बिग ब्रेकिंग: हाईकोर्ट का सवाल: क्या अंग्रेज़ी न बोलने वाला अफसर ADM पद के काबिल है?

हाईकोर्ट का सवाल: क्या अंग्रेज़ी न बोलने वाला अफसर ADM पद के काबिल है?

  • कोर्ट ने एडीएम की अंग्रेज़ी न बोल पाने की स्वीकारोक्ति पर उठाया सवाल।
  • राज्य निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव को जांच के निर्देश।
  • जस्टिस पीसी पंत ने फैसले पर जताई असहमति, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती की दी सलाह।
  • वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट के निर्णय का किया समर्थन, संविधान और न्यायिक भाषा पर दिया तर्क।

नैनीताल। नैनीताल हाई कोर्ट के एक हालिया आदेश ने राज्य की न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था में नई बहस छेड़ दी है। कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि, वह इस बात की जांच करें कि क्या एक ऐसा अपर जिलाधिकारी (ADM), जिसने अदालत में अंग्रेज़ी नहीं बोल पाने की बात स्वीकार की हो, किसी कार्यकारी पद पर प्रभावी नियंत्रण रख सकता है?

यह मामला नैनीताल के पास बुढ़लाकोट ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में बाहरी राज्यों के लोगों के नामों को हटाने से जुड़ी जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया। इस दौरान एडीएम प्रशासन विवेक राय अदालत में पेश हुए और अंग्रेजी में उत्तर देने में असमर्थ रहे।

कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद उत्तराखंड के प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गई है। इस फैसले पर पूर्व सुप्रीम कोर्ट जस्टिस पीसी पंत ने असहमति जताते हुए कहा कि देश और राज्य की राजभाषा हिन्दी है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में अनुवादकों की नियुक्ति का मकसद ही यही है कि अधिकारी या याचिकाकर्ता भाषा संबंधी समस्या से जूझे नहीं।

जस्टिस पंत ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) के ज़रिए चुनौती दी जाए। उन्होंने कहा कि राजभाषा का अपमान नहीं होना चाहिए और अदालत को सरकारी अधिवक्ता से मदद लेकर यह निर्णय देना चाहिए था।

दूसरी ओर, वरिष्ठ अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कोर्ट के रुख का समर्थन करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट की कार्य भाषा अंग्रेज़ी ही मानी गई है।

उन्होंने बताया कि विभिन्न राज्यों में हिंदी या स्थानीय भाषाओं को अपनाने के लिए भी राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस की सहमति आवश्यक होती है।

यह मामला अब केवल भाषा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या भाषा की दक्षता, प्रशासनिक कार्यक्षमता का मानदंड हो सकती है?

क्या अंग्रेजी न बोलने वाले अफसर प्रभावी प्रशासन चला सकते हैं? क्या इससे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन होता है?