नैनीताल का कसैला तोक। सड़क से वंचित गांव और नदी में झूलती ज़िंदगियां
नैनीताल। उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले से हाल ही में सामने आया एक वीडियो पूरे राज्य की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहा है। वीडियो में ग्रामीण एक बीमार महिला को डोली में डालकर उफनती गौला नदी पार कर रहे हैं।
तेज बहाव के बीच डोली उठाए ग्रामीणों की आंखों में डर साफ झलक रहा था। महिला की जान बचाना उनके लिए ज़रूरी था, लेकिन यह काम उनकी अपनी जान के लिए भी खतरे से खाली नहीं था।
यह दृश्य सिर्फ एक महिला की बीमारी का नहीं, बल्कि उस पूरे गांव की पीड़ा का आईना है जो अब भी सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित है।
मौत से जंग और डोली पर टिकी उम्मीद
कसैला तोक की रहने वाली गंगा देवी अचानक बीमार हो गईं। गांव से निकटतम मोटर मार्ग तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं है। नतीजतन, ग्रामीणों ने डोली बनाई और महिला को घर से नदी किनारे तक लाया।
इसके बाद नदी पार करने का जोखिम उठाना पड़ा। तेज बहाव के बीच हर कदम पर ऐसा लगता था कि कहीं यह डोली नदी में न बह जाए।
ग्रामीणों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है। बरसात में जब भी कोई बीमार होता है या प्रसव पीड़ा से महिला जूझती है, तो यही रास्ता अपनाना पड़ता है। कई बार देर से अस्पताल पहुंचने के कारण लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं।
सरकारी उपेक्षा और अधूरी सड़क का दर्द
ग्रामीण सामाजिक कार्यकर्ता मनोज शर्मा और पूर्व प्रधान दयाकिशन बेलवाल बताते हैं कि गांववाले वर्षों से सड़क की मांग कर रहे हैं।
उन्होंने बताया, “हमने बार-बार भटेलिया-अमदौ-दुदुली मोटर मार्ग बनाने की मांग रखी। प्रस्ताव भी रखा गया, लेकिन अब तक सिर्फ कागज़ों में सड़क बनी है, जमीन पर कुछ नहीं। हमारी आवाज़ चुनावों के समय तक सुनी जाती है, उसके बाद सब भूल जाते हैं।”
उपजाऊ ज़मीन, लेकिन फंसी हुई ज़िंदगी
यह क्षेत्र बेहद उपजाऊ है। यहां के किसान सब्ज़ियां, फल और अनाज उगाते हैं, लेकिन सड़क न होने से उनका माल मंडियों तक पहुंचाना मुश्किल है। कई बार उपज खेतों में ही सड़ जाती है।
छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। उन्हें उच्च शिक्षा के लिए कस्बों या शहरों का रुख करना पड़ता है, लेकिन सड़क न होने से यह सफर हर रोज़ किसी संघर्ष से कम नहीं।
स्वास्थ्य सेवाएं – दूरी ही मौत है
स्वास्थ्य सुविधा न होना ग्रामीणों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। गंगा देवी के मामले ने दिखा दिया कि इलाज तक पहुंचने के रास्ते में ही लोग दम तोड़ सकते हैं।
गांववालों का कहना है– “सरकार एंबुलेंस की बात करती है, लेकिन यहां एंबुलेंस कैसे आएगी जब सड़क ही नहीं है?”
सवालों के घेरे में व्यवस्था
उत्तराखंड जैसे आपदाग्रस्त राज्य में यह सवाल और बड़ा हो जाता है कि आखिर कब तक ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालकर नदी, नाले और पहाड़ों के रास्ते से अस्पताल पहुंचेंगे। क्या सड़क और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं सिर्फ चुनावी वादों तक ही सीमित रह जाएंगी?
उम्मीद और संघर्ष
कसैला तोक के लोग हार नहीं माने हैं। वे बार-बार सड़क की मांग कर रहे हैं और आंदोलन तक करने का इरादा रखते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क बनने से न केवल जानें बचेंगी बल्कि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और शिक्षा भी नई राह पकड़ेगी।
नोट:- यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं है, बल्कि उत्तराखण्ड के उन सैकड़ों गांवों की है जो अब भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा के बिना ज़िंदगी जी रहे हैं।