ऑर्किड पार्क घोटाला: 90 परिवारों का सपना, 45 करोड़ की ठगी और फरार बिल्डर
देहरादून की सहस्रधारा रोड स्थित ऑर्किड पार्क ग्रुप हाउसिंग परियोजना उन तमाम फ्लैट खरीदारों के लिए एक दुःस्वप्न बन चुकी है, जिन्होंने यहां अपने जीवन की जमापूंजी निवेश की थी।
90 फ्लैट खरीदारों के 45 करोड़ रुपये लेकर बिल्डर दीपक मित्तल पत्नी राखी मित्तल संग वर्ष 2020 में फरार हो गया। अब इस मामले में नया मोड़ आया है, जब पुलिस ने मित्तल के तीन करीबियों—मनीष गुप्ता, मनीष गर्ग और विनीता गर्ग—के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया है।
पैसे की अदला-बदली से पर्दा उठा षड्यंत्र का
जांच में खुलासा हुआ है कि फरार होने से पहले दीपक मित्तल ने अपनी कंपनी पुष्पांजलि रियलम्स एंड इंफ्राटेक प्रा. लि. के खाते से करीब 7.46 करोड़ रुपये इन तीनों के खातों में ट्रांसफर किए थे।
यह धनराशि इन्हीं की परियोजना ऑर्किड पार्क में 14–15 फ्लैट बुक करने के लिए उपयोग की गई। आरोप है कि यह एक सोची-समझी साजिश थी जिससे मित्तल की परियोजना पर नियंत्रण अप्रत्यक्ष रूप से बना रहे।
मनी लांड्रिंग की आहट
जिस तरह से धन का हस्तांतरण हुआ, वह सीधा मनी लांड्रिंग की ओर इशारा करता है। यह रकम मित्तल ने 2019-2020 के बीच ट्रांजेक्शन के ज़रिए इन तीनों को दी—मनीष गुप्ता को 3.32 करोड़, मनीष गर्ग को 2.47 करोड़ और विनीता गर्ग को 1.71 करोड़ रुपये।
परियोजना का अधूरा सच
पुष्पांजलि की इस आवासीय परियोजना में कुल 331 फ्लैट्स प्रस्तावित थे, जिसमें से केवल दो टावरों के अधूरे ढांचे ही खड़े हो सके। निर्माण कार्य वर्ष 2018 से ही बंद था। बावजूद इसके, 90 फ्लैट बुक किए गए और करोड़ों रुपये की ठगी को अंजाम दिया गया। जब खरीदारों ने जवाब मांगा, तब तक मित्तल दंपती फरार हो चुके थे।
REAR और NCLT तक लड़ाई जारी
अब तक इस घोटाले को लेकर रेरा में 62 शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं। वहीं, फ्लैट खरीदारों की याचिका पर NCLT ने परियोजना को अन्य बिल्डर से पूरा कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
बैंक ऋण भी डकार गया मित्तल
पंजाब नेशनल बैंक की इंदिरा नगर शाखा से लिए गए 21 करोड़ रुपये का ऋण भी एनपीए घोषित हो चुका है। इस पर भी ईडी ने मनी लांड्रिंग एक्ट में मामला दर्ज कर, परियोजना के फ्लैट और अन्य संपत्तियां अटैच कर दी हैं।
दीपक मित्तल का आपराधिक इतिहास
दीपक मित्तल के खिलाफ धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र और गैंगस्टर एक्ट समेत कुल 9 मुकदमे दर्ज हैं। थाने डालनवाला और राजपुर में दर्ज इन मुकदमों की लंबी फेहरिस्त बताती है कि यह कोई साधारण ठग नहीं, बल्कि संगठित अपराधी है।
ऑर्किड पार्क परियोजना न सिर्फ फ्लैट खरीदारों के साथ विश्वासघात है, बल्कि यह सिस्टम और रेगुलेटरी तंत्र के प्रति भी गहरी चिंता पैदा करता है। अब देखना यह है कि क्या कानून की पकड़ इस जालसाज बिल्डर तक पहुंच पाती है, या फिर यह प्रकरण भी उत्तराखंड की लंबी लिस्ट में शामिल हो जाएगा, जहां पीड़ित न्याय के लिए सिर्फ अर्जी देते रह जाते हैं।

