फर्जी भर्ती, फर्जी बुखार, असली लूट। उत्तराखंड के दो अस्पतालों की पोल खुली
देहरादून। उत्तराखंड में आयुष्मान भारत योजना के तहत बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े का सनसनीखेज मामला सामने आया है। राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण की जांच रिपोर्ट ने हरिद्वार और रुड़की के दो नामी अस्पतालों मेट्रो हॉस्पिटल (हरिद्वार) और क्वाड्रा हॉस्पिटल (रुड़की)की पोल खोल दी है।
इन दोनों अस्पतालों ने सरकारी पैसों की बंदरबांट के लिए गंभीर रूप से बीमार न होने के बावजूद सैकड़ों मरीजों को ICU में भर्ती दिखाकर मोटी रकम वसूली।
परिणामस्वरूप, दोनों अस्पतालों की आयुष्मान योजना के तहत मान्यता तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दी गई है, और कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं।
ICU पैकेज का दुरुपयोग, मरीजों को बनाया मोहरा
क्वाड्रा अस्पताल की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, 1800 सामान्य चिकित्सा दावों में से 1619 में मरीजों को ICU में भर्ती दिखाया गया, यानी 90% से ज्यादा मामलों में ICU पैकेज का इस्तेमाल हुआ।
इन मरीजों को 3-6 दिन तक ICU में रखा गया और छुट्टी से ठीक पहले 1-2 दिन के लिए सामान्य वार्ड में शिफ्ट किया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि नियमों के मुताबिक ICU से सीधे छुट्टी न देने की बाध्यता को कागजों पर निभाया जा सके।
बुखार, डिहाइड्रेशन और उल्टी तक पर ICU में भर्ती!
जांच में यह तथ्य भी सामने आए कि अस्पताल ने उल्टी, यूटीआई और निर्जलीकरण जैसी सामान्य बीमारियों को भी गंभीर दर्शाया और ICU में भर्ती दिखाया। मरीजों का तापमान 102°F दर्ज किया गया, जो छुट्टी के दिन अचानक 98°F हो गया।
ICU में भर्ती मरीजों की तस्वीरों में मॉनिटर बंद और IV लाइन गायब थी। मरीजों के फॉर्म में एक जैसे मोबाइल नंबर अलग-अलग लोगों के नाम पर दिखे, जिससे बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ।
मेट्रो हॉस्पिटल में भी मिले गंभीर दोष
हरिद्वार के मेट्रो हॉस्पिटल में भी मरीजों को 3 से 18 दिन तक ICU में भर्ती दिखाया गया, फिर छुट्टी से ठीक पहले सामान्य वार्ड में शिफ्ट किया गया। अस्पताल ने जरूरी दस्तावेज, ICU चार्ट और मरीजों की तस्वीरें उपलब्ध नहीं कराईं।
कुछ अपलोड किए गए दस्तावेज इतने धुंधले थे कि पढ़े नहीं जा सके। सामान्य बीमारियों को गंभीर दर्शाकर ICU में भर्ती दिखाना ‘अपकोडिंग’ का उदाहरण है, जो योजना के नियमों का सीधा उल्लंघन है।
फर्जीवाड़ा या संगठित लूट?
राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने इस कृत्य को ‘सुनियोजित धोखाधड़ी’ की संज्ञा दी है। अब सवाल यह उठता है कि जब इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हो रहा था, तो जिला स्वास्थ्य अधिकारियों की निगरानी प्रणाली कहां थी? क्या यह मिलीभगत का मामला है? या फिर आयुष्मान योजना की निगरानी प्रणाली में गंभीर खामियां हैं?
गौरतलब है कि,आयुष्मान भारत योजना, जो गरीबों के लिए वरदान मानी जाती है, अब कुछ लालची अस्पतालों के लिए लूट का जरिया बनती जा रही है। अगर इस तरह के फर्जीवाड़े पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो इसका खामियाजा न केवल सरकारी खजाने को उठाना पड़ेगा बल्कि आम मरीजों का भरोसा भी इस योजना से उठ जाएगा।
यह एक चेतावनी है कि स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर व्यापार करने वालों पर समय रहते लगाम न कसी गई, तो योजना की मूल भावना ही दम तोड़ देगी।