विशेष रिपोर्ट: पहाड़ों में विकास बना मौत का सबब। गंगोत्री हाईवे पर मलबा, चमोली में पत्थर। तीन मौतें

पहाड़ों में विकास बना मौत का सबब। गंगोत्री हाईवे पर मलबा, चमोली में पत्थर। तीन मौतें

देहरादून। उत्तराखंड में लगातार हो रहे सड़क हादसे और प्राकृतिक आपदाओं से जुड़ी घटनाएं राज्य की निर्माण एजेंसियों और आपदा प्रबंधन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं।

मंगलवार को गंगोत्री हाईवे और चमोली जिले में हुए दो अलग-अलग हादसों में तीन लोगों की मौत हो गई। इन घटनाओं ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पहाड़ों में सड़क चौड़ीकरण और कटिंग कार्यों के दौरान सुरक्षा मानकों की अनदेखी कितनी घातक साबित हो रही है।

गंगोत्री हाईवे: बीआरओ पर लापरवाही के आरोप

गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर डबरानी के पास सड़क निर्माण और कटिंग कार्य चल रहा था। इसी दौरान हर्षिल घाटी के कुछ युवक पैदल मार्ग से गुजर रहे थे। अचानक पहाड़ी से आया मलबा दो युवकों—मनीष और अरुण—को अपनी चपेट में ले गया।

  • मनीष की मौके पर ही मौत हो गई।
  • अरुण ने एंबुलेंस में दम तोड़ा।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि बीआरओ ने कार्य क्षेत्र में सुरक्षा चेतावनी, बैरिकेडिंग और सुरक्षित रास्ते का इंतजाम नहीं किया, जिससे यह हादसा हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे हादसे प्रशासन और एजेंसियों की घोर लापरवाही का नतीजा हैं।

चमोली हादसा: अचानक गिरे पत्थर ने ली जान

चमोली जिले के डुमक गांव निवासी 45 वर्षीय रणजीत सिंह सनवाल अपनी मां और भाई के साथ घर लौट रहे थे। कलगोठ मार्ग पर पांग गदेरे के पास पहाड़ी से अचानक एक बड़ा पत्थर गिरा और सीधे उनके सिर पर लगा।

  • पत्थर की चोट से रणजीत सिंह गदेरे में जा गिरे और तेज बहाव में बह गए।
  • ग्रामीणों ने देर रात तक खोजबीन कर शव को बरामद किया।

यह हादसा पूरी तरह से प्राकृतिक प्रतीत होता है, लेकिन सवाल यह है कि पहाड़ी रास्तों पर आवागमन करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए सरकार की कोई ठोस रणनीति क्यों नहीं है।

क्यों बढ़ रहे हैं ऐसे हादसे?

  1. सड़क चौड़ीकरण की हड़बड़ी – चारधाम और अन्य परियोजनाओं के लिए पहाड़ों को काटने का काम तेज़ी से चल रहा है। मशीनों से बड़े पैमाने पर कटान करने से भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।
  2. सुरक्षा मानकों की अनदेखी – कार्यस्थल पर चेतावनी बोर्ड, वैकल्पिक मार्ग, बैरिकेडिंग और हेलमेट-जैसी सुरक्षा व्यवस्थाएं अक्सर नदारद रहती हैं।
  3. आपदा प्रबंधन की कमजोरी – आपात स्थिति में तत्काल राहत पहुंचाने और पीड़ित परिवारों को त्वरित सहायता देने की व्यवस्था अभी भी धीमी और कमजोर है।
  4. मानव-जनित आपदाएं – कई हादसे प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव लापरवाही से हो रहे हैं, जैसे सड़क निर्माण में असावधानी या भारी वाहनों को संवेदनशील क्षेत्रों से गुजारना।

लोगों में आक्रोश और सरकार से मांग

  • गंगोत्री हादसे के बाद हर्षिल घाटी के ग्रामीणों ने बीआरओ और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए। ग्रामीणों का कहना है कि बार-बार चेतावनी देने के बावजूद सड़क निर्माण के दौरान सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया।
  • चमोली के डुमक गांव में भी ग्रामीणों ने हादसे के बाद कहा कि प्रशासन को संवेदनशील मार्गों पर सुरक्षा इंतजाम बढ़ाने होंगे।

लोगों की प्रमुख मांगें:

  • सड़क निर्माण कार्यों के दौरान सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किए जाएं।
  • प्रभावित परिवारों को तत्काल आर्थिक मदद दी जाए।
  • संवेदनशील स्थानों पर अस्थायी सुरक्षा शेल्टर और अलर्ट सिस्टम लगाए जाएं।
  • आपदा प्रबंधन दल को ग्रामीण स्तर तक प्रशिक्षित और सशक्त किया जाए।

उत्तराखंड जैसी संवेदनशील भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य में सड़क निर्माण और विकास कार्य बिना वैज्ञानिक अध्ययन और सुरक्षा उपायों के किए जा रहे हैं।

इसका खामियाजा आम जनता को अपनी जान देकर भुगतना पड़ रहा है। यदि प्रशासन और एजेंसियां समय रहते सुरक्षा और आपदा प्रबंधन को प्राथमिकता नहीं देतीं, तो इस तरह की घटनाएं भविष्य में और ज्यादा बढ़ सकती हैं।