बदलती जीवनशैली ने छीनी सुकूनभरी रातें, नींद पर संकट
रिपोर्ट- नीतू बिष्ट
Health Post: आज की तेज़ भागती ज़िंदगी में जहाँ लोगों के पास काम के लिए दिन-रात हैं, वहीं नींद की अहमियत को सबसे कम प्राथमिकता दी जा रही है। बदलती जीवनशैली, देर रात तक मोबाइल चलाना, बढ़ता काम का दबाव और अस्वस्थ दिनचर्या, ये सभी मिलकर हमारी नींद की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं।
नींद सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं बल्कि शरीर और दिमाग के संतुलन को बनाए रखने का एक अहम हिस्सा है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक वयस्क को प्रतिदिन 7 से 8 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद लेनी चाहिए, लेकिन अधिकांश लोग या तो देर से सोते हैं या बार-बार नींद में रुकावट महसूस करते हैं।
स्क्रीन टाइम: नींद की सबसे बड़ी दुश्मन
सोने से पहले घंटों मोबाइल, लैपटॉप या टीवी देखना अब आम बात हो गई है। ये सभी डिवाइस नीली रोशनी छोड़ते हैं, जो मस्तिष्क में मेलाटोनिन (नींद लाने वाला हार्मोन) के स्राव को रोकती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति को नींद आने में देरी होती है या नींद बार-बार टूटती है।
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ाव
नींद की कमी सिर्फ शारीरिक थकावट ही नहीं बढ़ाती, बल्कि यह मानसिक बीमारियों की जड़ भी बनती है। अनिद्रा (Insomnia), चिंता (Anxiety), चिड़चिड़ापन, और डिप्रेशन जैसी समस्याएं नींद की गड़बड़ी से और गंभीर हो जाती हैं।
क्या हैं समाधान?
1. सोने और जागने का निश्चित समय तय करें
2. सोने से कम से कम 1 घंटा पहले मोबाइल और लैपटॉप का उपयोग बंद करें
3. सोने से पहले हल्की किताब पढ़ें या मेडिटेशन करें
4. कैफीन (चाय-कॉफी) और भारी भोजन रात में न लें
5. सोने का कमरा शांत, साफ और अंधेरा रखें
6. बिस्तर पर लेटते ही बार-बार समय न देखें, यह चिंता बढ़ाता है
विशेषज्ञों की राय
नींद विशेषज्ञों का मानना है कि बदलती जीवनशैली के कारण ‘नींद की स्वच्छता’ को अपनाना अब समय की मांग है। यानी सोने से जुड़ी आदतों को सुधारना और नींद को एक स्वास्थ्य लक्ष्य की तरह लेना होगा।
आज की जीवनशैली में यदि कोई चीज़ सबसे ज़्यादा उपेक्षित हुई है तो वह है “अच्छी नींद”। काम, सोशल मीडिया और मानसिक दबाव ने नींद को विलासिता बना दिया है, जबकि यह एक बुनियादी ज़रूरत है।
अगर हम समय रहते नींद को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो यह शरीर के साथ-साथ पूरे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।