणों के लिए बढ़ता खतरा
- हाथियों का पहाड़ों पर पहुंचना केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं है, बल्कि यह ग्रामीणों के लिए सीधा खतरा है।
- हाथियों के खेतों में घुसने से किसानों की फसलें बर्बाद हो सकती हैं।
- छोटी बस्तियों में घुसने पर जनहानि की आशंका बनी रहती है।
- ग्रामीणों की आजीविका पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि पहाड़ के लोग खेती पर ही निर्भर रहते हैं।
- हरीशताल क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि उन्होंने वन विभाग को सूचना दी है, लेकिन डर यह है कि हाथी रात के समय गांवों की ओर बढ़ सकते हैं।
मानव–वन्यजीव संघर्ष की नई तस्वीर
- उत्तराखण्ड में पहले ही बाघ और तेंदुओं के हमले आम हो चुके हैं। अब हाथियों के पहाड़ चढ़ने से मानव–वन्यजीव संघर्ष का नया अध्याय खुलता दिख रहा है।
- जहां पहले बाघ मैदानी इलाकों से चढ़कर गांवों तक पहुंचते थे, अब हाथियों ने भी यही राह पकड़ ली है।
- यह प्रवृत्ति आने वाले वर्षों में और बढ़ सकती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में असुरक्षा की भावना और गहरी होगी।
समाधान क्या हो?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का हल केवल हाथियों को खदेड़ने से नहीं होगा। इसके लिए दीर्घकालिक नीतिगत कदम उठाने होंगे:-
- हाथी कॉरिडोर का संरक्षण और पुनर्स्थापन।
- मैदानी क्षेत्रों में खाद्य और जल स्रोतों की सुरक्षा।
- ग्रामीणों को जागरूक करना और सुरक्षित दूरी बनाए रखने की ट्रेनिंग।
- वन विभाग की त्वरित प्रतिक्रिया टीमों को सक्रिय करना।
- जंगलों में अतिक्रमण और अवैध निर्माण पर रोक।
नोट- हरीशताल में दिखे हाथियों का यह मंजर सिर्फ एक खबर नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है। यह हमें बताता है कि अगर हमने जंगलों और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को बचाने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में मानव–वन्यजीव संघर्ष और गहराएगा।
ग्रामीणों के लिए यह डर अब रोजमर्रा की हकीकत बनता जा रहा है। सवाल यह है कि सरकार और वन विभाग इस बढ़ते खतरे को कितनी गंभीरता से लेते हैं।